मधुमक्खियों की चार प्रमुख प्रजातियां भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती हैं. भारतीय व इटालियन मधुमक्खियां पालतू होती हैं जिनको आधुनिक लकड़ी के बक्सों में पालते हैं. पहाड़ी और छोटी मक्खी जंगली होती है जिनका पालन नहीं किया जा सकता है. ये जातियां इस प्रकार हैं-
1. छोटी मधुमक्खी या मूंगा (Little bee (Apis florea)
स्वभाव से जंगली यह मधुमक्खी खुले वातावरण में छत्ता बनाती है. ये मधुमक्खियां इकहरा छत्ता पेड़ की टहनी को बीच में बनाती हैं और मौसम के अनुसार स्थान परिवर्तन करती है लेकिन अधिक दूर तक नहीं जाती. इस प्रजाति की मक्खियां बाकी तीन प्रकार की मक्खियों से छोटी होती है. आमतौर पर ये मधुमक्खियाँ छोटे आकार के फूल, जड़ी बूटियों से शहद इक्कठा करती हैं. इस मक्खी के एक वंश से वर्ष भर में शहद पैदा करने की क्षमता 1-1.5 किलोग्राम ही है.
2. पहाड़ी या सारंग मधुमक्खी (Rock bee (Apis dorsata)
इसके छत्ते पेड़ों, ऊँची इमारतों, पानी की टंकियों आदि पर काफी ऊंचाई पर पाए जाते हैं. यह मधुमक्खियां आकार में सबसे बड़ी होती है यह स्वभाव से बहुत गुस्सैल होती हैं और मौसम के अनुसार स्थान बदलती रहती है जिसके कारण इनकी शहद पैदा करने की क्षमता दूसरी प्रजातियों से कहीं अधिक होती है. इससे औसतन 30 से 35 किलोग्राम शहद प्रति छत्ता मिल सकता है.
3. भारतीय मधुमक्खी (Indian hive bee / Asian bee (Apis cerana indica)
यह मधुमक्खियां अंधेरे स्थानों पर कई समांतर छत्ते बनाती है. इन के छत्ते मकानों के आलों, चिमानयों, पेड़ों के कोटरों, खंडहरों के विभिन्न प्रकार के खोखले स्थानों तथा गुफाओं की छतों पर पाए जाते हैं. इस प्रजाति की मधुमक्खियों का स्वभाव पश्चिमी देशों की मधुमक्खियों की प्रजाति से मिलता है. यह आकार में बड़ी होती हैं. इस मधुमक्खी को भारत के पहाड़ी व दक्षिण प्रदेशों में पाला जाता है. इनसे लगभग 7 से 10 किलो शहद प्रति वर्ष प्रति छत्ता प्राप्त किया जा सकता है.
4. इटालियन मधुमक्खी (European bee / Italian bee (Apis mellifera)
इस प्रजाति की मधुमक्खियों को भारत के पश्चिमी देशों से 1964 में लाया गया था. इस प्रजाति की मधुमक्खियां पहाड़ी प्रजाति की मधुमक्खियों से छोटी तथा अन्य दो प्रजातियों से बड़ी होती है यह मधुमक्खियां स्वभाव से शांत एवं अधिक मेहनती होती है इन मधुमक्खियों को समय-समय पर अच्छे मॉन्टरों वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित कर इनसे 40 से 50 किलोग्राम शहद प्रतिवर्ष प्राप्त किया जा सकता है.
शहद निकालना (Honey extraction)
मधुमक्खियों द्वारा फूलों से इक्कठे मकरंद से तैयार किया हुआ मीठा गाढ़ा एवं सुगंधित पदार्थ शहद कहलाता है. मधुमक्खियां फूलों से मीठा रस चुस्ती है और मधुमक्खी घर में बने मॉमी छतों के कोष्ठों में उड़ेल देती हैं. उस समय मकरंद में नमी यानि पानी की मात्रा लगभग 10-70% तक होती है. मधुमक्खियां अपने पंखों से हवा देकर एक्सट्रा नमी को उड़ा देती है और जब पानी की मात्रा 16 से 18% तक रह जाती है तब उसे मॉम की टोपियों द्वारा बंद कर देती है. इसे ही तैयार शहद कहते हैं. शहद निकालते समय यह बहुत जरूरी है कि शहद केवल उन्हीं चौखटों से निकाले जिनके तीन चौथाई भाग पर मोम की टोपियां लगी हुई है. बाकी चौघटों से शहद ना निकाले क्योंकि यह कच्चा होता है और इसमें नमी की मात्रा अधिक होने के कारण खमीर बनने का खतरा रहता है और शहद में खट्टापन आ जाता है. शहद निकालने के बाद प्रयोग किए गए उपकरणों को साफ करके रखें.
मधुमक्खी का जीवन चक्र (Honey Bee life cycle)
मधुमक्खी का जीवन चक्र 4 अवस्थाओं में पूरा होता है. प्रत्येक मधुमक्खी के जीवन में अंडा, सूँडी, प्युपा और प्रौढ़ अवस्थाएं होती है. रानी मधुमक्खी छतों के कोष्ठों के में तले पर अंडे देती है. अंडे दो प्रकार के होते हैं सजीव जो गर्भित होते है और निर्जीव जो गर्भित नहीं होते है. सजीव अंडों से रानी और कमेरी मधुमक्खियां उत्पन्न होती हैं जबकि निर्जीव अंडों से केवल नर मधुमक्खियां पैदा होती है. रानी मधुमक्खी तीन दिन तक रॉयल जेली खिलाती हैं. रानी, नर, कमेरी (श्रमिक मक्खियाँ) मधुमक्खियों के शिशुओं का भोजन अलग अलग होता है. रानी शिशु को शहद व पराग का मिश्रण तथा नर शिशु को डरोन जैली खिलाई जाती है. रानी शिशु 5 दिन, कमेरी शिशु 5 से 6 दिन और नर शिशु 5 से 6 दिन में बढ़कर युवा अवस्था में पहुंच जाते हैं. इसके बाद प्युपा अवस्था में आ जाते है. इस प्रकार अंडे से लेकर युवा अवस्था शुरू होने तक रानी का जीवन चक्र 15 से 20 दिनों में, कमेरी का 20 से 21 दिनों में तथा नर का जीवन चक्र 23 से 24 दिनों में पूरा हो जाता है.
महीनों के हिसाब से करें देखभाल (Honeybee care by months)
दिसंबर से फरवरी महीना (सर्दी):
सर्दियों में मधुमक्खी की कॉलोनियां बड़ी जल्दी बढ़ती हैं इसलिए फ्रेमो पर मॉमी सीट लगाना बहुत जरूरी होता है. यह मधुमक्खी के लिए बच्चे पैदा करने एवं शहद इकट्ठा करने का उपयुक्त समय है क्योंकि इस समय सरसों व राया फसलों में फूल खिलते हैं. जब कॉलोनी 10 फ्रेमों पर चली जाती है तब मधु कक्ष लगाने की जरूरत होती है तथा मधुमक्खियां अधिक शहद इकट्ठा करटी है. अच्छे प्रबंधन द्वारा इस समय 3-4 बार शहद निकाला जा सकता है. फरवरी में नई रानी कोशिकाएं बनती है. इस समय अच्छी संख्या वाले मधुमक्खी बक्सों का विभाजन करना चाहिए. बक्सों को ठंडी हवाओं से बचाकर खुली धूप में रखा जाए तथा बक्सों को सर्दी से बचाव के लिए सूखी घास या फटे पुराने कपड़ों की पैकिंग करके ढक दिया जाना चाहिए. बक्सों को हवा की दिशा से बचाना चाहिए.
मार्च से मई महिना (बसंत व गर्मी की शुरुआत)
इस समय नींबू, आडू, जामुन, सफेदा, रिजका, बरसीम, सूरजमुखी, सिरिस व सब्जियों जैसे प्याज मूली, गोभी, मेथी, गाजर आदि के फूल उपलब्ध होने के कारण शहद इकट्ठा करने व बक्सों में मधुमक्खियों की संख्या बढ़ाने का यह उपयुक्त समय है. मई के अंत तक शहद निकालने की संभावना रहती है. बक्सों को अधिक देर तक खुला न छोड़ें व रोकथाम के उपयुक्त उपाय करने चाहिए.
जून से सितंबर (गर्मी व बरसात का मौसम)
यह फूलों की कमी वाला समय है और रानी मक्खी अंडे कम देती है, इसके साथ ही कॉलोनी में भोजन की कमी हो जाती है. इस समय मधुमक्खी पलकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए कॉलोनियों को सुरक्षित रखने के लिए कृत्रिम भोजन और पानी का प्रबंधन करना चाहिए.
मधुमक्खी का कृत्रिम भोजन कैसे बनाए (How to make artificial Honey bee food)
जून से सितंबर के बीच मधुमक्खी वंशो को मकरंद और पराग की कमी का सामना करना पड़ता है तथा मधुमक्खी वंशों की बढ़वार पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है और वंश भी कमजोर पड़ जाते हैं. इस प्रकार के भोजन की कमी को कृत्रिम भोजन (बनाया हुआ भोजन) देकर दूर किया जा सकता है. ऐसे समय में मकरंद के स्थान पर चीनी की चाशनी 50% मधुमक्खीयों को दी जाती है. पराग की कमी होने पर परागपूरक भोजन दिया जाता है जिसमें सोयाबीन का आटा 25 भाग, पाउडर दूध 15 भाग, बेकिंग यीस्ट 10 भाग, पिसी हुई चीनी का 40 भाग और शहद के 10 भाग को मिलाकर आटे की तरह गूंथ लें. 100-150 ग्राम की पेड़ी कागज पर रखकर फ्रेमो पर लटका कर रखें. इस भोजन से रानी मधुमक्खी दोबारा से अंडा देना शुरु कर देगी.
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