बकरियों की संख्या के आधार पर भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है. देश में मौजूद बकरियों की कुल उन्नतिशील नस्लों में से 75 फीसद से ज्यादा जंगली नस्लें मौजूद हैं. गौरतलब है कि ग्रामीण क्षेत्र के ज्यादातर लोग बकरी पालन करना पसंद करते हैं.
क्योंकि बकरियों में आसानी से किसी भी वातावरण को सहन करने की क्षमता अधिक होती हैं. तो ऐसे में आज हम आपको ऐसी बकरियों की नस्लों के बारे में बतायेंगे. जिनका पालन कर आप आसानी से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं और कैसे संस्थाएं बकरी पालकों की आजीविका बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं. तो आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से...
जमुनापारी बकरी (Jamunapari Goat)
बकरी की यह नस्ल ज्यादातर इटावा, मथुरा आदि जगहों पर पाई जाती है. इससे दूध तथा मांस दोनों उद्देश्यों की पूर्ति की जा सकती है, यह बकरियों में पाई जाने वाली सबसे अच्छी नस्ल मानी जाती है. यह सफेद रंग की होती है और इसके शरीर पर हल्के भूरे रंग के धब्बे होते हैं, कान का आकार भी काफी लम्बा होता है. अगर इनके सींग कि बात करें तो वे 8 से 9 से.मी. लम्बे और ऐठन लिए होते हैं. इसका दूध उत्पादन 2 से 2.5 लीटर प्रतिदिन तक होता है.
बरबरी बकरी (Barbari Goat)
बकरी की यह नस्ल ज्यादातर एटा, अलीगढ़ तथा आगरा जिलों में पाई जाती है. यह ज्यादातर मांस उत्पादन के लिए उपयोग में लाई जाती है. इसका आकार छोटा होता है और रंग की भिन्नता होती है. इसके कान का आकार नली की तरह मुड़ा हुआ प्रतीत होता है. इस नस्ल की कई बकरियां सफेद होती है और उनके शरीर पर भूरे धब्बे होते है और कई भूरे रंग की होती है उन पर सफेद धब्बे पाए जाते हैं.
बीटल बकरी (Betel Goat)
यह बकरी की नस्ल पंजाब में पाई जाती है.यह ज्यादातर दूध उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी जाती है. इसका आकार देखने में बड़ा होता है और इसका रंग काला होता है पर शरीर पर सफेद या फिर भूरे धब्बे पाए जाते है, बाल भी छोटे तथा चमकीले होते हैं. इसके कान लम्बे और नीचे को लटके हुए तथा सर के अंदर मुड़े हुए होते हैं.
कच्छी बकरी (Kutch Goat)
यह बकरी की नस्ल गुजरात के कच्छ में पाई जाती है. यह ज्यादातर दूध उत्पादन के लिए उपयोग में लाई जाती है. इसका आकार देखने में बड़ा होता है और इसके बाल लंबे व नाक थोड़ी उभरी हुई होती है. अगर बात करें, इसके सींग कि तो वे मोटे, नुकीले तथा बाहर की तरफ हल्के उठे हुए होते हैं. इसके थन भी काफी विकसित होते हैं.
गद्दी बकरी (Gaddi Goat)
यह बकरी की नस्ल हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में पाई जाती है. यह ज्यादातर पश्मीना आदि के लिए पाली जाने वाली नस्ल है. इसके कान 8.10 सेमी. तक लम्बे होते हैं और सींग भी काफी नुकीले होते हैं. कुल्लू घाटी में इसे ट्रांसपोर्ट के रूप में भी प्रयोग किया जाता है.
'द गोट ट्रस्ट' बकरी पालकों को दे रहा है रोजगार ('The Goat Trust' is giving employment to goat farmers)
बकरी का दूध हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा माना जाता है. इसके साथ ही इसमें रोज़गार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से द गोट ट्रस्ट (The Goat Trust) देश के कई राज्यों में लाखों लोगों के साथ काम करते हुए,
उनकी आजीविका को बढ़ाने के लिए काम कर रहा है. ये ट्रस्ट बकरी के दूध का संवर्धन करके उसके कई तरह के उत्पाद बना रहा है. बकरी के दूध से बने इन उत्पादों को बनाने के लिए ये महिला बकरी पालकों को ट्रेनिंग भी देता है.