पशुओं के विकास में लगे देश के कई अनुसंधान सेन्टर और पशुपालकों के अथक प्रयासों से हमारा देश दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर बैठा है तथा लगातार सबसे अधिक दुग्ध उत्पादन कर रहा है. इसके बावजूद पशुओं में गर्भपात की बीमारियों, बच्चेदानी (uterus) में संक्रमण और प्रजननहीनता के कारण पशुपालकों को आर्थिक रूप से बड़ा नुकसान होता है.
मृत या 24 घंटे के कम समय तक जीवित भ्रूण का गर्भकाल पूरा होने से पहले गर्भाशय से बाहर निकलना ही गर्भपात कहलाता है. यह गर्भकाल के किसी भी समय विभिन्न कारणों से हो सकता है. भैंसों में गर्भपात गायों की तुलना में कम पाया जाता है. गर्भपात संक्रामक और असंक्रामक कारकों से हो सकता है.
संक्रामक कारक से गर्भपात (Abortion by Infectious factor)
फ्लोरसेंट एंटीबोडी तकनीक के द्वारा गर्भपात के संक्रामक कारकों का पता आसानी से पता लगाया जा सकता है. गर्भपात कराने वाले संक्रामक कारकों में 2.9% गर्भपात ब्रूसेला एबोर्टस नामक जीवाणु से होते हैं. यह गाय और भैंसों में गर्भपात कराने वाला सबसे घातक कारक है, जिससे गर्भावस्था के आखिरी तीन महीने में गर्भपात होता है. इस जीवाणु का संक्रमण भैंसों के जननागों के स्त्राव और दूध से होता है. इस जीवाणु की पहचान भ्रूण, दूध, खून आदि के नमूने लेकर किया जा सकता है.
विषाणु के संक्रमण से गर्भपात होना (Miscarriage due to virus infection)
विभिन्न विषाणु जनित कारक भी पशुओं में गर्भपात के जिम्मेदार हो सकते हैं, जिनमें से बोवाइन वाइरल राइनोट्रेकिआइटिस, एपिजुटिक बोवाइन एबोर्शन, बोवाइन वाइरल डायरिया प्रमुख है. इसके अलावा प्रोटोजोआ समूह के कारक जैसे कि ट्राइकोमोनीऐसीस भी गर्भपात का एक प्रमुख कारक है. यह प्रोटोजोआ संक्रमित सांड के वीर्य से गर्भाधान कराने पर फैलता है. अधिक तेज बुखार से भी पशुओं में गर्भपात हो जाता है.
असंक्रामक कारक से गर्भपात (Abortion by Non infectious factor)
असंक्रामक कारक जैसे रासायनिक या जहरीले पदार्थ, कुपोषण, आनुवंशिक कारक से गर्भपात हो जाता है. इसके अलावा शरीर में विभिन्न हार्मोन के संतुलन बिगड़ जाने पर भी गर्भपात हो जाता है. भौतिक कारक जैसे असामान्य वातावरण, लंबी यात्रा करना, कृत्रिम गर्भपात आदि कारण गर्भपात होना निश्चित हो जाता है.
जीवाणु जनित कारक से गर्भपात (Abortion due to bacterial cause)
लेप्टोस्पाइरा पोमोना नामक स्पाईरोकिट भी गर्भपात के प्रमुख जीवाणु में से एक है. इनमें तेज बुखार के बाद गर्भावस्था के आखिरी 3 महीने में गर्भपात हो सकता है. लिस्टेरियोसिस नामक बीमारी में भी बुखार के बाद या बिना किसी लक्षण के गर्भपात हो जाता है. यह उन पशुओं में अधिक पाया जाता है जिनके भोजन में मुख्यतः साइलेज का प्रयोग किया जाता है. इन बीमारियों का निदान समूह परीक्षण के द्वारा किया जा सकता है. अन्य जीवाणु जैसे विब्रीयोसिस, पस्तुरेला मल्टोसिडा, सालमोनेला पैराटाइफी आदि भी पशुओं में गर्भपात का प्रमुख कारण हो सकते हैं.
पोषक तत्वों की कमी के कारण गर्भपात (Abortion due to nutritional deficiency)
विटामिन ए की कमी से गर्भपात, मृत बछड़ों का जन्म और जेर रुकने की दिक्कत हो जाती है. इसकी कमी को संतुलित भोजन देने से दूर किया जा सकता है. पशु के यौवन में देरी के लिए और मरे बछड़े फास्फोरस, कैल्सियम और मैग्नीशियम की कमी होना पाया गया है. आयोडीन की कमी से गर्भपात, मृत बछड़े का जन्म आदि की समस्या रहती है.
गर्भपात से बचाव के उपाय (Abortion prevention measures)
-
कृत्रिम गर्भाधान के लिए निर्जमीकृत (Sterilized) औजारों का प्रयोग किया जाना चाहिए.
-
नए खरीदे गए पशुओं को मूल पशुओं में शामिल करने से पहले कम से कम 21 दिन तक अलग रखें एवं पशु चिकित्सक से जांच करने के बाद ही मूल पशुओं में शामिल करें. ताकि रोगों को फैलने से रोका जा सके.
-
नए पशुओं को उसी डेयरी फार्म से खरीदें जो पशुओं के समस्त रिकॉर्ड रखता हो.
-
पशुओं में गर्भाधान करने से पहले उस सांड अथवा वीर्य का संक्रमित ना होना सुनिश्चित कर लें.
-
विटामिन ए की कमी को हरा चारा देकर भी गर्भपात से बचाया जा सकता है.
-
जिन पशुओं में गर्भपात हुआ हो उन्हें समूह के बाकी पशुओं से अलग कर देना चाहिए तथा भ्रूण और अपरा को किसी गड्ढे में चूना मिलाकर गाड़ देना चाहिए.
-
खराब साइलेज (Silage) का चारे के रूप में प्रयोग नहीं करना चाहिए
-
पशुओं के चारे में अचानक परिवर्तन नहीं करना चाहिए
-
ब्रूसेलोसिस के बचाव के लिए ब्रूसेला एबोर्ट्स स्ट्रेन-19 का टीका लगाकर इस जीवाणु से होने वाले गर्भपात से बचाया जा सकता है.
-
डेयरी फार्म का वातावरण स्वच्छ और निर्जमीकृत रहना चाहिए.
-
संक्रमित सांड को गर्भाधान के लिए प्रयोग में नहीं लाना चाहिए और संक्रमित पशुओं को प्रजनन से वंचित रखना चाहिए.
Share your comments