गाय पालन के लिए उपयोग किए जाने वाले घर को गौशाला कहा जाता है. हिन्दू धर्म में गाय को माता माना जाता है और उसकी पूजा अर्चना की जाती है. भारत एक दुग्ध उत्पादन देश है और गाय के पालन के लिए एक अच्छी गौशाला की जरुरत होती है. ऐसे में आज हम आपको गौशाला प्रबंधन के तरीकों के बारे में बताएंगे.
चारा
गाय को चारा भूसा, खल-चूरी-छिलका, दलिया, नमक तथा अन्य पोषण की आवश्यकता होती है. चारा काटने की मशीन से लेकर इसकी पिसाई-चक्की भी गौशाला-परिसर में होनी चाहिये. ठंडियों में गर्भवती गायों की विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है इनकी देखभाल के लिए गर्म जगहों का चयन जरुर करें. दूध बढ़ाने के लिये गौशाला में हरा चारा, जई, बरसीम, बिनौले की खली, चने का छिलका, जौ अथवा गेहूँ का दलिया की व्यवस्था भी जरुर रखें.
देखभाल
गायों के पीने तथा नहाने के लिये गौशाला के पास पानी की व्यवस्था होनी आवश्यक है. जलापूर्ति के लिये ट्यूबवेल, भूमिगत जलाश्य तथा ओवर हैड टैंक जरुर होने चाहिये. गौशाला में सभी गायों के लिये गर्मी-सर्दी तथा वर्षा से बचाव के लिए सभी साधनों की व्यवस्था होनी चाहिए. गायों को बिना पक्के फर्श पर बैठना पसन्द होता है. इसलिये गायों के आवासों में पक्के फर्श नहीं लगाये जाये और यदि लगाये भी जाये तो ऐसे हो कि गाय फिसल न सके और साथ में कुछ स्थान कच्चा भी छोड़ दिया जाए.
वर्गीकरण
गाय के विभिन्न वर्गों को अलग-अलग आवास तथा बाड़ों में रखा जाना चाहिये. बछिया, बछड़े, गर्भवती गाय तथा दूध देनेवाली गाय आदि सब अलग-अलग आवास तथा बाड़ों में रखे जाने चाहिए.
गर्भाधान
गर्भाधान का समय होने पर गाय रँभाती हैं. उस समय उसका गर्भाधान करवा देना चाहिए. गर्भाधान के लिये गाय को उत्तम जाति के ही उत्तम देशी साँड़ से प्राकृतिक गर्भाधान कराना सर्वोतम रहता है. ज्यादा दूध देने वाली देशी गाय के बछड़ों को अच्छी तरह खिला-पिलाकर अच्छे साँड तैयार किये जाने चाहिये और उनकी माता के दूध का रिकार्ड भी रखा जाना चाहिए.
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चिकित्सा
जब ज्यादा संख्या में जानवर एक साथ रहेंगे तो रोगों की फैलने की आशंका भी बढ़ जाती है. छूत की बीमारियां जैसे की खुरपका, मुँहपका की रोकथाम तथा बीमार पड़ने वाली गायों की चिकित्सा के लिये एक नियमित चिकित्सक तथा औषधालय होना चाहिये.
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