मानवजाति के उद्भव से लेकर इसके पल्लवित होने तक पशुओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है. ईश्वर ने अपनी इस रचना की सुंदरता को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के पशुओं को बनाया है. गाय, भैंस, बकरी, भेड़ें आदि पशुओं का पालन किसान और पशुपालकों के लिए लाभदायक होता हैं. इस लेख में सभी पशुओं के बारे में तो नहीं लेकिन भेड़ की एक ऐसी किस्म के बारे में पढ़ें, जो पशुपालकों के लिए अच्छी कमाई का जरिया बन सकती है. पढ़िएं गद्दी भेड़ के बारे में पूरी जानकारी.
गद्दी भेड़ की विशेषता
गद्दी भेड़ें पहाड़ी इलाकों में पाई जाती हैं. यह आमतौर पर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पाए जाती हैं. यह मध्यम आकार की होती है. इनके रंगों की बात करें तो यह काली, खाकी और भूरे रंगों की होती है. लेकिन कुछ पशु विशेषज्ञों का कहना है कि प्राचीन काल से लेकर अब तक इन भेड़ों के रंगों में कई तरह के बदलाव देखे गए हैं. इन भेड़ों का वजन 29 से 34 किलोग्राम तक का होता है. वहीं इनकी लंबाई 64 से 69 सेमी तक की होती है. इनसे प्राप्त होने वाले ऊन की बात करें तो यह 443 से लेकर 469 ग्राम तक ऊन देने में सक्षम होते हैं. यह अन्य भेड़ों की तुलना में अत्यधिक मात्रा में ऊन देने के लिए विख्यात है.निसंदेह, मैरिनो भेड़ों में ऊन देने की क्षमता ज्यादा होती है, लेकिन यह भारतीय नहीं बल्कि विलायती भेड़ है, जो मूलत: रूस और ऑस्ट्रेलिया से भारत में लाई गई हैं. लेकिन गद्दी भेड़ें मूलत: भारतीय हैं, जो मूख्य रूप से भारत के पहाड़ी इलाकों में पाई जाती हैं. पशुपालक इनसे प्राप्त होने वाले ऊन से अच्छा खासा मुनाफा अर्जित कर लेते हैं.
गद्दी भेड़ों का क्या है आहार
वहीं, अगर गद्दी भेड़ों के आहार की बात करें तो इनके आहार में खर्चा भी कम आता है. इन्हें पत्ते, फूल, बसिया और फलिया आहार में दिया जाता है. इसके अलावा इन्हें लोबिया, ज्वार, बरसीम, ज्वार, मटर, पीपल, आम, अशोक, नीम, बेर, केला, गोखरू, खेजड़ी, करोंदा भी दिया जाता है.
गद्दी भेड़ों को होने वाली बीमारियां
गद्दी भेड़ों को होने वाली बीमारियों व उनके उपचार के बारे में जानना उन सभी पशुपालकों के लिए उपयोगी साबित हो सकता हैं, जो भेड़ पालन प्रारंभ करना चाहते हैं.
एसोडोसिस:
आमतौर पर गद्दी भेड़ों में यह बीमारी अत्य़धिक मात्रा में अनाज खाने से होती है. कई बार ऐसा होता है कि भेड़ों को पशुपालक चरने के लिए छोड़ देते हैं, जिसकी वजह से वे अनियंत्रित होकर कुछ भी खा लेती हैं, जिसके चलते वे इस बीमारी से ग्रसित हो जाती हैं.
उपचार: इस बीमारी से उपचार के लिए भेड़ों को १० ग्राम सोडियम बाइकोर्बोनेट की खुराक दी जानी चाहिए. ऐसा करके भेड़ों को इस बीमारी से ग्रसित होने से बचाया जा सकता है.
राइग्रास विषाक्तता
भेड़ों में यह बीमारी विषाक्त पदार्थों का सेवन करने से होती है. जिसकी वजह से भेड़ों के मस्तिष्क को नुकसान पहुंचता है. यह विषाक्त जीवाणुओं द्वारा किया जाता है. कई मौकों पर चरने के दौरान भेड़ें संक्रमित पत्तों को खा लेती हैं, जिसकी वजह से वे इस तरह बीमारियों से ग्रसित हो जाती हैं.
उपचार: इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद भेड़ को अलग-अलग स्थानों पर चराना चाहिए.
चीजी लैंड
यह बीमारी फेफड़ों व लिम्फा में मवाद भरने के कारण होती है. इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद भेड़ कम मात्रा में ऊन प्रदान करती है.
उपचार: क्लोस्ट्रायडियल का टीका लगवाने से भेड़ों को इस बीमारी से छुटकारा मिल सकता हैं .
कोबाल्ट में कमी:
यह बीमारी बी-१२ की कमी के कारण होती है.
उपचार: इस बीमारी से ग्रसित होने के बाद भेड़ को तुरंत विटामीन बी-१२ का इंजक्शेन देना चाहिए.
कुकडिया रोग
यह बीमारी डायरिया के कारण होती है. इस बीमारी से ग्रसित होने के कारण भेड़ों से खून भी निकलता है.
उपचार: सल्फा दवा की दो खुराक देने से भेड़ को इस बीमारी से छुटकारा मिल सकता है.
पैर पर फोड़ा
यह बीमारी आमतौर पर भेड़ों में बरसात के मौसम में हो जाती है. भेड़ों में यह बीमारी बैक्टरिया के संक्रमण से होती है.
उपचार: फोड़ों से उपचार करने के लिए भेड़ों को एंटी बायोटिक उपचार देना चाहिए. ऐसा करके भेड़ों को इससे बचाया जा सकता है.
ऊन निकालने की तकनीक
इन भेड़ों से भी अन्य भेड़ों की तरह ही मशीन या हाथ से ऊन निकाला जाता है.
कितना होता है वजन
गद्दी भेड़ों के वजन की बात करें, तो इसका वजन 29 से 34 किलोग्राम होता है. इनके वजन से आप यह सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इनका आहार भी कम ही होता है.
अन्य भेड़ों से कैसे अलग हैं गद्दी भेड़
वहीं, अगर गद्दी भेड़ों की बात करें, तो यह भेड़ अन्य भेड़ों की तुलना में कई दृष्टि से अलग होती हैं. यह भेड़ अन्य भेड़ों की तुलना से कम वजनदार होती है. बहुधा इतनी कम वजन की भेड़ें नहीं पाई जाती हैं और दूसरा इनका आहार भी अन्य भेड़ों की तुलना में कम मूल्य पर प्राप्त हो जाता है.
लोन की सुविधा
हालांकि, वर्तमान में सरकार की तरफ से किसी भी प्रकार की कोई भी आर्थिक सुविधा तो नहीं मुहैया कराई जाती है, लेकिन अगर कोई पशुपालक चाहे तो नाबार्ड से भेड़ खरीदने के लिए आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं.
कितनी मात्रा में मिलता हैं ऊन
वहीं, अगर गद्दी भेड़ों से प्राप्त होने वाले ऊन की बात करें तो पशुपालक इनसे 437 से 696 ग्राम ऊन प्राप्त कर सकते हैं. इससे कम मात्रा में ऊन प्राप्त किया जाता है. ऊन सबसे ज्यादा मेरिनो भेड़ों से प्राप्त किया जाता है. सभी भारतीय भेड़ों की तुलना में सबसे अधिक ऊन अगर कोई भेड़ देती है, तो वो गद्दी भेड़ें ही हैं.
हिमाचल प्रदेश की सरकार ने की पहल
गद्दी भेड़ के आनुवंशिक स्टॉक में सुधार के लिए राज्य सरकार ने 595 करोड़ रुपये की पशुधन विकास परियोजना शुरू की है. परियोजना को चंबा और मंडी जिलों में पांच साल में पूरा किये जाने का लक्ष्य है. केंद्र प्रायोजित परियोजना का उद्देश्य देशी नस्ल के जीन पूल को संरक्षित करना है. अनुमानतः इस परियोजना के लिए केंद्र सरकार 535.50 करोड़ रुपये दे रही है, जबकि 59.50 करोड़ रुपये राज्य कोष से उसके हिस्से के रूप में मिले है. इससे चंबा और मंडी जिलों के दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लगभग 500 परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधरने की संभावना हैं. क्योकि लगभग 5,000 गद्दी भेड़ों की आबादी बढ़ेगी . विभाग ने विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शनियों का आयोजन कर क्रॉस ब्रीडिंग के लिए भेड़ों के चयन की प्रक्रिया भी की है.
क्या कहना है पशुपालन अधिकारी का
वहीं, गद्दी भेड़ों के संदर्भ में अतिरिक्त जानकारी देते हुए उत्तराखंड भेड़ एवं ऊन विकास बोर्ड के पशुपालन अधिकारी डॉ. अशोक बिस्ट कहते हैं कि, पहाड़ी इलाकों में रहने वाले पशुपालकों के लिए गद्दी भेड़ों का पालन फायदे का सौदा साबित हो सकता है. उनका कहना है कि जब कभी-भी पशुपालक भेड़ों का पालन करें तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि वे जिस भेड़ का पालन करने जा रहे हैं, उस स्थान का वातावरण उसके लिए अनुकूल है, क्योंकि हर वातावरण के लिए अलग-अलग नस्लों की भेड़ हैं.
वहीं, पहाड़ी इलाकों में रहने वाले पशुपालकों के लिए गद्दी भेड़ें काफी फायदेमंद मानी जाती है. वे आय के बारे में बताते हुए कहते हैं कि पशुपालक गद्दी भेड़ों से एक से डेढ़ लाख रूपए तक का मुनाफा अर्जित कर सकते हैं. तो किसान भाइयों देरी किस बात की. अगर आप भी कमाना चाहते हैं अच्छा मुनाफा तो शुरू कर सकते हैं गद्दी भेड़ों का पालन. लेकिन भेड़ पालन करने से पहले एक बार इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी जरूर प्राप्त कर लें, क्योंकि आंशिक जानकारी आपके लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है. वहीं, अगर आप इस संदर्भ में मौखिक रूप से अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो निम्नलिखत नंबर पर जरूर संपर्क करें.
डॉ अशोक बिष्ट: उत्तराखंड भेड़ एवं ऊन विकास बोर्ड
दूरभाष नंबर: 9412101723
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