दुधारू पशुओं को सर्दी में विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है. इससे पशुओं की उत्पादन एवं प्रजनन क्षमता में गिरावट के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाया जा सकता है. भारत दूध उत्पादन में एक अग्रणी देश है, लेकिन प्रति पशु दूध उत्पादन बहुत कम है. सर्दियों में पशुओं पर तनाव के कारण उनेक खान-पान, पोषण एवं दूध उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है. जानवरों का भी अपना एक कमफर्ट जोन होता है, जैसे-जैसे तापमान कम होता जाता है, पशुओं में शारीरिक परिवर्तन देखने को मिलने लगता है, जो इसके दूध उत्पादन पर भी असर डालता है. ऐसे में ठंड में पशुओं की खास देखभाल की जरुरत होती है तो आइये आपको हम पशुओं की देखभाल के कुछ तरीकों के बारे में बताते हैं.
देखभाल के तरीके
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इस ठंड के दौरान बाहरी परजीवी से बचाव के लिए पशुओं को दवा से नहलाये और रोग लगने पर पशु चिकित्सक के परामर्श से ही इंजेक्शन लगवाएं.
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पशुओं का उचित समय पर कृत्रिम गर्भाधान कराएं. बछिया प्राप्त करने के लिए सेक्स शॉर्टेड सीमेंन, अर्थात लिंग निर्धारित वीर्य का प्रयोग कृत्रिम गर्भाधान में कराएं.
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खुरपका, मुंहपका रोग से बचाव हेतु समय-समय पर टीकाकरण कराते रहें. पशुओं का गर्भ परीक्षण कराएं तथा पशुओं को बिमारी होने पर जांच उपरांत उपचार कराएं.
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नवजात शिशुओं को परजीवी नाशक औषधि बदल-बदल कर देते रहना चाहिए. दुधारू पशुओं को थनैला रोग से बचाने के लिए संपूर्ण दूध को मुट्ठी बांधकर निकालें. दूध निकालने से पूर्व एवं दूध निकालने के पश्चात थनों को पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से धुलाई करें. दूध निकालने के पश्चात पशु को आहार अवश्य दें, ताकि वह कम से कम आधे घंटे तक जमीन पर न बैठ पाए, क्योंकि दूध निकालने के पश्चात करीब 20 मिनट तक टीट कैनाल खुली रहती है और जमीन पर बैठने से थनैला रोग होने की संभावना बढ़ सकती है.
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बरसीम रिजका एवं जई का सूखे चारे को साइलेज के रूप में इकट्ठा कर चारे की कमी के समय के लिए सुरक्षित रख दें और गर्भित एवं दुधारू पशुओं को 50 ग्राम खनिज मिश्रण एवं 50 ग्राम नमक को प्रतिदिन देते रहना चाहिए.
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