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जलजमाव वाली जमीन से परेशान थे किसान, आज मखाने की खेती ने बना दिया धनवान

बिहार के दरभंगा ज़िले में एक गांव है, नाम है मनीगाछी. वैसे तो ये गांव भी आम गांवों की तरह ही है, लेकिन आज-कल मखाने की खेती के लिए खबू प्रसिद्ध हो रहा है. यहां के जाने-माने मखाना किसान पंकज झा अपने ही तालाब में मखाने की खेती कर, अच्छा पैसा कमा रहे हैं. चलिए आपको बताते हैं कि यहां के किसानों के लिए कैसे मखाने की खेती फायदेमंद साबित हो गई.

मखाना
मखाना

बिहार के दरभंगा ज़िले में एक गांव है, नाम है मनीगाछी. वैसे तो ये गांव भी आम गांवों की तरह ही है, लेकिन आज-कल मखाने की खेती के लिए खबू प्रसिद्ध हो रहा है. यहां के जाने-माने मखाना किसान पंकज झा अपने ही तालाब में मखाने की खेती कर, अच्छा पैसा कमा रहे हैं. चलिए आपको बताते हैं कि यहां के किसानों के लिए कैसे मखाने की खेती फायदेमंद साबित हो गई.

10 साल पहले शुरू की मखाने की खेती

पंकज बताते हैं कि गांव के अधिकतर किसानों की जमीन के कुछ भाग में जलभराव रहता है. आज से 8-10 साल पहले तक इन जमीनों को बंजर माना जाता था. जलभराव वाली जमीन का होना या न होना बराबर ही था. लेकिन आज उसी बंजर जमीन से लोगों को मुनाफा हो रहा है, गांव के घर-घर में खुशहाली है और लोग सम्मान के साथ जीवनयापन कर रहे हैं.

कृषि विज्ञान केंद्र जाने का हुआ फायदा

दरअसल 2011 में गांव के किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा आयोजित एक मेले में जाने का सौभाग्य मिला, जहां से उन्होंने मखाने की खेती के बारे में जाना. पंकज बताते हैं कि उस साल गांव के कुछ किसानों ने प्रयोग के तौर पर इसकी खेती छोटे स्तर पर की. मुनाफा अच्छा हुआ, तो कई अन्य लोग भी आगे आए.  इस काम को करने में घर-परिवार की महिलाओं ने भी साथ दिया. गांव में बहुत सी महिलाएं ऐसी भी थी, जो ख़ुद ही तालाब पट्टे लेकर मखाने की खेती करने लगी.

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से हो रहा मुनाफा

गांव से मार्केट कुछ खास दूरी पर नहीं है और आज के समय सड़कों की सुधरने से कनेक्टिविटी बढ़ी है. मखाने की बिक्री के लिए किसानों को बाज़ार नहीं भटकना पड़ता, गांव के किसानों ने कारोबारियों से कॉन्ट्रैक्ट कर रखा है. अब समय आने पर अपने आप उनकी उपज को खरीदने के लिए कारोबारियों के ट्रक पहुंच जाते हैं.

एक हेक्टेयर से होती है इतनी उपज

दरअसल मखाने की खेती ठहरे हुए पानी में ही होती है. अब गांव में अधिकतर लोगों के खेतों में जलजमाव की शिकायत तो थी ही. कृषि विज्ञान केंद्र जाकर उन्हें समझ आया कि क्यों न इसी बेकार जमीन पर मखाने की खेती की जाए. आज एक हेक्टेयर के तालाब में यहां पंकज 80 किलो बीज बोते हैं. बस बुआई से पहले जलकुंभी व अन्य जलीय घासों को निकालकर तालाब की सफाई करनी होती है.  जनवरी में की गई बुवाई अप्रैल माह तक तालाब में कटीले पत्तों के रूप में मखाने के पौधों से भर जाती है. मई के आते-आते नीले, जामुनी, लाल और गुलाबी रंग के फूल खिल जाते हैं और जुलाई माह तक मखाने का पौधा कटाई लायक तैयार हो जाता है.

English Summary: this is how Prickly water lily change the life of farmers know more about Prickly water lily profit and market demand Published on: 12 January 2021, 09:23 PM IST

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