भारत में गेहूं की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. इसके चलते किसानों के लिए एक अच्छी खबर यह है कि जबलपुर स्थित जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru Agricultural University) ने मध्य प्रदेश के किसानों के लिए गेहूं की 18 किस्मों (18 varieties) को अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों की जरूरत के अनुसार तैयार किया है.
यह खेती के लिए बहुत कारगर साबित होंगी. विश्वविद्यालय ने जानकारी दी है कि दिसंबर में गेहूं की बुवाई करने के लिए किसानों को कौन सा बीज, खाद और कितनी बार सिंचाई करना चाहिए? जिससे की गेहूं की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त हो.
वैज्ञानिकों का कहना है कि गेहूं की विकसित की गई किस्मों में देर और शीघ्र पकने वाली किस्में शामिल हैं. इसमें जवाहर गेहूं 3336, HD 2932, HD 2864, MP 4010 और इंदौर ARCI द्वारा विकसित 1634, महाकौशल के लिए 2004 में जवाहर 3020 किस्मों को शामिल किया गया है. ये सभी किस्में गुणवत्ता युक्त हैं और भरपूर उत्पादन देने की क्षमता रखती हैं. इन किस्मों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह 100 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं.
अगर गेहूं की अच्छी उपज चाहिए, तो खाद (Fertilizer) का सावधानी से उपयोग करें और सिंचाई (Irrigation) पर खास ध्यान दें. इसके साथ ही मृदा की जाँच कराएं, ताकि मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों की सही जानकारी मिलती रहे.
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अगर खाद की बात करें, तो किसानों को गेहूं की अच्छी उपज के लिए डीएपी की बजाए एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश) का उपयोग करना चाहिए.
गेहूं की सिंचाई प्रक्रिया (Wheat Irrigation Process)
अब सिंचाई की बात करें, तो जब फसल 20 से 25 दिन की हो जाए, तो खेत में पहली सिंचाई की जाती है. यदि पानी दो सिंचाइयों के लिए उपलब्ध है, तो पहली सिंचाई मुख्य जड़ के विकास के समय तथा दूसरी फूल आते समय करनी चाहिए. अगर पानी तीन सिंचाइयों के लिए उपलब्ध है, तो पहली सिंचाई मुख्य जड़ के विकास के समय, दूसरी सिंचाई तने में गांठ बनते समय और तीसरी दाने में दूध बनते समय करनी चाहिए.
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