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घोड़ा पालन में है कमाई के सुनहरे अवसर, जानिए कैसे

जंगलों, पहाड़ों और दुर्गम रास्तों पर चलने में घोड़ों से बेहतर कोई नहीं है. आज भी पशुपालन में घोड़ों का स्थान ऊपर है. प्राचीन काल से ही घोड़ें हमारी संस्कृति और सभ्यता के अभिन्न अंग रहे हैं. बदलते हुए समय के साथ यातायात के लिए भले ही गाड़ी-मोटर का उपयोग होने लगा हो, लेकिन घोड़ो के प्रति लोगों का लगाव कम नही हुआ हैं.

सिप्पू कुमार
सिप्पू कुमार

जंगलों, पहाड़ों और दुर्गम रास्तों पर चलने में घोड़ों से बेहतर कोई नहीं है. आज भी पशुपालन में घोड़ों का स्थान ऊपर है. प्राचीन काल से ही घोड़ें हमारी संस्कृति और सभ्यता के अभिन्न अंग रहे हैं. बदलते हुए समय के साथ यातायात के लिए भले ही गाड़ी-मोटर का उपयोग होने लगा हो, लेकिन घोड़ो के प्रति लोगों का लगाव कम नही हुआ हैं. बेहतर नस्ल वाले घोड़ो की फौज और पुलिस में विशेष मांग है. यही कारण है कि घोड़ा पालन आर्थिक रूप से भी लोगों के लिए लाभकारी है. चलिए आज हम आपको घोड़ों के कुछ प्रमुख नस्ल के बारे में बताते हैं.

घोड़ा पालन और प्रमुख क्षेत्र

भारत के हर राज्य में घोड़ों का पालन होता है. लेकिन इन्हें पालने में राजस्थान, पंजाब, गुजरात और मणिपुर का नाम सबसे आगे है. इनकी कई नस्लों का मांग भारत के अलावा बाहरी देशों में भी है. भारत में पाए जाने वाले मारवाड़ी, काठियावाडी घोड़े को अव्वल दर्जा प्राप्त है. मारवाड़ी घोड़े का उपयोग तो यातायात के अलावा युद्ध कार्यों में भी राजाओं-महाराजाओं द्वारा किया जाता रहा है.

मारवाड़ी घोड़ें

इन घोड़ों को आज भी लोग पालना अपनी शान समझते हैं. विशेषकर क्षत्रीय समाज में तो ये बहुत लोकप्रिय है. मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की लम्बाई 130 से 140 सेमी. और ऊँचाई 152 से 160 सेमी तक हो सकती है. इनमें 22 सेमी के चौड़े फेस वाले घोड़ों की विशेष मांग है. आज के समय में इनका इस्तेमाल ज्यादातर खेल प्रतियोगिताओं, सेन्य कार्यों और सरकारी कामों में लिया जाता है. इस नस्ल की घोड़ो की कीमत सामान्य घोड़ों से बहुत अधिक है. एक घोड़े की कीमत कई लाख तक की भी हो सकती है. कहने का तात्पर्य यह है कि इनकी शान किसी कार से कम नहीं है.

कठियावड़ी घोड़े

कठियावाड़ी घोड़ों की की मांग भी बहुत अधिक है. इसका मूल स्थान गुजरात का सौराष्ट्र इलाका रहा है. हालांकि इसको लेकर सभी विद्वानों का मत एक सा नहीं है. यह गुजरात के राजकोट, अमरेली और जूनागढ़ जिलो में पाए जाते हैं. इनका रंग ग्रे और गर्दन अधिक लम्बी होती है. इसका गोदा 147 सेमी. तक ऊंचा हो सकता है.

स्पीती घोड़े

स्पीती घोड़ो को पहाड़ी इलाको के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. ये अधिकतर हिमाचल प्रदेश के क्षेत्रों में उपयोग किए जाते हैं. पहाड़ी क्षेत्रों पर चलने में इनको महारत हांसिल है. इनकी ऊँचाई आमतौर पर 127 सेमी तक होती है.

ज़नस्कारी घोड़े

बर्फिले रास्तों पर चलने में ज़नस्कारी घोड़े का कोई मुकाबला नहीं है. सेना के जवानों की यह पहली पसंद है. इन घोड़ों को लेह में पाया जाता है. इन घोड़ो का इस्तेमाल अधिकतर बोझा धोने में भी किया जाता है.

English Summary: horse farming can give you lots of profit know more about it Published on: 02 April 2020, 05:21 IST

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