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गौ पालन उद्योग से कमाएं  लाखों रुपए सालाना, विस्तार से जानिए

यूं तो गौ पालन भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं. गाय को माता रूप में पूजने और उसके पालन में आमजन के साथ कई संस्थाएं भी लगी हैं जो देशभर में गौशालाएं संचालित करती है. महंगाई के जमाने में गौ पालन के प्रति लोगों का मोह भंग सा हो चला था, लेकिन कोरोना काल के बाद देसी नस्ल की गाय के दूध और दुग्ध से बने उत्पादों की मांग फिर से बढ़ी है. मिलावटी खानपान से बचने और इम्युनिटी बढ़ाने के लिए शुद्ध दूध,छाछ, दही, घी आदि को लोग प्राथमिकता दे रहे हैं चाहे ये उत्पाद बाजार भाव से भले ही चार गुणा में ही क्यों ना उपलब्ध हो.

विवेक कुमार राय
विवेक कुमार राय

यूं तो गौ पालन भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं. गाय को माता रूप में पूजने और उसके पालन में आमजन के साथ कई संस्थाएं भी लगी हैं जो देशभर में गौशालाएं संचालित करती है. महंगाई के जमाने में गौ पालन के प्रति लोगों का मोह भंग सा हो चला था, लेकिन कोरोना काल के बाद देसी नस्ल की गाय के दूध और दुग्ध से बने उत्पादों की मांग फिर से बढ़ी है.

मिलावटी खानपान से बचने और इम्युनिटी बढ़ाने के लिए शुद्ध दूध,छाछ, दही, घी आदि को लोग प्राथमिकता दे रहे हैं चाहे ये उत्पाद बाजार भाव से भले ही चार गुणा में ही क्यों ना उपलब्ध हो.

गौ पालन को भी उद्योग धंधे की तरह विकसित कर लोग सालाना लाखों रुपए कमाने भी लगे हैं. गायों का लालन-पालन सुव्यस्थित ढंग से किया जाए तो आप भी अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं. गाय से मिलने वाले दूध, गोबर व गोमूत्र से बनने वाले अनेक उत्पादों से इतनी कमाई की जा सकती हैं जितनी आय आप किसी छोटे उद्योग से प्राप्त करते हैं.

सैंकड़ों लोगो को रोजगार (Employing hundreds of people)

जयपुर जिले के भैराणा गांव के एक कृषक सुरेन्द्र अवाना ने गौ पालन में नवाचारों को अपना यह साबित कर दिया है कि गौ पालन घाटे का सौदा नहीं बल्कि इससे उद्योग की तरह लाखों रुपए सालाना कमाये जा सकते हैं और इसके माध्यम से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सैंकड़ों लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करवाया जा सकता है. ये तो एक उदाहरण हैं. ऐसे देशभर में बड़ी तादाद में किसान हैं और यह संख्या दिनों दिन बढ़ती ही जा रही हैं. सुरेंद्र अवाना तो ऐसे किसान हैं जो पांच- पांच शिक्षण संस्थाओं के होते हुए भी गौ पालन और किसानी के पेशे में आएं हैं. ये ना केवल अपनी डेयरी से लाखों रुपए कमाने लगे हैं बल्कि ख्याति भी अर्जित की हैं. 

नस्ल सुधार के भी जतन (Efforts to improve breed) 

उनकी डेयरी में गिर नस्ल की देसी गाये हैं. दो गायों से उन्होंने डेयरी की शुरुआत की थी और आज उनकी डेयरी में 200 के करीब छोटे-बड़े  गाय,बछड़े-बछड़ी, बैल, सांड हैं. सेक्स साल्ट सीमन की विधि को अपनाकर  गिर नस्ल सुधार का जतन भी किए जा रहे है ताकि गायों के बछड़ियां ही पैदा हो और दूध भी कम से कम बीस लीटर प्रतिदिन हो सके. ब्रीडिंग की यह तकनीकी के पीछे किसान का सोच हैं कि औसत प्रतिदिन एक गाय ब्याहे और उसे दूसरे किसान को बेच कम से कम एक लाख रुपए प्रतिदिन की आय कर सके. शत प्रतिशत बछड़ियों के पैदा होने से आवारा पशुओं की संख्या में भी कमी आएगी. वर्तमान में पूरे देश में आवारा पशुओं की समस्या विकराल रूप लिए हुए हैं.

1800 रुपए लीटर देसी घी (1800 rupees liter desi ghee)

अवाना की डेयरी दुग्ध उत्पाद बेचकर भी अच्छी खासी कमाई कर रही हैं. उन्होंने दूध व दुग्ध से बने उत्पादों की बिक्री के लिए विनायका में एक अलग से प्लांट स्थापित कर रखा है. गिर गाय का दूध 80 रुपए व चुंटिया देसी घी 1800 रुपए प्रतिलीटर, मक्खन 1600 रुपए, पनीर 400 रुपए तथा रसगुल्ले 260 रुपए प्रतिकिलो बेच रहे हैं. इसी प्रकार छाछ, दही आदि की भी घर-घर सप्लाई हैं.

जैविक खाद का कारखाना (Organic fertilizer factory)

गाय के गोबर,गौमूत्र, पेड़-पौधों की सूखी पत्तियों आदि से जैविक खाद निर्मित करने का प्लांट लगा हुआ हैं जिसकी खाद स्वयं के फार्म हाउस के साथ बिक्री के लिए भी उपलब्ध हैं. बैल गाड़ी तथा बैलों से खेत जुताई काम भी होता हैं. चारा कटाई के लिए एक ऐसी मशीन लगा रखी है जो बैलों को जोतकर चलाई जाती है उससे बिजली की तो बचत होती है ही उसके साथ सारे दिन खड़े रहने वाले बैलों का उपयोग हो रहा हैं. कृषक अवाना ने तो गायों के लिए बने टीन शेड से वर्षा के पानी को फार्म पौंड तक पहुंचाने की भी ऐसी नायब व्यवस्था  कर रखी है ताकि वर्षा के पानी से कीचड़ ना फैले और उस पानी का चारा आदि उगाने में सही सदुपयोग भी हो सके.

गायों के लिए  हरा चारा (Green fodder for cows)

गायों के लालन-पालन में सबसे अधिक हरे चारे की समस्या आती है. उसके लिए उन्होंने तीन से बीस साल तक उपयोग में लिए जा सकने वाले हरे चारे की कई किस्मे अपने फार्म हाउस पर लगा रखी है. वर्तमान में 22 तरह का हरा चारा उनके कृषि फार्म पर है. वे देश के एकमात्र ऐसे किसान हैं जिनके कृषि फार्म पर इतने किस्म की हरे चारे की वैरायटी है. हरे चारे के अनुसंधान केन्द्र के प्रमुख वीके यादव भी चारा उत्पादन में श्रेष्ठतम उपलब्धि बताते हुए प्रशंसा करके गए हैं. हरे चारे में अजोला, सहजणा, मोरंगा,खेजड़ी, अरडू, सहतूत, फिल्कन, रजका, नेपियर, सुपर नेपियर, गिनी ग्रास, झिझवा को-5 व 6, बीएसआई हाई ब्रिड, दीनानाथ ग्रास, सुबबूल, गिन्नी सेवण,ऐलोवेरा के अलावा 8 प्रकार की सीजनल हरा चारा अलग है. पशुओं के हरे चारे के लिए उपयुक्त पेड़ को तो उन्होंने फार्म की सीमा पर लगा रखा है जो ना केवल फार्म के चारों तरफ दीवार का काम कर रहे है बल्कि उनसे पर्यावरण भी पूरे इलाके का स्वच्छ बना हुआ हैं. वर्तमान में इतने चारे की पैदावार हो रही है जो उनके पशुओं के लिए पर्याप्त है. अगले साल तक उत्पादन दोगुन कर वे हरे चारे की बिक्री से भी आय करने लगेंगे.

सप्लाई का एक अनूठा व्यवस्था तंत्र

दूध व दुग्ध से बने उत्पादों की सप्लाई के व्हाट्सएप ग्रुप बने हुए हैं. उन पर नियमित जुड़े ग्राहकों को दुग्ध उत्पादों के अलावा फार्म पर उपलब्ध खाद्यान्न, फल-फ्रूट व अन्य उपज की उपलब्धता की भाव सहित जानकारी डाल दी जाती है और ऑर्डर के अनुसार दुग्ध उत्पादों के साथ ग्राहको को इसकी सप्लाई कर दी जाती है. दूध के साथ नीम दांतुन भी बिक्री के लिए उनके कृषि फार्म से जा रहा है.

फ्री में प्रशिक्षण (free training)

युवाओं को खेती-बाड़ी, गौ पालन, मछली पालन, बागवानी आदि का फ्री में प्रशिक्षण प्राप्त कर आप भी स्वयं का रोजगार करना चाहते हैं तो जयपुर के पास भेराणा गांव स्थित शिवम डेयरी व कृषि अनुसंधान केंद्र पहुंच सकते हैं. वर्तमान में  25 से 30 प्रशिक्षणार्थी प्रतिदिन आ रहे हैं. रविवार को यह संख्या और भी बढ़ जाती हैं. कोरोनाकाल के बाद तेजी आई हैं.

लेखक - विमलेश शर्मा

(लेखक पेशे से वरिष्ठ पत्रकार हैं)

English Summary: Cow rearing: By making cow rearing industry, earn lakhs of rupees annually Published on: 16 August 2020, 06:43 IST

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