हमारा जीवन कुछ ऐसे छोटे जीवों से घीरा हुआ है जिनको नग्न आँखों से देखना लगभग असंभव है। ये जीव सुक्ष्मदर्शी जीव कहलाते हैं। इतने निम्न आकार के कारण बहुत कम जगह में इनकी संख्या बहुतायत में हो सकती है उदाहरण के तौर पर मात्र एक ग्राम उपजाऊ मिट्टी के अंदर लगभग एक अरब बैक्टिरिया पचास करोड़ ऐक्टिनोमाइसिटीज दो करोड़ फफूंद तीस लाख ऐलगा दस लाख प्रोटोजोआ व लगभग पचास सूत्रकृमि हो सकते हैं। मिट्टी में मौजूद ये सूक्ष्मजीव अनेक़ों जैव रसायन प्रक्रियाओं को अंजाम देते हैं।
पौधो को अपना जीवन चक्र पूरा करने के लिए 17 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें नाइट्रोजन फास्फोरस तथा पोटाश अति महत्वपूर्ण पोषक तत्व हैं। इनमें से किसी एक की कमी होने से पौधे की वृद्धि तथा फसल की पैदावार पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है। मिट्टी में मौजूद विभिन्न तरह के सूक्ष्म जीव अनेक प्रकार की जैव-रसायन प्रक्रिय़ाओं के द्वारा इन पोषक तत्वों की कुल मात्रा एंव इनकी पौधों को उपलब्धता बढ़ाने में वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हैं।
कृषि एंव मौलिक विज्ञान के क्षेत्र में अऩुसंधानरत विभिन्ऩ संस्थाऩों ने कृषि में उपयोग होने वालों लाभदायी सूक्ष्म जीवों की पहचान की है तथा इनक़ों उपयोगिता एंव गुणों के आधार पर विभिन्न श्रेणिय़ों मैं बांटा है। ये सूक्ष्म जीव आज बाजार में जीवाणु खाद के रूप में तरल माध्यम में किसाऩों को आसानी से उपलब्ध हैं। किसान भाई इन्हें टीका के नाम से भी जानते हैं।
ये जीवाणु खाद राईजोटीका ऐजोटीका एंव फास्फोटीका इत्यादी नामों से किसाऩों के बीच लोकप्रीय हैं। हमारे वायुमंडल में लगभग 78 प्रतिशत नाइट्रोजन है परंतु पौधे इसे प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त नहीं कर सकते। जीवाणु खाद उत्पादन इकाई की प्रयोगशाला में तैय़ार किए गए टीकों के जीवाणु जैसे राइजोबियम ( राइजोटीका ) ऐजोटोबैक्टर ( ऐजोटीका ) इस नाइट्रोजन को पौधों की जड़ों को ग्रहण करने योग्य बना देते हैं। कुछ अन्य जीवाणु मृदा में मौजूद फास्फोरस को घुलनशील फास्फोरस में परिवर्तित कर देते हैं।
राईजोटीका
यह जीवाणु खाद राइजोबियम नामक एक विशिष्ट बैक्टीरिया के समूह से बनाई जाती है। ये जीवाणु अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग प्रकार के होते हैं जो फलीदार दलहनी फसलों की जड़ों पर गुलाबी रंग की गांठे बनाते हैं। इस तरह ये पौधे के साथ मिलकर वायुमंडल की नाइट्रोजन को अमोनिया में परिवर्तित करते हैं। इस प्रकार यह जीवाणु खाद न केवल दलहनी फसलों की नाइट्रोजन की आवश्यकता को पूरी करते हैं बल्कि अगले सत्र में बोई जाने वाली फसलों को भी नाइट्रोजन उपलब्ध करवाते हैं। यह जीवाणु खाद निम्नलिखित फसलों के लिए उपयोगी हैं जैसे- मूंग, उड़द, लोबिया अरहर चना मटर मसूर सोयाबीन ग्वार बरसीम आदि.
ऐजोटीका
इस जीवाणु खाद में ऐजोटोबैक्टर नाम के सूक्ष्मजीव होते हैं। ये जीवाणु पौधों की जड़ों में कोई गांठें नहीं बनाते अपितु स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं। ये जीवाणु वायुमंडल से नाइट्रोजन लेकर इसे पौधे के ग्रहण करने योग्य बना देते हैं। ऐजोटीका में विधमाऩ सूक्ष्म जीव नाइट्रोजन के अलावा मिट्टी में मौजूद अन्य रासायनिक पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने में भी सहायक हैं। यह टीका निम्नलिखित फसलों के लिए उपयोगी है जैसे- कपास, ज्वार, बाजरा, मक्का, धान, गेहूं, जो, सरसों इत्यादी
फास्फोटीका
सामान्यत मिट्टी में फास्फोरस काफी मात्रा में पाया जाता है परतुं पौधे इसे आसानी से प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि मृदा में मौजूद फास्फोरस अघुलनशील अवस्था में होता है। इस जीवाणु खाद में मौजूद जीव फास्फोरस को अधिक घुलनशील बनाते हैं तथा इस तरह फास्फोरस की उपलब्धता को बढ़ाते हैं। जिससे पौधे की जड़ फास्फोरस को आसानी से शोषित कर लेतीं हैं फास्फोटीका को सभी फसलों में बीज़ों पर तथा पौधों की जड़ों पर भी उपचारित किया जाता है।
उपचार की विधि
बीज उपचार के लिए 50 मि.ली तरल जीवाणु खाद प्रति 10 किलोग्राम बीज पर प्रयोग करें। बाजरा सरसों इत्यादी फसलों में जहाँ बीज की मात्रा 1-2 किलोग्राम तक है उन फसलों में भी कम से कम 50 मि.ली जीवाणु खाद का प्रयोग करें।
बीज उपचार के लिए 250 मि.ली पानी में 50 ग्राम गुड़ का घोल बना ले तथा बीज को किसी साफ बर्तन या तिरपाल पर डाल कर इस घोल के साथ मिलाएं ताकि बीज चिपचिपा हो जाए। अब जीवाणु खाद की बोतल को खोल कर बीज पर छिडक़े और हाथों से मिलाएं। इसके बाद बीज को 10-15 मिनट छाया में सुखाने के बाद बीज को तैयार खेत में बिजाई करें।
प्रमुख सावधानियाँ
जीवाणु खाद का टीका केवल उसी फसल में प्रयोग़ करें जिस फसल का नाम इसकी बोतल पर लिखा हो। बाजार से खरीदने के पश्चात इसका भंडारण छायादार जगह में ही करें। कीटनाशक फफूंदीनाशक दवाईय़ों को बिजाई से 12 से 24 घंटे पहले बीज़ों को उपचारित करें तथा इसके बाद बीजों को जीवाणु खाद से उपचारित करें।
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इस तरह जीवाणु खादों के प्रयोग से नाइट्रोजन व फास्फोरस वाली रासायनिक खादों के प्रयोग में 20 से 25 प्रतिशत की बचत की जा सकती है। जीवाणु खादों का प्रयोग विभिन्न फसलों में 5 से 15 प्रतिशत पैदावार बढ़ाने में सहायक है। जीवाणु खाद राज्य के कृषि विश्वविद्यालय के सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग एवं विभिन्न गैर सरकारी संस्थानों द्वारा उत्पादित की जाती हैं। इस तरह जीवाणु खाद मृदा की उपजाऊ शक्ति फसलों की पैदावार तथा किसाऩों की आमदनी बढ़ाने एंव पर्यावरण संरक्षण में बहुउपयोगी सिद्ध हो रही हैं।
लेखक:
1विशाल अहलावत 2आर०एस० दादरवाल व 3दीपिका ढांडा
1मृदा विज्ञान विभाग 2शस्य विज्ञान विभाग 3पर्यावरण विज्ञान विभाग
चौ० चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय हिसार हरियाणा
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