Apple Plum Disease - Powdery Mildew: भारत में बेर को कई नामों में से पहचाना जाता है, इनमें चाइनीज सेव भी शामिल है. यह एक बहुपयोगी फलदार कांटायुक्त पेड़ है, इसके फलों को लोग अपने खाने के लिए और पत्तों का प्रयोग पशु चारे के रूप में करते हैं. वही इसकी लकड़ी जलाने, टहनियां, छोटी शाखाएं खेत पर बाढ़ बनाने और तना उपयोगी फर्नीचर बनाने में काम आता है. बेर की फसल में कई प्रकार के कीट व रोग लगते हैं. यदि समय पर रोग व कीटों का नियंत्रण कर लिया जाए, तो इस फल वृक्ष से अच्छी आमदनी कमाई जा सकती है. बेर में बहुत कम मात्रा में कैलोरी होती है लेकिन ये ऊर्जा का एक बहुत अच्छा स्त्रोत है.
इसमें कई प्रकार के पोषक तत्व, विटामिन और लवण पाए जाते हैं, साथ ही इसमें भरपूर एंटी-ऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं. बेर एक मौसमी फल है, जिसका हल्का हरा रंग है और यह पक जाने के बाद लाल-भूरे रंग का हो जाता है. बेर को चीनी खजूर के नाम से भी जाना जाता है. चीन में इसका इस्तेमाल कई प्रकार की दवाइयों को बनाने में किया जाता है.
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सेहत के लिए किस तरह फायदेमंद है बेर?
बेर में कैंसर कोशिकाओं को पनपने से रोकने का गुण पाया जाता है. वजन कम करने के बारे में सोच रहे हैं तो बेर एक अच्छा विकल्प है. इसमें कैलोरी न के बराबर होती है. बेर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी, विटामिन ए और पोटैशियम पाया जाता है. ये रोग प्रतिरक्षा तंत्र को बेहतर बनाने का काम करता है. बेर एंटी-ऑक्सीडेंट्स का खजाना है. लीवर से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए भी यह एक फायदेमंद विकल्प है. बेर खाने से त्वचा की चमक लंबे समय तक बरकरार रहती है. इसमें एंटी-एजिंग एजेंट भी पाया जाता है.
कब्ज की समस्या के समाधान में भी बेर खाना फायदेमंद होता है. यह पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में मदद करता है. बेर में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम और फॉस्फोरस पाया जाता है. यह दांतों और हड्डियों को मजबूत बनाता है. इतने फायदेमंद बेर की सफल खेती के लिए आवश्यक है की इसमें लगने वाले पाउडरी मिल्डीव बीमारी को समय रहते प्रबंधित किया जाय.
बेर के पाउडरी मिल्डयू रोग का लक्षण
सफेद पाउडर की तरह इस रोग के लक्षण फूलों और नए सेट फलों पर देखे जाते हैं. परिस्थितियां अनुकूल होने पर रोग पहले प्रकट हो सकता है. विकसित हो रही नई पत्तियों में सफेद जैसा चूर्ण दिखाई देता है, जिसके कारण वे सिकुड़ जाते हैं और पत्ते झड़ने लगते हैं. यह रोग फलों की सतह पर सफेद चूर्ण के रूप में भी प्रकट होता है और बाद में पूरे फल की सतह को ढक लेता है. धब्बे हल्के भूरे से गहरे भूरे रंग में बदल जाते हैं. संक्रमित क्षेत्र थोड़ा उठा हुआ और खुरदरा हो जाता है. प्रभावित फल या तो समय से पहले झड़ जाते हैं या कॉर्क जैसे, फटे, विकृत हो जाते हैं और अविकसित रह जाते हैं. कई बार तो पूरी फसल ही बाजार के लायक नहीं रह जाती है.
इस रोग के फफूंदी कवक सुप्त कलियों में सर्दियां बिताती है. जब वसंत में कवक के विकास के लिए परिस्थितियां अनुकूल होती हैं, तो बीजाणु उत्पन्न होते हैं, निकलते है और नए संक्रमण का कारण बनते हैं. यदि इन नए संक्रमणों में बीजाणु उत्पन्न होते हैं, तो रोग का द्वितीयक प्रसार हो सकता है. इस रोग के रोगकारक (फफूंदी) का विकास 80 से 85% के आसपास सापेक्ष आर्द्रता और 24 से 26 डिग्री सेल्सियस तापमान सीमा के अनुकूल होता है.
पाउडरी मिल्डयू या चूर्णी फफूंद रोग का प्रबंधन
इस रोग का प्रकोप वर्षा ऋतु के बाद अक्टूबर-नवम्बर में दिखाई पड़ता है. इससे बेर की पत्तियों, टहनियों व फूलों पर सफेद पाउडर सा जमा हो जाता है तथा प्रभावित भागों की बढ़वार रूक जाती है और फल व पत्तियां गिर जाती हैं. इस रोग के रोकथाम के लिए आवश्यक है की पूरी तरह से फल लग जाने के बाद एक छिड़काव केराथेन नामक फफुंदनाशक की 1 मिली दवा प्रति लीटर पानी या घुलनशील गंधक की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए, 15 दिन के अंतराल पर इसी घोल से दूसरा छिड़काव करना चाहिए, आवश्यकतानुसार फल तुड़ाई के 20 दिन पूर्व एक छिड़काव और किया जा सकता है.
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