
भारत की प्रमुख दुग्ध उत्पादक भैंस नस्लों में से एक नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) भी है, जो मुख्य रूप से पंजाब राज्य के फिरोज़पुर और अमृतसर जिलों में पाई जाती है. इस भैंस की सबसे बड़ी पहचान है इसके शरीर पर मौजूद सफेद धब्बे, जिन्हें "पंच कल्याणी" कहा जाता है. यह भैंस दूध देने के मामले में मुर्रा नस्ल से मिलती-जुलती है, लेकिन इसकी कुछ विशेषताएं इसे अलग बनाती हैं जैसे कि दीवार जैसी आंखें (walled eyes) और सफेद निशान.
नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) का रंग सामान्यतः काला होता है, और इसकी संरचना मजबूत होती है. इसका पालन आमतौर पर व्यापक (intensive) तरीके से किया जाता है और इसे अच्छे चारे और दाने की आवश्यकता होती है. इस नस्ल की भैंसें अपने उच्च दूध उत्पादन के लिए किसानों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं और इनका दूध फैट से भरपूर होता है. नीली रावी नस्ल किसानों की आमदनी बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकती है. ऐसे में आइए भैंस की देसी नस्ल नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) की पहचान और अन्य विशेषताओं के बारे में विस्तार से जानते हैं-
नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) कहां पाई जाती है?
नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) का नाम दो अलग-अलग क्षेत्रों से आता है - "नीली" नाम सतलुज नदी के नीले पानी से जुड़ा हुआ माना जाता है, जबकि "रावी" नाम उस क्षेत्र से जुड़ा है जो अब पाकिस्तान में है और जहां यह नस्ल अधिक पाई जाती है. 1960 के बाद, इन दोनों नस्लों को एक साथ मिलाकर एक ही नस्ल के रूप में दर्ज किया गया जिसे अब हम " नीली रावी" के नाम से जानते हैं. भारत में यह नस्ल पंजाब के फिरोज़पुर जिले के फरीदकोट, फाजिल्का, ज़ीरा और मखू तहसीलों में तथा अमृतसर के पट्टी और खेमकरण क्षेत्रों में पाई जाती है.
नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) का मुख्य उपयोग और खासियत
नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) का मुख्य उपयोग दूध उत्पादन है. यह नस्ल विशेष रूप से डेयरी उद्देश्यों के लिए पाली जाती है और इसका दूध उच्च गुणवत्ता वाला होता है. इसके दूध में फैट की मात्रा औसतन 6.8 प्रतिशत तक पाई जाती है, जिससे यह मक्खन और घी बनाने के लिए भी उपयुक्त होती है. यह नस्ल मुख्यतः खानपान संबंधी उपयोगों के लिए जानी जाती है और इसका मांस उत्पादन उद्देश्य नहीं होता.
नीली रावी भैंस की शारीरिक बनावट और पहचान
नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) का रंग आमतौर पर गहरा काला होता है. इसकी आंखें दीवार जैसी (walled) होती हैं जो इसे खास बनाती हैं. इसके शरीर पर सफेद धब्बे होते हैं जो माथे, चेहरे, थूथन, पैरों और पूंछ के पास दिखाई देते हैं. मादा भैंसों में यह सफेद धब्बे "पंच कल्याणी" के नाम से पहचाने जाते हैं और इन्हीं विशेषताओं के आधार पर इन्हें शुद्ध नीली रावी माना जाता है. इसके सींग छोटे और गोलाई में मुड़े होते हैं. यह मजबूत, भारी शरीर वाली नस्ल होती है जो डेयरी फॉर्मिंग के लिए आदर्श है.
नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) का पालन-पोषण और देखभाल
इस नस्ल को इंटेंसिव प्रबंधन प्रणाली के तहत पाला जाता है, जिसमें भैंसों को घर के पास या साथ बनाए गए पशु शेड में रखा जाता है. अधिकांश किसान इनके लिए हरा चारा, भूसा और दाना उगाते हैं. नीली रावी भैंसों के लिए चारे और दाने की अच्छी व्यवस्था की जाती है ताकि वे भरपूर दूध दे सकें. इनके आवास आमतौर पर मिट्टी और ईंटों से बने होते हैं, जिनमें खुली जगह होती है और फर्श मिट्टी का होता है. चूंकि यह नस्ल ठंडी जलवायु को पसंद करती है, इसलिए गर्मियों में इनकी विशेष देखभाल की जाती है.
नीली रावी भैंस की दूध उत्पादन क्षमता
नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) की दूध उत्पादन क्षमता इसे भारत की सर्वश्रेष्ठ दुग्ध नस्लों में से एक बनाती है. एक ब्यांत में यह औसतन 1850 लीटर दूध देती है, जबकि कुछ मामलों में यह आंकड़ा 1929 लीटर तक भी पहुंच सकता है. इसके दूध में वसा (फैट) की मात्रा औसतन 6.8 प्रतिशत होती है, जो इसे व्यावसायिक उपयोग के लिए उपयुक्त बनाता है. इस नस्ल की पहली ब्यांत की औसत उम्र लगभग 45 महीने होती है और ब्यांतों के बीच का औसत अंतराल 16 महीने रहता है.
नीली रावी भैंस की खास पहचान और महत्व
नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) को उसके सफेद धब्बों और भारी दूध उत्पादन की वजह से जाना जाता है. इसके दूध की गुणवत्ता उच्च होती है और यह खासतौर पर मक्खन, पनीर और दही बनाने के लिए पसंद की जाती है. इसके सफेद निशान न केवल इसे सुंदर बनाते हैं बल्कि नस्ल की शुद्धता का भी संकेत देते हैं. यह भैंस लगभग हर दृष्टि से मुर्रा भैंस से मिलती-जुलती है लेकिन इसमें कुछ अनूठे गुण हैं जो इसे विशिष्ट बनाते हैं.
सामाजिक और आर्थिक भूमिका
पंजाब में नीली रावी भैंस न केवल डेयरी उत्पादन का एक अहम स्रोत है, बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी मानी जाती है. छोटे और सीमांत किसान इससे दूध बेचकर नियमित आय प्राप्त करते हैं. इसके साथ ही इसके दूध से बने उत्पादों की मांग शहरी और ग्रामीण दोनों बाजारों में बनी रहती है. यदि वैज्ञानिक तरीके से इसका पालन किया जाए, तो भैंस की यह नस्ल किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बना सकती है.
नीली रावी भैंस के संरक्षण की आवश्यकता
हालांकि नीली रावी भैंस (Nili Ravi Buffalo) की संख्या अभी ठीक-ठाक है, लेकिन आधुनिक नस्लों के बढ़ते चलन और शहरीकरण के कारण इसकी शुद्धता पर खतरा बना हुआ है. इसलिए जरूरी है कि किसान इस नस्ल के संरक्षण के लिए पालन करते रहें. इससे न केवल इस अमूल्य नस्ल की पहचान कायम रहेगी, बल्कि देश की दुग्ध उत्पादन क्षमता भी बढ़ेगी.
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