उत्तरकाशी की पहाड़ियों में इन दिनों नीलकुरेंजी के फूलों की भरमार है. साथ ही यहां की वादियों में यह नीले रंग का फूल काफी गुलजार हो रहा है. दरअसल सरकारी तंत्र की उपेक्षा के चलते नीलकुरेंजी केरल की तरह उत्तराखंड में प्रसिद्धि नहीं पा सका है. जबकि पहाड़ी क्षेत्र में इस फूल को बेहद शुभ माना जाता है, जिस वर्ष यह फूल खिलता है उस वर्ष को नीलकुरेंजी वर्ष भी कहते हैं.औषधीय गुणों से भरपूर नीलकुरेंजी को उत्तराकशी में अडगल कहा जाता है. दरअसल नीलकुरेंजी के नीले बैंगनी रंग के फूल ने इन दिनों धरती का श्रृंगार किया हुआ है. बता दें कि नीलकुरेंजी स्ट्रॉबिलेंथस की एक किस्म है. देश में इस फूल की काफी प्रजातियां मौजूद है.
नीलकुरेंजी है खास
यह फूल बारह साल के अंतराल में खिलता है, इसीलिए इसे दुर्लभ फूलों में शुमार किया गया है. यहां उत्तराखंड के पहाड़ों में समुद्रतल से 1100 से 1500 मीटर तक की ऊंचाई पर पाए जाने वाले नीलकुरेंजी के खिलने का समय अगस्त से नवंबर के बीच है.इसके फूल से लेकर पत्तों तक कई औषधीय गुण होते है. जब मई और जून में जंगलों में चारा पत्ती खत्म हो जाती है तब यह पशु चारे का काम करती है. यह फूल 12 सालों में एक बार खिलता है, यह फूल वर्ष 2007 में खिला और अब यह इस साल खिल रहा है.
वर्ष 2018 में उगा था फूल
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस फूल के खिलने का सरकार ने न तो कोई प्रचार प्रसार किया और न ही सरकार के पास इसके संरक्षण की ही कोई योजना है. केरल में यह फूल वर्ष 2018 में खिला था तब वहां की सरकार ने इसका खूब प्रचार प्रसार किया है. सका नतीजा यह निकला कि करीब आठ लाख पर्यटक इसके दीदार को केरल पहुंचे है.
पीएम ने किया था नीलकुरेंजी का जिक्र
वर्ष 2018 में स्वतंत्रता के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नीलकुरेंजी के फूल का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि महाकुंभ मेला 12 साल में लगने की बात तो हम सब जानते है, लेकिन यह नहीं जानते है कि नीलकुरेंजी का फूल भी 12 साल में एक बार ही खिलता है. वर्ष 2018 में केरल की पहाड़ियों पर नीलकुरेंजी के फूल खिले थे. केरल में जिन पहाड़ियों पर नीलकुरेंजी के फूल खिलते है, उन्हें नीलगिरी की पहाड़ियों के नाम से ही जाना जाता है,
Share your comments