भारत में भैंस के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला प्रमुख जीवाणु रोग, गलघोटू है जिससे ग्रसित पशु की मृत्यु होने की सम्भावना अधिक होती है I यह रोग "पास्चुरेला मल्टोसीडा" नामक जीवाणु के संक्रमण से होता है I सामान्य रूप से यह जीवाणु श्वास तंत्र के उपरी भाग में मौजूद होता है एवं प्रतिकूल परिस्थितियों के दबाव में जैसे की मौसम परिवर्तन, वर्षा ऋतु, सर्द ऋतु , कुपोषण, लम्बी यात्रा, मुंह खुर रोग की महामारी एवं कार्य की अधिकता से पशु को संक्रमण में जकड लेता है I यह रोग अति तीव्र एवं तीव्र दोनों का प्रकार संक्रमण पैदा कर सकता है I
संक्रमण : संक्रमित पशु से स्वस्थ पशु में दूषित चारे, लार द्वारा या श्वास द्वारा स्वस्थ पशु में फैलता है I यह रोग भैंस को गे की तुलना में तीन गुना अधिक प्रभावित करता है एवं अलग - अलग स्थिति में प्रभावित पशुओं में मृत्यु दर 50 से 100% तक पहुँच जाती है I
लक्षण: एकदम तेज बुखार (107⁰ F तक) होना एवं पशु की एक घंटे से लेकर 24 घंटे के अन्दर मृत्यु होना या पशु किसान को बिना लक्ष्ण दिखाए मृत मिलना I
प्रचुर लार बहना I
नाक से स्राव बहना एवं साँस लेने में तकलीफ होना I
आँखें लाल होना I
चारा चरना बंद करना एवं उदास होनाI
अति तीव्र प्रकार में देखा गया है की पशु का मुंह चारे या पानी के स्थान पर स्थिर हो जाना I
गले,गर्दन एवं छाती पर दर्द के साथ सोजिश आना
उपचार : यदि पशु चिकित्सक समय पर उपचार शुरू कर देता है तब भी इस जानलेवा रोग से बचाव की दर कम है I सल्फाडीमीडीन, ओक्सीटेट्रासाईक्लीन एवं क्लोरम फेनीकोल जैसे एंटी बायोटिक इस रोग के खिलाफ कारगर हैं I इनके साथ अन्य जीवन रक्षक दवा इयाँ भी पशु को ठीक करने में मददगार हो सकती हैंI इसलिए बचाव सर्वोतमकदम है I
बचाव:
- बीमार भैंस को तुरंत स्वस्थ पशुओं से अलग करें एवं उस स्थान को जीवाणु रहित करें एवं सार्वजानिक स्थल जैसे की चारागाह एवं अन्य स्थान जहाँ पशु एकत्र होते हैं वहां न ले जाएँ क्योंकि यह रोग साँस द्वारा साथ पानी पीने एवं चारा चरणे से फैलता है
- मरे हुए पशुओं को कम से कम 5 फुट गहरा गड्डा खोदकर गहरा चुना एवं नमक छिडककर अच्छी तरह से दबाएँ I
3. टीकाकरण: वर्ष में दो बार गलघोटू रोग का टीकाकरण अवश्य करवाएं पहला वर्षा ऋतु शुरू होने से पहले (मई - जून महीने में ) एवं दूसरा सर्द ऋतु होने से पहले (अक्टूबर - नवम्बर महीने में) I गलघोटू रोग के साथ ही मुह खुर रोग का टीकाकरण करने से गलघोटू रोग से होने वाली पशु मृत्यु दर में भरी कमी आ सकती है.
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