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बीसवीं पशुगणना शुरू : ध्यान रखें की कहीं आपका पशु इस गणना से छूट न जाये !

हमारे देश कि जनसँख्या जिस तरह से बढ़ती जा रही है, उस हिसाब से हमारे पास खानपान के क्या साधन हैं? इसके लिए कृषि विशेषज्ञों ने अभी से काम शुरू कर दिया है. जब सृष्टि कि रचना हुई तो पहले आदिमानव ने कंध मूल खाने के अलावा खेती बाड़ी भी शुरू की, और आज स्तिथि यह है

हमारे देश कि जनसँख्या जिस तरह से बढ़ती जा रही है, उस हिसाब से हमारे पास खानपान के क्या साधन हैं? इसके लिए कृषि विशेषज्ञों ने अभी से काम शुरू कर दिया है. जब सृष्टि कि रचना हुई तो पहले आदिमानव ने कंध मूल खाने के अलावा खेती बाड़ी भी शुरू की, और आज स्तिथि यह है की खेती किसानी के अलावा भी किसान ने पशुपालन और डेयरी से भी पैसा कमाया. पशुधन की पूरी गणना होने से यह तो पता चल जयेगा की कितने पशुओं से कितना कुछ लिया जा सकता है और भविष्य की क्या योजनाएं हो सकती है.

बीसवीं पशुगणना शुरू : ध्यान रखें, की कहीं आपका पशु इस गणना से छूट न जाये, पशुगणना में विभिन्न प्रजाति के पशुओं में गाय, भैंस, मिथुन, याक, भेंड, बकरी, सुअर, घोड़ा, गधा, खरगोश, ऊंट, कुत्ते, हाथी और मुर्गियों की अलग-अलग गिनती की जाएगी. इसके अलावा उल्लू, बतख, ऐमू, टर्की और अन्य पक्षियों की गिनती की जाएगी. इनमें घर में पाले गये जानवरों के साथ आवारा पशु शामिल होंगे.

पशुधन गणना के मुख्य बिन्दु - अखिल भारतीय पशुधन गणना पाँच वर्षों के अन्तराल पर पूरे देश में आयोजित की जाती है. यह प्रक्रिया ब्रिटिश भारत में 1919-20 में पशुधन से सम्बन्धित सूचनायें एकत्र करने हेतु सीमित क्षेत्रों में शुरू की गयी थी. द्वितीय पशुधन गणना 1924-25 में उन्हीं बिन्दुओं पर की गयी. तदुपरान्त प्रत्येक पशुधन गणना में अवधारणाओं और परिभाषाओं के बदलाव के साथ सीमाओं और आच्छादन का विस्तार होता चला गया.

आजादी के बाद प्रथम पशुधन गणना वर्ष 1951 में आयोजित की गयी तथा उत्तरोत्तर हर पाँचवे वर्ष यह गणना आयोजित की जाती है.

पशुधन गणना के क्रम में वर्तमान पशुधन गणना 2017 पशुधन गणना की 20वीं कड़ी है.

20वीं पशुधन गणना की मुख्य विशेषताएं

1. पशुधन गणना प्रथम बार सम्पूर्ण भारत वर्ष में पेपर (अनुसूची) के स्थान पर टेबलेट के माध्यम से की जाएगी.

2. पशुधन गणना के अंतर्गत क्षेत्रीय पशुधन गणना के कार्य हेतु 3 माह (16 जुलाई 2017 से 15 अक्टूबर तक) का समय निर्धारित किया गया है.   

19वीं पशुधन गणना के आंकडे

2007 से 2012 तक की अंतरसंगणना अवधि के दौरान पशुधन संख्या 639.65 लाख से बढ़कर 697.25 लाख हो गयी जो संख्या में 9.00 प्रतिशत की वृद्धि दर को दर्शाता है.

19वीं पशुधन संगणना में शामिल पशुओं में से 29.50 प्रतिशत गौवंशीय पशु, 43.92 प्रतिशत महिषवंशीय पशु, 1.94 प्रतिशत भेंड़, 22.35 प्रतिशत बकरी व 1.91 प्रतिशत सूकर हैं.  अन्य पशुधन (घोड़े, टट्टू, खच्चर, गधे व ऊँट) की संख्या कुल पशुधन का 0.37 प्रतिशत थी. 18वीं पशुधन संगणना के अनुसार उपरोक्त आँकड़े क्रमशः 29.86 प्रतिशत, 41.34 प्रतिशत, 2.19 प्रतिशत, 23.18 प्रतिशत, 3.11 प्रतिशत और 0.33 प्रतिशत थे.

19वीं पशुधन संगणना में गौवंशीय पशुओं की संख्या विगत पशुधन संगणना से 7.69 प्रतिशत, महिषवंशीय 15.83 प्रतिशत, बकरी 5.10 प्रतिशत व अन्य पशुधन (घोड़े, टट्टू, गघें, खच्चर व ऊँट) की संख्या में 22.64 प्रतिशत की वृद्धि हुई. भेड़ों की संख्या में 3.29 प्रतिशत व सूकर की संख्या में 32.86 प्रतिशत की कमी आई है.

कुल दुधारू (दूध दे रही व सूखी एक साथ) गौवंशीय पशुओं की संख्या 59.51 लाख से बढ़कर 82.55 लाख हुई है, वृद्धि का प्रतिशत 38.72 है. विदेशी और संकरित दुधारू गौवंशीय पशुओं की संख्या 7.10 लाख से बढ़कर 16.60 लाख हुई, वृद्धि का प्रतिशत 133.80 है जबकि स्वदेशी दूधारू गौवंशीय पशुओं की संख्या 52.41 लाख से बढ़कर 65.95 लाख हुई, वृद्धि का प्रतिशत 25.83 है.

दूध दे रही कुल गौवंशीय पशुओं की संख्या 45.47 लाख से बढ़कर 58.83 लाख हुई, वृद्धि का प्रतिशत 29.38 है.  विदेशी व संकरित दूध दे रही गौवंशीय पशुओं की संख्या 5.42 लाख से बढ़कर 12.15 लाख हुई, वृद्धि का प्रतिशत 124.17 है. जबकि स्वदेशी दूध दे रही गौवंशीय पशुओं की संख्या 40.05 लाख से बढ़कर 46.68 लाख हुई, वृद्धि का प्रतिशत 16.55 है.

कुल प्रजनन योग्य गौवंशीय पशुओं की संख्या 63.90 लाख से बढ़कर 89.08 लाख हुई, वृद्धि का प्रतिशत 39.41 है. विदेशी व संकरित प्रजनन योग्य गौवंशीय पशुओं की संख्या 7.62 लाख से बढ़कर 17.96 लाख हुई, वृद्धि का प्रतिशत 135.70 हैं जबकि स्वदेशी प्रजनन योग्य गौवंशीय पशुओं की संख्या 56.28 लाख से बढ़कर 71.12 लाख हुई, वृद्धि का प्रतिशत 26.37 है.

कुल दुधारू, दूध दे रही व प्रजनन योग्य महिषवंशीय पशुओं की संख्या क्रमशः 117.61 लाख से 139.50 लाख, 91.86 लाख से 105.38 लाख तथा 125.87 लाख से 151.03 लाख बढ़ी, वृद्धि का प्रतिशत क्रमशः 18.61, 14.72 और 19.99 है.

उद्देश्य -  पशुपालन देश के ग्रामीण क्षेत्रों में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि है. जिससे कृषि पर निर्भर परिवारों को अनुपूरक आय प्राप्त होती है. परिवारों को सहायक आय प्रदान करने के अतिरिक्त गौवंशीय, महिषवंशीय, भेंड़, बकरी, सूकर, मुर्गीपालन आदि के रूप में पशुओं के पालन के अलावा दूध, अंडे और मांस के रूप में पोषण का एक स्रोत है. यह देखा गया है कि सूखा और अन्य प्राकृतिक विपदाओं जैसे आकस्मिकताओं के समय पशुधन ही भारी संख्या में ग्रामीणों के काम आता है. चूंकि पशुधन के स्वामित्व को समान रूप से भूमिहीन कामगारों, मजदूरों, छोटे और सीमान्त कृषकों में वितरित किया गया है इसलिए इस क्षेत्र में प्रगति से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में संतुलित रूप से विकास हो पाएगा.

पशुधन संगणना प्रशासनिक योजनाकारों, पशुपालन, वैज्ञानिकों और अन्य जो इस क्षेत्र के विकास में कार्यरत हो, के लिए उपयोगी सिद्व हो सकती है. पशुओं के क्षेत्र में उचित योजना बनाने, कार्यक्रम तैयार करने, पुनर्निमाण करने एवं विभिन्न योजनाओं को सही दिशा देने, पशुधन के क्षेत्र में त्वरित व उचित विकास प्रदान करने में पशुधन संगणना के आंकड़े राज्य के लिए सहायक होगें.

लाभ - पशुपालन क्षेत्र में कम निवेश के साथ भी वृद्धि होने की काफी संभावनाएं विघमान हैं. इस क्षेत्र में किसी नीति/कार्यक्रम की योजना  तैयार करने के लिए, उनके प्रभावी क्रियान्वयन, उनके प्रभाव का अनुश्रवण और मूल्यांकन, संख्याओं का अनुमान, मूल आंकड़े हैं, जो पशुधन संगणना पर आधारित हैं. पशुधन की आयु, लिंग इत्यादि सहित श्रेणीवार आधार पर पशुधन संख्या की विस्तृत सूचना का यह एक मात्र स्रोत हैं. इससे कुक्कुट और पशुधन क्षेत्र में उपयोग होने वाले उपकरण तथा मशीनरी पर भी अलग से सूचना प्राप्त होती है. अखिल भारतीय आधार पर यह गणना की जाती है और ग्रामीण/शहरी ब्यौरे के साथ जिलेवार सूचना को शामिल किया जाता है. पशुधन संगणना को एक नमूने की तरह उपयोग किया जाता है.

देशभर में एक अक्टूबर से 20वीं पशुगणना शुरू होगी, जिसमें हर तरह के पशुओं की अलग-अलग गणना की जाएगी. इस गणना में नस्लों के विवरण को एकत्रित किया जाएगा, जिससे नस्ल सुधार के लिए नीतियां तैयार करने में सरकार को मदद मिले सके. "पहले यह पशुगणना राजस्व विभाग द्धारा की जाती थी लेकिन अब यह गणना पशुचिकित्सक अधिकारी, पैरावट्स के द्धारा की जाएगी. पशुओं की गणना के लिए एक साफ्टवेयर तैयार किया गया है जिसमें पशु मालिक का नाम, पशु की फोटो, पशु संख्या, पशु का प्रकार और पशु किस नस्ल का इसकी पूरी जानकारी रहेगी." पशुपालन विभाग, उत्तर प्रदेश के डिप्टी डायरेक्टर डॅा अरविंद सिंह ने बताया, हर छह साल में देश में पशुगणना की जाती है. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) के साथ भागीदारी के तहत अब तक 19 ऐसी गणनाएं हो चुकी हैं. अंतिम(19वीं) पशुगणना 2012 में हुई थी. 19 वीं पशुगणना के मुताबिक भारत में कुल 51.2 करोड़ पशु हैं। जबकि उत्तर प्रदेश में पशुओं की संख्या 4 करोड़ 75 लाख (गाय-भैंस, बकरी, भेड़ आदि सब) है.

गणना से होने वाले लाभ के बारे में डॉ अरविंद ने बताया, "इस बार आंकड़ों को टैबलेट या कंप्यूटर के जरिए एकत्र किया जाएगा, जिससे यह पता चल सकेगा कि किस क्षेत्र में कौन से पशुओं की ज्यादा संख्या है, किस नस्ल के पशु ज्यादा है और भी कई चीज़े. इससे सबसे बड़ा फायदा योजना बनाने में रहेगा ताकि किसानों को उस योजना का सीधे लाभ मिल सके." कृषि मंत्रालय के अनुसार, दुधारू मवेशी उत्पादकता (एनएमबीपी) योजना पर राष्ट्रीय मिशन के तहत प्राप्त टैबलेट का उपयोग आंकड़ों के संग्रह के लिए किया जाएगा और इसके लिए राज्यों को आवश्यक समर्थन प्रदान किया गया है. बयान में कहा गया है, 'यह उम्मीद की जाती है कि टैबलेट के माध्यम से आंकड़ों के संग्रह, आंकड़ों की प्रोसेसिंग और रिपोर्ट सृजन में समय अंतर को कम करने में बहुत मदद मिलेगी.' एक सरकारी बयान में कहा गया है, 'राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से एक अक्टूबर से पशु गणना का काम शुरू करने का अनुरोध किया गया है यह गणना सभी गावों और शहरी वार्डों में की जाएगी.

 

चंद्र मोहन, कृषि जागरण

English Summary: Start the twentieth litter: Keep in mind that your animal should not be exempt from this calculation! Published on: 10 October 2018, 06:57 IST

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