मत्स्यकी विज्ञान, विज्ञान की ऐसी शाखा है जिसमें जल एवं जलचरों से सम्बन्धित अनेक विषयों का समग्र अध्ययन किया जाता है। मत्स्यकी विज्ञान के अंतर्गत जलकृषि, जलजीवशाला एवं बहुरंगी मछलियों का अध्ययन अतं:स्थलीय जल स्त्रोतों व समुद्र में प्रगृहण मत्स्यकी, जालों एवं नावों का निर्माण व रखरखाव, सामुद्रिकी, मत्स्य प्रजनन, मत्स्य प्रौद्योगिकी एवं मत्स्य उत्पादों का प्रसंस्करण निर्यात इत्यादि विषयों का अध्ययन एवं अनुसंधान किया जाता है। इन विषयों में जीव विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान, गणित, अर्थशास्त्र, प्रबन्धन, सामाजिक विज्ञान इत्यादि मूल विषयों का समायोजन रहता है।
मत्स्यकी अध्ययन का मूल उद्देश्य जल के वैज्ञानिक एवं व्यावसायक प्रबन्धन और मत्स्यकी उत्पादन की कार्यप्रणाली की समझ प्राप्त करना है। हमारे देश के दस राज्यों में फैले 8000 किलोमीटर से अधिक लम्बे व विशाल समुद्र तट के अलावा लाखों हैक्टेयर अंतः स्थलीय जल राशि में मत्स्य उत्पादन एवं प्रबंधन की विपुल सम्भावनाएं हैं। भारत में ही लगभग 1 करोड़ लोग मछली पालन से सीधे अथवा परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। विश्व में जलकृषि द्वारा मत्स्य उत्पादन में हमारे देश का स्थान दूसरा है। अपार जल स्त्रोतों और विभिन्न जल पारिस्थितिक तंत्रों के सदुपयोग से हमारे देश में मत्स्यकी में रोजगार एवं विकास की सम्भावनाएं छुपी हैं।
हमारे देश में उपलब्ध जल स्त्रोतों में से सिर्फ 30 प्रतिशत जल राशि का उपयोग ही मछली पालन के लिए किया जाता है। अतः लगभग अनछुए मात्स्यकी क्षेत्र की महत्ता कृषि एवं पशुपालन से कम नहीं है। वस्तुतः पिछले पांच दशकों में मत्स्यकी क्षेत्र में 7 प्रतिशत से भी अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है जो उल्लेखनीय है। इस क्षेत्र के विकास के लिए सरकार विभिन्न संस्थाओं, विभागों, विश्वविद्यालयों द्वारा निरन्तर प्रयासरत है। भारत में अनेक शैक्षणिक संस्थान मत्स्यकी विज्ञान में स्नातक एवं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम उपलब्ध कराते हैं।
पाठ्यक्रम एवं प्रवेश योग्यता:
मत्स्यकी में स्नातक स्तर पर बी.एफ.एस.सी. की डिग्री प्रदान की जाती है। इस चार वर्षीय पाठ्यक्रम में प्रवेश हेतु अभ्यर्थी के पास विज्ञान विषय जैसे गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, भौतिकी रसायन विज्ञान अथवा कृषि विज्ञान विषयों में न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों के साथ 10$2 की योग्यता होनी चाहिए।
स्नातकोत्तर स्तर पर देश के चुनिंदा मत्स्यकी महाविद्यालयों में विभिन्न विषयों में दो वर्षीय पाठ्यक्रम द्वारा एम.एफ.एस.सी. की डिग्री प्रदान की जाती है।
मान्य विश्वविद्यालयों में बी.एफ.एस.सी. की डिग्री प्राप्त विद्यार्थी देश के किसी भी मत्स्यकी महाविद्यालय में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा आयोजित जेआरएफ फैलोशिप परीक्षा के माध्यम से स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकते हैं। स्नातकोत्तर स्तर पर फिशरीज एक्सटेंशन, फिश न्यूट्रिशन एवं बायो केमेस्ट्री, फिश बिजनेस मैनेजमेंन्ट एवं फिशरीज इकोनामिक्स, मेरीकल्चर एवं इनलैण्ड एक्वाकल्चर, फिश इण्डस्ट्रीज टेक्नोलॉजी, फिश प्रोसेसिंग टेक्नालोजी, फिश जैनेटिक्स एवं ब्रीडिंग, फिश बायोलॉजी एवं माइक्रोबायोलाजी, फिशरीज रिसोर्स मैनेजमेन्ट, एक्वेटिक एनवायरमेन्ट मैनेजमेन्ट इत्यादि विषयों में विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा पाठ्यक्रम चलाए जाते हें।
मत्स्यकी मे छात्रवृति:
स्नातकोत्तर (एम.एफ.एस.सी.) एवं स्नातक (बी.एफ.एस.सी.) पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् वर्ष में एक बार (ए.आई.ई.ई.ए.) प्रतियोगी परीक्षा आयोजित करती है। योग्य विद्यार्थियों को प्रवेश के लिए अनुमति के साथ क्रमशः रू. 8640/- एवं रू. 1000/- प्रतिमाह छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है साथ ही विद्यार्थियों को पाठ्य पुस्तकों के लिए सहायता राशि भी मिलती है। इसके अलावा विभिन्न संस्थानों व समाज कल्याण विभाग द्वारा भी योग्य एवं आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को छात्र वृत्तियां प्रदान की जाती है।
मत्स्य शिक्षण संस्थान:
देश के विभिन्न संस्थान एवं कृषि विश्वविद्यालय मत्स्य शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करते हं।
- श्रीनगर (जम्मू कश्मीर)
- वेरावल (गुजरात)
- रत्नागिरी (महाराष्ट्र)
- रंगाइलुण्डा, बरहामपुर (उडीसा)
- नागपुर (महाराष्ट्र)
- उदयपुर (राजस्थान)-एमपीयूएटी
- बैंगलोर (कर्नाटक)
- धौलीपुला (बिहार)
- टूटीकोरिन (तमिलनाडू)
- अगरतला (त्रिपुरा)
- पाननगढ़, कोच्ची (केरला)
- राहा-नवगांव (असम)
- पंतनगर (उतराखंड)
- फैजाबाद (उ.प्र.)
- मुथुकुर नेल्लोर (आ.प्र.)
- लुधियाना (पंजाब)
- मोहनपुर (प.बं.)
- कंवर्धा (छ.ग.) मत्स्यकी शिक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में आई.सी.ए.आर. के कई संस्थान भी कार्यरत हैं।
मत्स्यकी में रोजगार की उपलब्धता:
मत्स्यकी विज्ञान में शिक्षा प्राप्त विद्यार्थियों के लिए देश-विदेश में रोजगार के अनेक अवसर खुले है। मत्स्यकी में स्नातक छात्र फिश फार्म मैनेजर, हैचरी मैनेजर, मत्स्य प्रसंस्करण, गुणवत्ता नियंत्रक, बहुरंगी मछली प्रजनन- पालन इत्यादि क्षेत्रों में कार्य कर सकते हैं। इन क्षेत्रों के अलावा स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त छात्र मत्स्य अनुसंधान, परियोजना प्रबन्धन, मत्स्य सूचना प्रौद्योगिकी, मत्स्य सलाहकार सेवा, जल पारिस्थितिकी एवं गुणवत्ता विशेषज्ञ इत्यादि क्षेत्र में कार्य एवं स्वरोजगार प्राप्त कर सकते हैं। मत्स्यकी में स्नातक एवं स्नातकोत्तर योग्यता धारी युवाओं को राज्य एवं अन्य सरकारों द्वारा संचालित मत्स्य विभागों में सहायक एवं मत्स्य विकास अधिकारी के पदों पर भी नियुक्ति मिल सकती है। मत्स्यकी में स्नातकोत्तर एवं पी.एच.डी. शिक्षा धारकों के लिए कई मत्स्य अनुसंधान संस्थानों में वैज्ञानिक एवं अनुसंधान अधिकारियों की भर्ती प्रतियोगी परीक्षाओं द्वारा की जाती है।
मत्स्यकी में शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी कई नेशनल एवं प्राईवेट सेक्टर के बैंकों में प्रशिक्षु एवं कृषि ऋण अधिकारी के पदों पर समुचित प्रक्रिया द्वारा नियुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। मत्स्यकी महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के प्लेसमेन्ट सेन्टर्स द्वारा समय-समय पर बैंकिंग, गैर- सरकारी एवं निजी क्षेत्रों में कार्यरत संस्थानों के विभिन्न पदों हेतु कैम्पस इन्टरव्यू भी करवाए जाते हैं।
इन क्षेत्रों के अलावा विदेशों में भी मात्स्यकी स्नातक फार्म मैनेजर, परियोजना अधिकारी, अनुसंधान एवं अन्य उच्च शिक्षा क्षेत्र मंे रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। मत्स्यकी में स्वरोजगार की भी अनेक सम्भावनाएं हैं। मत्स्य पालन, प्रजनन एवं मत्स्य बीज उत्पादन, बहुरंगी मछली पालन पर आधारित व्यवसाय, मत्स्य प्रसंस्करण, मत्स्य प्रौद्योगिकी, नाव एवं जाल निर्माण एवं मत्स्य उत्पादों के निर्यात के क्षेत्र में स्वरोजगार इकाईयां भी स्थापित की जा सकती हैं। सरकार द्वारा इन इकाईयों को प्रोत्साहन हेतु अनुदान एवं वित्तीय संस्थाओं द्वारा ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
डॉ. सुबोध कुमार शर्मा
प्राध्यापक, मात्स्यकी महाविद्यालय एवं
जनसम्पर्क अधिकारी
म.प्र.कृ.प्रौ. विश्वविद्यालय, उदयपुर
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