अखरोट की गिरी में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, पोटैशियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. लिहाजा डॉक्टर्स इसे खाने की सलाह देते हैं. ऐसे में बाजार में अखरोट की मांग काफी रहती है. अखरोट मुख्य रुप से पहाड़ी क्षेत्रों में उगाया जाता है लेकिन अब इसकी खेती अन्य राज्यों में भी होने लगी है. अखरोट की खेती कर किसान लाखों की कमाई कर रहे हैं. आईए जानते हैं अखरोट की खेती के बारे में.
अखरोट की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
अखरोट की खेती के लिए न तो ज्यादा गर्म जलवायु वाले क्षेत्र अच्छे होते हैं, न ज्यादा ठंडी जलवायु वाले क्षेत्र. ज्यादा गर्मी वाले इलाकों में फल और पौधे खराब हो जाते हैं, ज्यादा ठंड/पाला पड़ने पर पौधों का विकास रुक जाता है. सामान्य मौसम वाली जगह पर आप अखरोट उगा सकते हैं. इसकी खेती के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की जरुरत होती है. जब अखरोट बढ़ रहा हो तो ठंडी जलवायु उपयुक्त होती है.
अखरोट के लिए मिट्टी
अखरोट की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली मिट्टी होनी चाहिए. दोमट मिट्टी अच्छी होती है. मिट्टी भुरभुरी होना चाहिए. रेतीली व सख्त मिट्टी अखरोट के लिए अनुपयुक्त होती है. मिट्टी क्षारीय नहीं होना चाहिए.
अखरोट की उन्नत किस्में
अखरोट की खेती करने से पहले उन्नत किस्मों का चुनाव करें. जो अच्छा उत्पादन देती हों. अखरोट की उन्नत किस्मों में पूसा अखरोट, पूसा खोड़, प्लेसैन्टिया, विलसन, फ्रेन्क्वेट, प्रताप, गोबिंद, काश्मीर बडिड, यूरेका, सोलडिंग सलैक्शन व कोटखाई सलैक्शन शामिल हैं. इसके अलावा अभी कागजी अखरोट लगाए जाने पर जोर दिय़ा जा रहा है. ये अखरोट अच्छा उत्पादन देते हैं.
अखरोट की खेती के लिए सही समय
दिसंबर से मार्च तक हल्के ठंडे मौसम में आप अखरोट उगा सकते हैं. बारिश के समय भी इसे उगाया जाता है.
अखरोट के लिए नर्सरी
अखरोट की बुवाई के लिए पौध नर्सरी में तैयार करनी होती है. रोपाई के एक साल पहले मई-जून से यह काम शुरु हो जाता है. पौधे दो तरीके से तैयार होते हैं. पहले बीज से, बीज से पौधे तैयार करने पर यह ज्यादा सालों बाद पैदावार देते हैं. दूसरा तरीका ग्राफ्टिंग है, जिससे तैयार पौधों में सभी गुण पाए जाते हैं, यह कुछ ही साल बाद फल देने लगते हैं.
अखरोट की फसल की बुवाई
नर्सरी में तैयार पौधों को खेत में गड्डे बनाकर लगाया जाता है. खेत की मिट्टी समतल व भुरभुरी होना चाहिए. खेत में दो फीट चौड़े, एक फीट गहरे गड्ढे तैयार किए जाते हैं. जिनके बीच की दूरी 5 मीटर के आसपास होनी चाहिए. पौधों की रोपाई से पहले गड्ढों में गोबर की खाद, रासायनिक उर्वरक, मिट्टी डाली जाती है. इसके बाद पौधे रोपे जाते हैं.
अखरोट की फसल की सिंचाई
अखरोट के पौधों को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती. सर्दियों के मौसम में 20 से 30 दिनों के अंतराल से सिंचाई होती है. लेकिन गर्मियों के दिनों में हर सप्ताह पानी देना होता है. पौधे विकसित होने के बाद इसके पेड़ को सालभर में 7 से 8 सिंचाई की ही आवश्यकता होती है. हालांकि पेड़ में फूल आने के लिए आद्रता की जरुरत होती है, ऐसे में मिट्टी में नमी बनाए रखना जरुरी है.
अखरोट की फसल में खरपतवार व रोगों से बचाव
अखरोट के पौधों में शुरुआती दौर पर रोग लगने का खतरा होता है. ऐसे में कीटनाशक का छिड़काव करें वहीं खरपतवार से निपटने के लिए निराई करते रहें.
कब करें फलों की तुड़ाई
पहले अखरोट के पेड़ को फल देने में ज्यादा वक्त लगता है, लेकिन उन्नत किस्मों और नई तकनीकों के बल पर पौधा रोपाई के लगभग 4 साल बाद ही फल देना शुरू कर देता है. अखरोट के फलों के ऊपरी छाल फटने लगे तक इन्हें तोड़ लेना चाहिए. कुछ फल पकने के लिए टूटकर गिरने लगते हैं. जब 20 प्रतिशत फल गिर जाएं तब पूरे फल गिरा लेने चाहिए.
अखरोट की खेती में कितना मुनाफा होगा
एक अखरोट का पौधा रोपाई के 4 साल बाद से फल देना शुरू करता है, जो अगले 25-30 साल तक उत्पादन देता है. एक पौधा सलाना 40 से 50 किलो तक पैदावार देता है. अखरोट एक महंगा ड्राईफ्रूट है. अखरोट का बाजार मूल्य 500 से 700 रुपए प्रति किलो रहता है. इस हिसाब से देखें तो अखरोट के 20 से 25 पेड़ लगाकर ही किसान 5 से 6 लाख तक की कमाई कर सकते हैं.
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