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बकरियों की प्रमुख स्वदेशी नस्लें, जानें उनका चयन व डिवर्मिंग (कृमिनाशक) एवं टीकाकरण प्रबंधन

Goat Farming Business: किसानों और पशुपालकों के लिए बकरी पालन का व्यवसाय काफी अच्छा विकल्प है. दरअसल, इस बिजनेस से किसान अपनी आमदनी को सरलता से बढ़ा सकते हैं. साथ ही बकरी पालन व्यवसाय के लिए अधिक संसाधनों तथा जमीन की आवश्यकता नहीं होती है. ऐसे में आइए इस बकरी पालन से जुड़ी सभी जानकारी विस्तार से जानते हैं...

KJ Staff
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बकरियों की प्रमुख स्वदेशी नस्लें
बकरियों की प्रमुख स्वदेशी नस्लें

बकरी पालन व्यवसाय सबसे प्राचीनतम व्यवसायों में से एक है. इसमें थोड़ी सी पूंजी लगाकर  किया जा सकता है तथा अधिक आय प्राप्त की जा सकती है. इस व्यवसाय को करने में अधिक संसाधनों तथा जमीन की आवश्यकता नहीं होती है. क्योकि बकरी छोटे शारीरिक आकार, अधिक प्रजनन क्षमता तथा चरने में कुशल पशु होने के कारण इसे पालना सरल है. इसे लाभप्रद व्यवसाय बनाने के लिए जलवायु के अनुरूप अच्छी नस्लें विकसित की गई हैं.

इस व्यवसाय को सुचारू रूप से करने के लिए निम्न बातों को ध्यान रखना अनिवार्य है:
अच्छी नस्ल का चयन
आहार एवं प्रजनन प्रबंधन
स्वास्थ्य प्रबंधन
रख रखाव व बकरी की बिक्री

देशी बकरियों की प्रमुख स्वदेशी नस्लें:-

ब्लैक बंगाल

इस जाति की बकरियां पश्चिम बंगाल, असम, झारखंड व उड़ीसा में पायी जाती है. इसके शरीर पर काला, भूरा तथा सूफेद रंग का छोटा रोंआ पाया जाता है. अधिकांश (करीब 80 प्रतिशत) ब्लैक बंगाल बकरियों में काला रोंआ होता है. यह छोटे कद की होती है व इसके वयस्क नर का वजन लगभग 18 से 20 किलोग्राम होता है जबकि मादा का वजन 15 से 18 किलोग्राम होता है. इनके नर तथा मादा दोनों में ही 5 से 8 इच के आगे की ओर सीधे निकले हुए सींग पाए जाते हैं. इस नस्ल की बकरी का शरीर गठीला होने के साथ-साथ आगे से पीछे की ओर ज्यादा चौड़ा तथा बीच में अधिक मोटा होता है. इसके कान छोटे, खड़े एवं आगे की ओर निकले रहते हैं.

जमुनापारी

  • जमुनापारी भारत में पायी जानेवाली अन्य नस्लों की तुलना में सबसे उँची तथा लम्बी होती है. यह उत्तर प्रदेश के इटावा जिला एवं गंगा, यमुना तथा चम्बल नदियों से घिरे क्षेत्र में पायी जाती है. एंग्लो-न्यूबियन बकरियों के विकास में जमुनापारी का विशेष योगदान रहा है. इसका नाक काफी उभरा रहता है जिसे ‘रोमन’ नाक भी कहते हैं. इस नस्ल के सींग छोटे एवं चौड़े होते हैं. जमुनापारी बकरी के कान 10 से 12 इचं तक लम्बे, चौड़े मुडे हुए एवं लटकते रहते हैं. इसकी जाँघ में पीछे की ओर काफी लम्बे घने बाल होते हैं. इसके शरीर पर सफेद एवं लाल रंग के लम्बे बाल पाये जाते हैं.

  • इसका शरीर बेलनाकार होता है. जमुनापारी वयस्क नर का औसत वजन 70 से 90 किलोग्राम तथा मादा का वजन 50 से 60 किलोग्राम होता है.

  • इसके बच्चों का जन्म समय औसत वजन 2.5 से 3 किलोग्राम होता है. इस नस्ल की बकरियाँ अपने गृह क्षेत्र में औसतन 1.5 से 2 किलो ग्राम दूध प्रतिदिन देती है. इसके दूध में 5 से 8 प्रतिशत तक वसा पाई जाती है. यह औसतन 188 दिन तक दूध देने वाली नस्ल है.

  • इस नस्ल की बकरियाँ दूध तथा मास उत्पादन हेतु उपयुक्त हैं. लगभग 90 प्रतिशत जमुनापारी नस्ल की बकरियां एक बार में एक ही बच्चा पैदा करती हैं. वैज्ञानिक अनुसंधान से यह पता चला कि जमुनापारी सभी जलवाय केु लिए उपयुक्त नहीं हैं.

जमुनापारी बकरी
जमुनापारी बकरी

बीटल

  • बीटल नस्ल की बकरियाँ मुख्य रूप से पंजाब प्रांत के गुरदासपुर जिला के बटाला अनमुडलं में पाया जाता है. पंजाब से लगे पाकिस्तान के क्षेत्रों में भी इस नस्ल की बकरियों की उन्नत बकरियाँ उपलब्ध है.

  • यह मुख्यतः काले रंग की होती हैं. लेकिन कुछ बकरियां शरीर पर भरेू रंग पर सफेद-सफेद धब्बा या काले रंग पर सफेद -सफेद धब्बा लिये भी होती हैं.

  • यह देखने में जमुनापारी बकरियाँ जैसी लगती है परन्तु ऊँचाई एवं वजन की तुलना में जमुनापारी से छोटी होती है.

  • इसके कान लम्बे, चौड़े तथा लटकते हुए होते हैं. इसके कान पान के पत्ते की आकृति के होने के कारण इसका नाम बीटल रखा गया है. इसका नाक उभरा रहता है. इसके कान की लम्बाई एवं नाक का उभरापन जमुनापारी की तुलना में कम होता है. इस नस्ल की बकरी के सींग बाहर एवं पीछे की ओर घुमे होते हैं. बीटल नस्ल के वयस्क नर का वजन 55 से 65 किलोग्राम तथा मादा का वजन 45 से 55 किलोग्राम होता है. इसके बच्चों का वजन जन्म के समय 2.5 से 3.0 किलोग्राम होता है. बीटल नस्ल के नर में दाड़ी पाई जाती है.

  • इसका शरीर गठीला होता है. जाँघ के पिछले भाग में कम घना बाल रहता है. इस नस्ल की बकरियाँ औसतन 1.25 से 2 किलोग्राम दूध प्रतिदिन देती है. इस नस्ल की बकरियाँ औसतन 150 दिन तक दूध देती हैं. इस नस्ल की 60% बकरियाँ एक ही बच्चा देती है.

बारबरी

  • बारबरी मुख्य रूप से मध्य एवं पश्चिमी अफ्रीका में पायी जाती है. इस नस्ल के नर तथा मादा को पादरियों के द्वारा भारत वर्ष में सर्वप्रथम लाया गया. अब यह उत्तर प्रदेश के आगरा, मथुरा एव इससे लगे क्षेत्रों में काफी संख्या में उपलब्ध है. यह छोटे कद की होती है परन्तु इसका शरीर का गठीला होता है. शरीर पर छोटे-छोटे बाल पाये जाते हैं.

  • इसके शरीर पर सफेद के साथ भूरे या काला धब्बा पाया जाता है. यह दिखने में हिरण के जैसे लगती है. इनके कान बहुत ही छोटे होते हैं. इस नस्ल की बकरी के थन अच्छे विकसित होते हैं.

  • बारबरी नस्ल के वयस्क नर का औसत वजन 35 से 40 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 25 से 30 किलोग्राम होता है. यह घर में बांध कर गाय की तरह रखी जा सकती है.

  • इसकी प्रजनन क्षमता भी काफी विकसित है. दो वर्ष में तीन बार बच्चों को जन्म देती है तथा एक वियान में औसतन 1.5 बच्चों को जन्म देती है. इसका बच्चा करीब 15 से 16 माह की उम्र में वयस्क होता है. इस नस्ल की बकरियाँ मांस तथा दूध उत्पादन हेतु उपयुक्त है.

सिरोही/अजमेरा बकरी
सिरोही/अजमेरा बकरी

सिरोही/अजमेरा

सिरोही बकरियां दोहरे उद्देश्य वाले जानवर हैं, जिन्हें दूध और मांस दोनों के लिए पाला जाता है. ये अन्य नस्लों की तुलना में रोग प्रतिरोधी होती हैं और विशेष रूप से गर्म स्थानों में विभिन्न जलवायु परिस्थितियों के लिए आसानी से अनुकूल होती हैं. औसतन, सभी जन्मों में से 90% का परिणाम एक ही बच्चे में होगा और शेष 10% जुड़वाँ बच्चे पैदा करेंगे. स्तनपान 90 दिनों तक चल सकता है और एक अच्छे स्वास्थ्य के लिए दूध औसतन 0.75–1 किग्रा/दिन तक रह सकता है.

शरीर का आकार: सिरोही बकरियां मध्यम से बड़े आकार के जानवर होते हैं जिनमें कॉम्पैक्ट बेलनाकार से शंक्वाकार शरीर होता है. आमतौर पर बेलनाकार आकार के जानवरों को बेहतर मांस उत्पादक माना जाता है जबकि शंक्वाकार शरीर वाले जानवरों को दूध उत्पादन में अच्छा माना जाता है.शरीर काफी घने बालों से ढका होता है जो छोटे और मोटे होते हैं.

प्रमुख रंग भूरा और भूरे रंग के होते हैं जिनमें हल्के से गहरे भूरे रंग के धब्बे (धब्बेदार भूरे) होते हैं. बहुत कम जानवर पूरी तरह से सफेद होते हैं. शरीर का कोट आमतौर पर प्राकृतिक चमकदार होता है, लेकिन कुछ जानवरों में सघन बालों वाला कोट भी होता है.

सिरोही बकरी का चेहरा आमतौर पर सीधा या कभी-कभी थोड़ा ऊपर उठा हुआ होता है. कान आम तौर पर सपाट और पत्ती जैसे, मध्यम आकार के और लटके हुए होते हैं. उन्हें पेंडुलस के रूप में वर्णित किया गया है, नीचे की ओर झुके हुए, पत्ती के आकार के होते हैं. नर और मादा दोनों के सींग होते हैं जो आमतौर पर ऊपर की ओर और पीछे की ओर नुकीले सिरे से घुमावदार होते हैं लेकिन हॉर्न पैटर्न भी देखे जाते हैं. पूंछ छोटी से मध्यम लंबाई की होती है और ऊपर की ओर मुड़ी होती है. कुछ सिरोही जानवरों की गर्दन और दाढ़ी मुख्य रूप से व्यस्क नरो में निचले जबड़े के नीचे लटकती है. लगभग 30% जानवरों में मवेशी (Wattles) मौजूद थे. थन छोटा और गोल होता है, जिसमें छोटे निप्पल पार्श्व में रखे जाते हैं.

कृमिनाशक कार्यक्रम

कृमि रोग

 

उम्र

 

सेवन कराने की अवधि

ध्यान देने योग्य विशेष बातें

कॉक्सीडियोसिस (कुकड़िया रोग)

2-3 माह पर

 

 

3-5 दिन तक

6 माह की उम्र तक काक्सीमारक दवा निर्धारित मात्रा में देनी

चाहिये

अन्तः परजीवी (डिवामिंग)

3 माह की उम्र

बरसात के प्रारम्भ में तथा अन्त में

सभी पशुओं को एक साथ दवा देनी चाहिये

बाह्य परजीवी

(डिपिंग)

सभी उम्र

 

सर्दियों के प्रारम्भ में तथा अन्त में

सभी पशुओं को एक साथ से नहलाना चाहिये

 

टीकाकरण

बीमारी

प्रारम्भिक टीकाकरण

पुन: टीकाकरण

 

प्रथम टीका

बूस्टर टीका

 

खुरपका व मुंहपका रोग

3-5 महीने की उम्र

प्रथम टीकाकरण के 3-4 सप्ताह के पश्चात्

6 माह

बकरी चेचक

3-5 महीने की उम्र

प्रथम टीकाकरण के 1 माह के पश्चात्

प्रतिवर्ष

गलघोंटू/ हिमोरेजिक सेप्टीसीमीया (एच. एस.)

3 महीने की उम्र

प्रथम टीकाकरण के 3-4 सप्ताह के पश्चात्

6 माह/ प्रतिवर्ष

नियमित जाँचें कुछ महत्वपूर्ण रोग जिनके लिए नियमित जांच जरुरी है इसलिए इनका पालन ​​अवश्य करें:

बीमारी

अवधि/अन्तराल

विशेष विवरण

ब्रुसेल्लोसिस

6 माह / प्रतिवर्ष

संक्रमित पशुओं को तुरन्त वध कर गहरे गड्डे में दफन करें.

जोहनीज बीमारी

6 माह / प्रतिवर्ष

संक्रमित पशुओं को झुण्ड से तुरन्त निकाल देना चाहिये.

बकरियों को कब और कैसे बेचें :

  1. बकरियों का मूल्य निर्धारण वजन के हिसाब से करेंl

  2. छोटे एवं मध्यम नस्ल की बकरी बेचने का उत्तम समय 6-9 महीना एवं बड़े नस्ल का 7-12 महीना. बकरी पालक उपयुक्त वैज्ञानिक विधियों को अपनाकर अधिक से अधिक लाभ ले सकते हैं.

डॉ  जय  प्रकाश1 , बृजेश यादव2,  रामसागर3
1वैज्ञानिक (पशुपालन), 2मृदा वैज्ञानिक, 3फार्म प्रबंधक

कृषि विज्ञान केंद्र, उजवा दिल्ली

English Summary: major indigenous breeds of goats farming business in india goat rearing by scientific method training for goat farming Published on: 04 March 2024, 06:44 IST

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