Wheat Varieties in India: हिमाचल प्रदेश में नवंबर का महीना रबी फसलों की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है. इस समय गेहूं, मटर, चने और सरसों जैसी प्रमुख फसलों की बुवाई की जाती है. खासतौर पर गेहूं की बुवाई का यह सबसे अच्छा समय होता है. जो राज्य की प्रमुख रबी फसल मानी जाती है. किसानों के लिए यह जरूरी है कि वे अपनी फसलों की अधिकतम पैदावार के लिए सही बीज का चुनाव करें. क्योंकि बीज की गुणवत्ता और किस्म का चुनाव फसल के स्वास्थ्य, गुणवत्ता और उत्पादन पर सीधा प्रभाव डालता है. तो आइए कृषि जागरण के इस आर्टिकल में जानते हैं, पहाड़ी इलाकों में गेहूं की फसल के लिए कौन-कौन सी किस्में सबसे उपयुक्त है.
निचले और मध्यवर्ती क्षेत्रों में गेंहू की बुवाई
गेंहु की फसल को शुरू में ठड़े वातावरण और नमी की आवश्यकता होती है, क्योंकि गर्म वातावरण में जड़ों का विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता और जड़े खराब होने लगती हैं. हिमाचल प्रदेश के निचले और मध्यवर्ती क्षेत्रों में नवंबर के पहले पखवाड़े में गेंहू की बुवाई के लिए कुछ खास किस्मों का उपयोग किया जाता है. किसान एचपीडब्ल्यू-155, एचपीडब्ल्यू-236, वीएल-907, एचएस-507, एचएस-562, एचपीडब्ल्यू-349, एचपीडब्ल्यू-249 और एचपीडब्ल्यू-368 जैसी उच्च गुणवत्ता वालें इन किस्मों का उपयोग करते हैं. इन किस्मों से बेहतर उत्पादन प्राप्त हो सकता है, जिससे किसानों की आय में भी वृद्धि हो सकती है.
ये भी पढ़ें: चने की खेती से आय बढ़ाने के लिए अपनाएं ये उन्नत तकनीकें, बंपर मिलेगी पैदावार
उचित कीटनाशक का प्रयोग
जिन क्षेत्रों में भूमि में कीटों जैसे सफेद सुंडी, कटुआ कीट और दीमक का आक्रमण ज्यादा होता है, वहा गेंहू, चना, मटर, जैसी रबी की फसलों की बुवाई से पहले उचित कीटनाशक का प्रयोग बेहद जरूरी होता है. इन कीटों से फसल को बचाने के लिए खेत में क्लोरोपाइरीफॉस 20 ईसी का छिड़काव 2 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से करें. इस किटनाशक का छिड़काव कीटों को नियंत्रित करने में मदद करता है. जिससे किसानों को बेहर मुनाफा और कम नुकसान होगा.
गेहूं की इन किस्मों की करें बुवाई
हिमाचल प्रदेश के निचले क्षेत्रों में किसानो को गेंहू की बुवाई के लिए कुछ खास किस्मों के चयन करना चाहिए. जैसे एचडी-3086, डीपी डब्ल्यू-621-50-595 और एचडी-2687 किस्म. इन किस्मों को लगाने से किसानों को बेहतर मुनाफा मिलता है. इसके साथ ही बीज की बुवाई से पहले रैक्सिल, बैविस्टिन या विटावैक्स से उपचार करना जरूरी होता है. ताकि बीज से रोगो का फैलाव अधिक न हो और खरपतवार के पौधे 2 से 3 पत्तों की अवस्था में हों. जंहा पर खरपतवार नाशक रसायनों का छिड़काव करना उपयुक्त रहता है. इस समय खरपतवार नियंत्रण के लिए ट्रिफ्ल्यूरालिन या अन्य प्रभावी रसायनों का उपयोग फसल को स्वस्थ बनाए रखने में मददगार साबित होगा.
Share your comments