बाचौर गाय है कमाई का साधन, जानिए इसके बारे में...

पालतू पशुओं में गाय सबसे लोकप्रिय पशु है. प्राय ये संसार में हर जगह पाई जाती है. भारत में ही गायों की 37 अधिक प्रजातियां पाई जाती है. वैसे हमारे देश में वैदिक काल से ही गायों को आर्थिक दृष्टि से देखा गया है. यहां की कुछ गायों की दूध देने की वास्तव में आशचर्यजनक है. बिहार में पाई जाने वाली गाय बाचौर उन्हीं में से एक है. चलिए आपको इस गाय से होने वाले लाभ के बारे में बताते हैं.
बाचौर की उत्पत्तिः
बाचौर की उत्पत्ति को लेकर विशेषज्ञों के मत अलग-अलग हैं. हालांकि आम राय यही है कि इसका मूल निवास उत्तर बिहार का मधुबनी, दरभंगा या सीतामढ़ी जिला ही रहा होगा. इसका कसा हुआ शरीर इसे अन्य गायों से अलग पहचान देता है. छोटे आकार के होने के कारण बाचौर बहुत हद तक हरियाणवी मवेशियों जैसी प्रतीत होती है.

प्रजनन चक्र
इन गायों का प्रजनन चक्र नियमित होता है और ये अधिक मात्रा में दूध देती हैं. यही कारण है कि ईस्ट इंडिया कंपनी दूध की आवश्यकता को पूरा करने के लिए बाचौर पर निर्भर रहती थी.
बचौर की शारीरिक बनावट
वैसे आमतौर पर बाचौर को उसकी शारीरिक बनावट के आधार पर पहचाना जा सकता है. यह रंग में अमूमन सफ़ेद ही होती है. इसकी पीठ सीधी होती है, जबकि बैरल का आकार गोल होता है. छोटी गर्दन और चौड़े माथे वाली बचौर की आँखें बड़ी होती हैं. सींगों का आकार मध्यम होता है और बाहर की ओर घुमावदार होती हैं.
इस नस्ल के बैल का उपयोग भी अलग-अलग कार्यों के लिए किया जाता है. पहले के समय में ये बैल बोझा उठाने, खेत जोतने के लिए उपयोग में लिए जाते थे. इनकी एक खासियत यह भी है कि ये बैल बिना किसी रुकावट के अधिक समय तक काम करने में सक्षम हैं.
English Summary: Bachaur breed of cattle native Madhubani Darbhanga and Sitamarhi will give profit
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