धरती मां का रूप सजाते, हरे-भरे मतवाले वृक्ष।
शीतल मधुर समीर बहाते, होते बड़े निराले वृक्ष।।
पथिकों को छाया देते हैं, गर्मी के मौसम में वृक्ष।
नीर बादलों से लेते हैं, प्रतिदिन अपने श्रम से वृक्ष।।
देते हैं फल-फूल निरंतर, कभी नहीं कुछ लेते वृक्ष।
मानव सेवा धर्म मानकर, अपना जीवन देते वृक्ष।।
किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि वृक्ष अपना पूरा जीवनकाल मानव सेवा में लगा देते हैं और बदले में कुछ नहीं लेते। ठीक इसी प्रकार किसान भी अपना पूरा जीवन देश की जनता की सेवा में व्यतीत कर देते हैं। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि लहलहाती फसल के बीच में रंग-बिरंगे फूल खिले हों तो नजारा देखते ही बनता है। साथ ही कुछ दूरी चलने पर ही मीठे अमरूद और खट्टे आंवले का स्वाद चखने को मिल जाए तो कहने ही क्या ? थोड़ा और आगे चलने पर सुर्ख लाल सेबों से लदे पेड़ों से स्वादिष्ट और मीठे सेब खाने का मौका मिल जाए तो मानो जन्नत की सैर कर आए हैं।
जी हां, यहां किसी काल्पनिक दृश्य की बात नहीं हो रही है बल्कि सच में ऐसा संभव है। खेती करने की नई विधि जिसे कृषि वानिकी के नाम से जाना जाता है, एक ऐसा ही अवसर किसानों को प्रदान करती है जिससे न सिर्फ खेती का एक नया आयाम खुलता है बल्कि इस विधि को अपनाने से किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं।
फसलों के साथ पेड़ों की खेती करने को कृषि वानिकी कहते हैं। खासतौर से इसमें छोटे किसानों को आय में वृद्धि करने का मौका मिलता है और उन्हें अधिक धन कमाने के लिए गांवों से शहरों की ओर पलायन नहीं करना पड़ता। साथ ही कुछ स्थानों पर अनियमित वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होने से वहां के किसानों को आजीविका के साधन जुटाने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में किसान या तो शहरों की तरफ कूच कर जाते हैं या फिर मजदूरी करने को मजबूर हैं। ऐसे राज्यों में 80 प्रतिशत जनसंख्या खेती पर निर्भर करती है लेकिन बदलते मौसम के कारण वहां के आर्थिक, सामाजिक व पर्यावरणीय स्थिति में भी परिवर्तन होता है। यही कारण है कि कृषि वानिकी की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है।
पेड़ों संग खिले हैं फूल,
वनोन्मूलन में उड़ने से बचाते धूल।।
खेती को नया आयाम हैं देते,
कृषक आय में वृद्धि हैं करते।।
एग्रोफोरेस्ट्री धरा को इस्तेमाल करने का वह संयुक्त नाम है जिसमें लकड़ी रूपी बारहमासी के साथ-साथ फसलों की खेती की जाती है। कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए यह एक अभिनव पहल है जो जलवायु परिवर्तन शमन में अहम भूमिका निभाती है। कृषि वानिकी प्रणाली पेड़ों का उपयोग करती है जिससे कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ किसानों की आय के óोतों में विविधता और पर्यावरणीय लाभ अर्जित किया जा सकता है। अपनी आजीविका के अवसर बढ़ाने के लिए किसान पेड़ों से फल, तेल, चारा, ईंधन और औषधीय उत्पादों की पैदावार कर बिक्री कर सकता है।
कृषि वानिकी से एक फसल पर निर्भरता में कमी आती है और किसी भी मौसम में चाहे गर्मी हो या सर्दी कृषि उत्पादन को बनाए रखने में मदद करती है। ऐसे क्षेत्रों में जहां वनोन्मूलन की स्थिति बने वहां किसानों को कृषि वानिकी को अपनाना चाहिए क्योंकि इसके आर्थिक लाभ ही नहीं बल्कि दीर्घकालिक लाभ भी हैं। कृषि वानिकी से मृदा व जल संरक्षण में काफी मदद मिलती है। पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधने में मदद करती हैं और पानी के अतिरिक्त बहाव को भी बचाती हैं। कृषि वानिकी में विविध पौधे लगाए जा सकते हैं। खाली स्थानों पर फसलों के बीच में फल देने वाले पौधे लगाने से लाभ मिलता है। फसलों के साथ-साथ पौधे लगाने से कृषि वानिकी किसानों को दोहरा लाभ देती हैं।
क्या है कृषि वानिकी?
फसल उत्पादन के साथ-साथ पेड़ों की खेती करने को ही कृषि वानिकी कहा जाता है। इसमें परंपरागत खेती के साथ फलों व फूलों के पौधे लगाए जाते हैं जो पेड़ के रूप में 7 वर्षों में परिपक्व होकर किसानों को लाभ पहुंचाने में मदद करते हैं।
क्या है वाड़ी मॉडल :
वाड़ी मॉडल के तहत वे छोटे किसान कृषि वानिकी कर सकते हैं जिनके पास 1-2 एकड़ भूमि होती है। अमूमन देखने में आता है कि परंपरागत खेती करने से किसानों को न तो अधिक लाभ मिलता है और न ही उनकी फसल का उत्पादन उतना अधिक होता है। यही कारण है कि किसानों को मजदूरी करने के लिए गांवों से शहरों की ओर जाना पड़ता है। गांवों में हालात बहुत अच्छे तो नहीं है इसलिए ही किसानों को परंपरागत खेती के साथ कृषिवानिकी करने की सलाह दी जाती है ताकि कम लागत में अधिक लाभ किसानों को मिल सके और उन्हें धनोपार्जन के लिए गांवों से शहरों की तरफ कूच न करना पड़े। खासतौर से बुंदेलखंड में वाड़ी मॉडल के तहत किसानों को कृषिवानिकी की ओर आकर्षित किया जा रहा है।
एक एकड़ में 100 पौधे
वे किसान जिनके पास खेती करने के लिए एक एकड़ भूमि है, वे परंपरागत खेती के साथ कृषिवानिकी भी कर सकते हैं। इसके लिए एक एकड़ भूमि में वे एक बार में 100-110 पौधे रोप सकते हैं।
7 वर्ष में होते हैं विकसित
कृषिवानिकी के तहत रोपे गए पौधों को पूर्ण रूप से विकसित होने में 7 वर्ष का समय लगता है। 4 वर्ष में पौधा आधा विकसित हो जाता है और इस पर फूल आने लगते हैं। इसके साथ ही मौसम के अनुसार भी खेती की जा सकती है। 7 वर्षों में पेड़ पूरी तरह से विकसित होकर फल देने लग जाते हैं और इन्हीं फलों को किसान मंडी या बाजार में बेचकर मुनाफा कमा सकते हैं।
कैसे लगाएं पौधे :
कृषि वानिकी में इस बात का खास ध्यान रखना होता है कि मौसम के अनुसार कौन-सा पौधा रोपा जा रहा है। फलों के पेड़ों को विकसित होने में समय अधिक लगता है इसलिए इनके साथ-साथ परंपरागत खेती भी करनी चाहिए ताकि किसानों को किसी भी तरह से नुकसान न पहुंचे। खेती करते समय एक एकड़ भूमि पर आधे हिस्से में फसल के बीज बो देने चाहिए। बीच-बीच में मौसमानुसार पौधे लगाने चाहिए। ऐसा करने से मृदा को आवश्यक पोषक तत्व तो मिलते ही हैं साथ ही भू-क्षरण की स्थिति से भी बचा जा सकता है।
वुड ट्री से बनाएं मेढ़ :
मेढ़ बनाने के लिए वुड ट्री का इस्तेमाल किया जा सकता है। खेत की घेराबंदी इस प्रकार करते हैं जिससे फसल को जानवरों से बचाया जा सके। इसके लिए कांटे वाले पौधे या करौंदे के पौधे लगाए जा सकते हैं। वुड ट्री की अगर बात करें तो इसमें बम्बू व टीक के पेड़ लगाना बेहतर होगा।
40-45 हजार की लागत
एक वाड़ी को बनाने में लगभग 40-45 हजार रूपए की लागत आती है। एक बार के खर्च में किसान वर्षों तक मुनाफा कमा सकता है। ऐसा देखने में आता है कि किसान अधिक निवेश करने से कतराता है लेकिन यदि भविष्य में अच्छा मुनाफा कमाना हो तो कृषि वानिकी से बेहतर विकल्प नहीं हो सकता।
वातावरण के अनुसार हो मृदा
कृषि वानिकी के लिए कहीं की भी मृदा में खेती की जा सकती है। मृदा का जीवन क्षेत्रीय भूमि और स्थानीय मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है। मृदा में पोषक तत्व मौजूद रहें इस बात का ध्यान रखना है और बीज बोने के साथ-साथ पौधों की रोपाई पर भी ध्यान देना होगा।
500 से अधिक हैं वाड़ी
वाड़ी प्रोजेक्ट के तहत झांसी, उत्तर प्रदेश में 500 से अधिक वाड़ियां बनाई जा चुकी हैं जिससे 500 से अधिक जनजातीय किसान जुड़ चुके हैं। यह वाड़ियां 500 एकड़ भूमि में निर्मित की गई हैं। वहीं मप्र के शिवपुरी जिले में 1000 वाड़ियां निर्मित की जा चुकी हैं जिनसे लगभग 600 किसान जुड़े हुए हैं।
कौन-से पौधे रोपें
कृषि वानिकी में परंपरागत फसल के साथ अमरूद व आंवला के पौधे लगाने चाहिए जो 7 वर्ष में बढ़कर छायादार पेड़ का रूप ले लेते हैं और छोटे पौधों को धूप से होने वाले नुकसान से बचाते हैं। किसानों को अधिकांश मौसम आधारित खेती करनी चाहिए ताकि हर मौसम में वे लाभार्जन कर सकें। परंपरागत खेती अधिकांशतः मौसम पर निर्भर करती है जबकि कृषि वानिकी में ऐसी कोई दिक्कत नहीं आती है। जहां तक पानी की खपत की बात है तो परंपरागत खेती की तुलना में मौसमानुसार खेती में कम पानी का इस्तेमाल होता है। वहीं पाॅपलर, सफेदा, बकैन आदि कृषि वानिकी के लिए उपयुक्त प्रजातियां हैं।
नाबार्ड देता है ऋण
सरकार ने कृषि वानिकी के लिए किसानों को ऋण देने की योजना तैयार की है जिसके लिए सरकार ने नाबार्ड को इसकी जिम्मेदारी दी है। सरकार किसानों को कृषि वानिकी की ओर आकर्षित करने के लिए ऋण उपलब्ध करती है जिससे किसान अपनी जमीन पर आसानी से खेती कर सके। मजदूरी करने के लिए किसानों को गांवों से पलायन न करना पड़े इसके लिए भी सरकार प्रयासरत है। इसके लिए सरकार ने नाबार्ड को जिम्मा सौंपा है जो किसानों को ऋण उपलब्ध करवाता है। साथ ही संग्रह केंद्र भी खोले गए हैं जहां किसान वाड़ी में परिपक्व हुई फसलों व फलों को बेच सकते हैं।
क्या हैं फायदे
- कृषिवानिकी में हानि होने की संभावना बहुत कम होती है।
- अधिक आय प्राप्त होती है।
- पर्यावरण की दृष्टि से यह सबसे बेहतर विकल्प है जो किसी भी तरह से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता।
- जैव विविधता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है कृषिवानिकी।
- पेड़-पौधों द्वारा कार्बन का उपभोग करने पर कार्बन उत्सर्जन में कमी लाई जा सकती है।
- कृषि वानिकी के कुछ सामाजिक महत्व भी हैं जो किसानों को गांवों को छोड़कर जाने से रोकते हैं क्योंकि अधिकांश छोटे किसान अधिक आय न होने पर गांवों से पलायन कर शहरों की ओर प्रवास करने लग जाते हैं।
- कृषि वानिकी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि फसल का उत्पादन निरंतर बढ़ता रहता है।
- पापलर के पौधे लगाने पर लागत कम (लगभग 30 हजार प्रति एकड़) लेकिन इनके परिपक्व होने पर लकड़ी का दाम काफी अच्छा मिलता है। प्रति एकड़ 2-3 लाख रूपए पर बेचकर मुनाफा कमाया जा सकता है। लकड़ी के दाम पर भी मुनाफा निर्भर करता है।
- कृषि वानिकी के लिए मौसम पर निर्भर नहीं रहना पड़ता बल्कि इसके लिए सभी मौसम अनुकूल रहते हैं।
- कृषि वानिकी में कृषि के साथ-साथ पेड़ों की आय मिलती है।
1890 से शुरू हुई कृषिवानिकी
भारत में कृषिवानिकी की शुरूआत सन् 1890 से मानी जाती है जब दक्षिण अफ्रीका से कृषि वानिकी के क्षेत्र में विस्तार हुआ और इसने अपने पैर पसारते हुए सन् 1887 में बर्मा व 1890 में चित्तागोंग और 1896 में बंगाल में कदम रखा। तब से ही कृषिवानिकी भारत में अस्तित्व में आई। सन् 1920 में केरल, 1923 में उत्तर प्रदेश और 1925 में मध्यप्रदेश में कृषि वानिकी के तहत खेती की जाने लगी।
मयूख हाजरा, असिस्टेंट प्रोग्राम डायरेक्टर, डेवलपमेंट आल्टरनेटिव्स, छोटे किसानों को खेती में अधिक मुनाफा नहीं मिलता। यही कारण है कि वे खेती छोड़कर अन्य दूसरे विकल्प तलाशने लगते हैं या फिर मजदूरी करने पर मजबूर हैं। यही कारण है कि हमने नाबार्ड के साथ मिलकर बुंदेलखंड और झांसी में वाड़ी प्रोजेक्ट चलाया है जिसमें किसानों को कृषि वानिकी के फायदे और नुकसानों से अवगत कराया जाता है। साथ ही हम किसानों को ट्रेनिंग देते हैं कि किस तरह से कृषि वानिकी की जानी चाहिए और किसानों को खेती करने के लिए इस प्रोजेक्ट के तहत ऋण भी उपलब्ध करवाते हैं। यदि कोई भी किसान हमसे संपर्क करता है तो हम उसकी पूरी मदद करते हैं।
जे. एन. गांधी, विमको सीडलिंग्स आईटीसी पीएसपीडी, आर एंड डी सेंटर, उत्तरांचल, विमको सीडलिंग्स कृषि वानिकी क्षेत्र में 1984 से कार्य कर रही है। इस क्षेत्र में वृक्षों का संवर्धन ही हमारा मुख्य उद्देश्य है। इस क्षेत्र में कार्य करने वाले किसानों को प्रतिवर्ष 8-10 हजार रूपए अतिरिक्त आय प्राप्त होती है। हमारी कंपनी निजी स्तर पर ही किसानों के लिए काम करती है। कंपनी किसी तरह की सरकार से सहायता प्राप्त नहीं है। हम किसी भी तरह का अनुदान इस क्षेत्र में मुहैया नहीं करवाते हैं।
ये कंपनियां हैं मुख्य :
- डेवलपमेंट आल्टरनेटिव्स
- विमको सीडलिंग्स आईटसी पीएसपीडी
- कैपिटल फारेस्ट्री लिमिटेड
- अहिंसा प्लांटेशन लिमिटेड
- भूमिका एग्रो एंड फारेस्ट लिमिटेड
- सिन्कोना फारेस्ट्री इंडिया लिमिटेड
- देवभूमि फारेस्ट लिमिटेड
- अलायंज ग्रीन फॅारेस्ट्स लिमिटेड
- दनवंती एग्रो फारेस्ट लिमिटेड
- अनामिका फारेस्ट्री लिमिटेड
- जिंदल मीडोस लिमिटेड
- हरियाणा एग्रीकल्चर एंड फारेस्ट लिमिटेड
- यूरेका ग्रीनलैंड्स लिमिटेड
- हमारा इंडिया गोल्डन फारेस्ट लिमिटेड
रूबी जैन,
सहायक संपादक, कृषि जागरण
ई-मेल [email protected]
फोन: 9999 142 633
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