कपास फसल का व्यावसायिक फसलों, प्राकृतिक रेशे वाली फसलों और तिलहन फसलों में अहम स्थान है। प्राकृतिक रेशा यानि फाइबर कम से कम 90% अकेले कपास की फसल से मिलता है। कपास फसल का देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। कपास की बड़े पैमाने पर खेती की जाती है लेकिन कपास के पौधों में कई तरह के रोग लगते हैं, जो फसल को प्रभावित करते हैं इसलिए ऐसे ही कुछ रोग और उनके बचाव के बारे में बता रहे हैं।
1. हरा मच्छर कीट रोग - इस रोग में कीट रोग पत्तियों की निचली सतह पर शिराओ के पास बैठकर रस चूसते हैं। पत्तिया पीली पड़ जाती हैं, और कुछ समय बाद टूट कर नीचे गिर जाती हैं। इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL या मोनोक्रोटोफॉस 36 SL का उचित मात्रा में छिड़काव करने से इस रोग से बचाव हो सकता है।
2. सफ़ेद मक्खी कीट - यह भी पत्तियों पर होता है जो पत्तियों की निचली सतह पर बैठकर रस चूसते हैं यह कीट पत्तियों पर चिपचिपा प्रदार्थ छोड़ देता है जिससे पत्तियों में पत्ता मरोड़ नामक रोग हो जाता है इससे पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं कुछ नयी तरह की किस्मे हैं जिनमे यह रोग नहीं लगता है, जैसे– बीकानेरी नरमा, आर एस- 875, मरू विकास आदि। अन्य किस्म के पौधों पर इस रोग से बचाव के लिए ट्राइजोफॉस 40 EC या मिथाइल डिमेटान 25 EC की पर्याप्त मात्रा में छिड़काव करें।
3. चितकबरी सुंडी कीट - जब फूल टिंडे बनते हैं, तब उन पर यह हमला करता है। जिससे पौधे का ऊपरी भाग सूखने लगता है और टिंडे की पंखुड़ी पीली पड़ जाती है, टिंडे के अंदर का कपास ख़राब हो जाता है। बचाव के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 SL, क्लोरपायरीफास 20 EC, मेलाथियान 50 EC में से किसी एक दवा का छिड़काव पर्याप्त मात्रा में करें।
4. तेल कीट रोग – इसकी वजह से पत्तियां ज्यादा प्रभावित होती हैं। काले रंग के कीट छोटे आकार के होते हैं। रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 S.L. या थायोमिथाक्जाम 25 WG नामक दवा का छिड़काव पर्याप्त मात्रा में करते रहना चाहिए।
5. तम्बाकू लट कीट रोग - पौधे के लिए यह कीट बहुत हानिकारक होता है, जो लम्बे आकार का होता है पत्तियों को खाकर उन्हें जालीनुमा बना देता है, जिससे पत्तियां पूरी तरह से नष्ट हो जाती हैं। बचाव के लिए फलूबैन्डीयामाइड 480 S, थायोडिकार्ब 75 SP और इमामेक्टीन बेंजोएट 5 S G दवा का छिड़काव करें।
6. झुलसा कीट रोग- यह रोग बहुत खतरनाक होता है इससे टिंडे पर काले रंग के चित्ते बनते हैं और टिंडा समय से पहले खिल जाता है, जिससे उसका रेशा ख़राब हो जाता है। यह कम समय में ही पौधे को पूरी तरह से नष्ट कर देता है। बचाव के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड दवा का छिड़काव पौधों पर करें साथ ही बीज बोते वक़्त बाविस्टिन कवकनाशी दवा से उपचारित करें।
7. पौध अंगमारी रोग - इस रोग से कपास के टिंडो के पास वाले पत्ते लाल हो जाते हैं, खेत में नमी होने पर भी पौधा मुरझाने लगता है। इस रोग के लग जाने पर पौधा कुछ दिन बाद ही नष्ट हो जाता है। रोकथाम के लिए एन्ट्राकाल या मेन्कोजेब का छिड़काव पौधों पर करें।
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8. अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग- यह बीज जनित रोग होता है, जिससे पत्तियों पर पहले भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं फिर काले भूरे रंग का गोलाकार बन जाता है यह रोग पत्तियों को जल्द ही गिरा देता है। इसका असर पैदावार को सिमित करता है बचाव के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन नामक दवा का छिड़काव करें।
9. जड़ गलन रोग- यह समस्या पौधों में ज्यादा पानी की वजह से होती है, बचाव के लिए खेत में जल का भराव न रहने दें। इस रोग में पौधा शुरुआत से ही मुरझाने लगता है बचाव के लिए खेत में बीज को लगाने से पहले कार्बोक्सिन 70 डब्ल्यूपी 0.3% या कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी 0.2% से उपचारित करें। कपास की फसल के साथ मोठ की बुवाई करने से भी बचाव होता है।
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