कम मेहनत और कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाने के लिए किसान औषधीय फसलों व मसालों की खेती करने लगे हैं. ये फसलें अब किसानों की आय का प्रमुख जरिया बनती जा रही हैं. इन्हीं में से एक फसल है कलौंजी. कलौंजी के छोटे-छोटे बीज होते हैं. जिनका रंग काला होता है. इसका उपयोग मसालों के साथ साथ दवा बनाने में भी किया जाता है.
कलौंजी के बीजों में अच्छी मात्रा में वसा, कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन होते हैं. इसका उपयोग चिकित्सा उपचार में किया जाता है. बाजार में कलौंजी काफी महंगे दामों में बिकती है. यह नकदी फसल है. जिसकी खेती कर किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. आईए जानते हैं कलौंजी की खेती के बारे में संपूर्ण जानकारी.
कलौंजी की खेती शुरु करने से पहले जरुरी बातें-
कलौंजी नकदी फसल है, इसकी खेती शुरु करने से पहले कृषि विशेषज्ञ से अच्छी तरह जानकारी लें. कलौंजी की फसल के लिए ज्यादा कार्बेनिक युक्त मिट्टी की जरुरत होती है. इसलिए बीज बुवाई से पहले मृदा परीक्षण करवा लें और कार्बेनिक की कमी को दूर करें. कलौंजी की खेती के लिए उन्नत किस्म के रोग रोधी बीजों का चयन करें.
कलौंजी की खेती के लिए दिशा-निर्देश-
कलौंजी के लिए बलुई, दोमट मिट्टी, काली व जलनिकासी वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. भूमि का पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए. बीज विकास के समय मिट्टी में नमी होना आवश्यक है.
कलौंजी के पौधे ठंडी- गर्म दोनों जलवायु में पनपते हैं. कलौंजी को अंकुरण व बढ़ने के समय ठंडे तापमान और पकने के समय गर्म तापमान की जरुरत होती है.
कलौंजी की बुवाई सितंबर से अक्टूबर के बीच होती है. इसके बीजों को अंकुरित करने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है. वहीं पकाव अवधि के दौरान अगर बारिश हुई तो फसल चौपट हो जाती है.
खेत की तैयारी-
कलौंजी के बीज बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई कर लेनी चाहिए. इसके बाद खेत को कुछ समय के लिए छोड़ देना चाहिए, ताकि मिट्टी में धूप लगे और खराब बैक्टीरिया मर जाएं. इसके बाद गोबर-पत्तों की खाद अच्छे से मिला दें. रोटावेटर की मदद से मिट्टी को भुरभुरा कर लें.
बीज बुवाई-
कलौंजी के बीज बोने से पहले कैप्टॉन, थीरम व वाविस्टीन से उपचारित कर लें. इसके बीजों की बुवाई छिड़काव पद्धति या कतार विधि से की जाती है. सीधी बुवाई के लिए एक हेक्टेयर के लिए 7 किलो के आसपास बीज की आवश्यकता पड़ती है. कतार विधि में बीजों के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी रखें और गहराई 2 सेमी से ज्यादा न रखें. कतार विधि में बीज बोने से पौधों की देखभाल अच्छे तरीके से की जा सकती है. आप कलौंजी के बीज ऑनलाइन मंगवा सकते हैं या स्थानीय कृषि समिति में संपर्क कर बीज ले सकते हैं.
सिंचाईः कलौंजी की फसल को ज्याद सिंचाई की जरुरत होती है. आमतौर 5 से 8 सिंचाई की जाती हैं. हालांकि सिंचाई की मात्रा फसल की किस्म पर निर्भर करती है, कुछ किस्मों को ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है, कुछ सामान्य सिंचाई में अच्छा उत्पादन देती हैं.
खरपतवार से बचाव व खाद:
कलौंजी के पौधे सौंफ की तरह होते हैं, इन्हें खरपतवार से बचना ज़रूरी होता है. पौधे के बड़ा होते ही निराई गुड़ाई कर खरपतवार को हटाएं. कलौंजी की फसल में उच्च मात्रा में खाद की ज़रूरत होती है. कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेकर खाद डालें.
कलौंजी की उन्नत किस्में-
एनएस-44 : यह कलौंजी की सबसे ज्यादा उत्पादन देने वाली किस्म है. यह बाकी किस्मों के मुकाबले 20 दिन देरी से तैयार होती है. इसे पूरी तरह तैयार होने में 150 से 160 दिन लगते हैं. लेकिन यह किस्म 40 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन दे सकती है.
एन.आर.सी.एस.एस.ए.एन1-135- यह 135 से 140 दिन में पकने वाली किस्म है. पौधों की लंबाई 2 फीट होती है. यह 12-15 क्विंटल तक उत्पादन देती है. यह जड़गलनरोधी है.
आजाद कलौंजी- यह क़िस्म उत्तरप्रदेश में सबसे ज्यादा उगाई जाती है. यह 130 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. 8 से 10 क्विंटल तक उत्पादन होता है.
एन.एस.32: इसे तैयार होने में 140 में 150 दिन का समय लगता है. इसकी उत्पादन क्षमता 5-6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
इसके अलावा में अजमेर कलौंजी, कालाजीरा, राजेन्द्र श्याम एवं पंत कृष्णा कलौंजी की उन्नत किस्में हैं.
कलौंजी की फसल अमूमन 130 से 140 दिन में तैयार हो जाती है. कलौंजी की फसल से पौधों को जड़ समेत उखाड़ लिया जाता है. इसके बाद पौधों को धूप में सुखाया जाता है. इसके बाद बीज या दानों को निकलने के लिये पौधों को लकड़ी पर पीटा जाता है और दाने एकत्रित कर लिए जाते हैं.
क्या मिलता है भाव-
बाजार में कलौंजी का भाव करीब 500 से 600 प्रति किलो होता है. कृषि मंडियों में यह 20 हज़ार से 25 हज़ार प्रति क्विंटल के भाव तक बिकती है.
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