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पंगेशियस के सहारे किसान होंगे मालामाल

मछली के शौकीनों का जायका बनाने के साथ ही मछली पालन करने वालों के लिए काफी अच्छी खबर है. दरअसल उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में तालाबों में रोहू, कताला के साथ ही दक्षिण पूर्व एशिया की पंगेशियस मछली भी अपने जलवे को बिखेरती हुई नजर आएगी। केंद्र सरकार की नीली क्रांति योजना के तहत इस मछली की प्रजाति को बुदेंडखंड क्षेत्र में लाया जा रहा है। इस प्रजाति के लिए वहां पर आठ इंडोर तालाब भी बनाए जा रहे है।

मछली के शौकीनों का जायका बनाने के साथ ही मछली पालन करने वालों के लिए काफी अच्छी खबर है. दरअसल उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में तालाबों में रोहू, कताला के साथ ही दक्षिण पूर्व एशिया की पंगेशियस मछली भी अपने जलवे को बिखेरती हुई नजर आएगी। केंद्र सरकार की नीली क्रांति योजना के तहत इस मछली की प्रजाति को बुदेंडखंड क्षेत्र में लाया जा रहा है। इस प्रजाति के लिए वहां पर आठ इंडोर तालाब भी बनाए जा रहे है। इस प्रजाति की खास बात यह है कि ये मछली देसी और चाइनीज मछली की तुलना में डेढ़ गुना ज्यादा वजनी और दोगुना उत्पादन करने वाली होगी। फिलहाल अगर बुंदेलखंड में मछली पालन की बात करें तो यहां देसी प्रजाति की कतला, रोहू, नैन और चाइनीज प्रजाति में ग्रास, सिल्वर और कॉर्प मछलियां शामिल है। चूंकि इसको इंडोर तालबों में पाला जाएगा तो ऐसे में तालाबों को इसके लिए खास तरीके से ऐसे डिजाइन किया गया है जिसके सहारे पानी की खपत काफी कम होगी। इस प्रक्रिया में पानी की सफाई भी होगी। बुंदेलखंड में चल रहे ये सारे मत्स्यपालन के कार्य सरकार की नीली क्रांति योजना के तहत शामिल है जिसके सहारे मछुआरों की जिंदगी को पूरी तरह से सुधारने का कार्य कर उनकी आमदनी को बढ़ाने का पूरा प्रयास किया जा रहा है।

ऐसी होती है पंगेशियस मछली

पंगेशियस मछली के बारे में बात करें तो इस मछली का औसतन वजन एक से डेढ़ किलो होता है। इसकी पैदावार पांच टन प्रति हेक्टेयर होती है। दूसरी मछलियों की तुलना में पंगेशियस मछली करीब तीन माह में आसानी से तैयार हो जाती है।

देसी से 10 गुना ज्यादा लगेगा बीज

यदि हम पंगेशियस मछली के बीज की बात करें तो देसी और चाइनीज मछली की तुलना में पंगेशियस बीज लगभग 10 गुना ज्यादा लगेगा। अंगुलिका साइज का बीज एक हेक्टेयर में ये लगभग एक लाख लगेगा, जबकि देसी और चाइनीज मछलियों के बीज एक हेक्टेयर में लगभग 10 हजार डाले जाते है जोकि काफी होते है। इन बीजों के कोलकाता से मगाया जाएगा फिलहाल झांसी में इसका प्रयोग पूरी तरह से सफल रहा है।

शार्क प्रजाति की है फिश

यदि हम पंगेशियस प्रजाति के बारे में बात करें तो यह मछली मूलतः दक्षिण पूर्व एशिया की है। इस मछली को शार्क प्रजाति का माना जाता है। इसका मुख्य भोजन कना, चूनी, चोकर, आदि के साथ ही नदियों में पाए जाने वाले जीव-जंतु और घास आदि शामिल है। यह मछली मुख्यता भारत, बर्मा, बांग्लादेश आदि देशों में पाई जाती है। 

जल्द शुरू होगा मछलीपालन

बुंदेलखंड के मऊरानीपुर में जल्द ही पूर्वी एशिया की पंगेशियस मछली का पालन तेजी से शुरू हो जाएगा। इसकी शुरूआत झांसी के मऊरानी पुर से हो रही है। इसके सहारे मत्स्य पालकों की आय काफी तेजी से बढ़ेगी। इसको चूंकि इंडोर तालाब में शुरू किया जाएगा। तालाब बनाने के लिए केंद्र सरकार की नीली क्रांति योजना से मत्स्य पालकों को अनुदान भी दिया जाएगा।

किशन अग्रवाल, कृषि जागरण

English Summary: Farmers will be benefitted with the help of Pangesius Published on: 14 November 2018, 05:36 IST

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