Winter Tips For Wheat Crop: भारत में गेहूं खेती का अत्यधिक महत्व है, विशेष रूप से उत्तरी राज्यों में, जहां इसे मुख्य खाद्यान्न के रूप में उगाया जाता है. उत्तर भारत में तापमान के उतार-चढ़ाव का गेहूं की फसल पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है. तापमान में परिवर्तन फसल की उपज, विकास के चरण, और गुणवत्ता पर सीधा असर डालता है. ऐसे में किसान तापमान का उचित प्रबंधन और अनुकूल तकनीकें अपनाकर गेहूं की फसल पर इसके नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है. इसका विश्लेषण निम्नलिखित बिंदुओं में किया जा सकता है...
1. अंकुरण और प्रारंभिक विकास
- गेहूं के बीज के अंकुरण के लिए 20-25°C का तापमान आदर्श माना जाता है.
- कम तापमान (10°C से कम) अंकुरण की गति धीमी कर सकता है, जबकि उच्च तापमान (30°C से अधिक) अंकुरण को बाधित कर सकता है.
2. विकास और बढ़वार
- 16-20°C तापमान फसल के वानस्पतिक विकास के लिए उपयुक्त है.
- यदि सर्दियों में तापमान सामान्य से अधिक हो जाए, तो फसल का बढ़वार कम हो सकता है और पौधे कमजोर हो सकते हैं.
3. फूलन और परागण
- फूलन और परागण के समय 20 से 25°C का तापमान अनुकूल होता है.
- अचानक तापमान में वृद्धि से परागण प्रभावित हो सकता है, जिससे दाने बनने की प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
4. अनाज भराव (Grain Filling)
- गेहूं की अनाज भराव प्रक्रिया 25 से 30°C तापमान के बीच सुचारू रूप से होती है.
- मार्च-अप्रैल के दौरान अचानक तापमान बढ़ने (लू चलने) से दानों का आकार छोटा हो सकता है और गुणवत्ता खराब हो सकती है.
5. पाले का प्रभाव (Frost Effect)
- सर्दियों में पाला (Frost) पड़ने से गेहूं की फसल में पत्तियों और फूलों को नुकसान हो सकता है. यह अनाज की उपज में कमी का कारण बनता है.
6. हीट स्ट्रेस (Heat Stress)
- यदि फसल कटाई से पहले तापमान 30°C से अधिक हो जाए, तो यह दानों की परिपक्वता (Maturity) को तेज कर देता है, जिससे दानों का वजन कम हो जाता है.
7. बीमारियां और कीट प्रकोप
- तापमान में उतार-चढ़ाव रोगों (जैसे, पत्ती धब्बा और रस्ट) और कीटों (जैसे, एफिड्स) के प्रकोप को बढ़ा सकता है.
- उच्च तापमान और आर्द्रता का मेल रोगों के लिए अनुकूल वातावरण बनाता है.
समाधान और प्रबंधन
तापमान सहिष्णु (Heat Tolerant) किस्में: ऐसे गेहूं की किस्में विकसित की जाएं, जो उच्च या निम्न तापमान को सहन कर सकें.
सिंचाई प्रबंधन: गर्मी के प्रभाव को कम करने के लिए अनाज भराव के समय सिंचाई करें.
मल्चिंग और फसल अवशेष प्रबंधन: मिट्टी के तापमान को संतुलित रखने के लिए मल्चिंग तकनीक अपनाएं.
समय पर बुवाई: बुवाई के समय को तापमान के अनुमानित परिवर्तनों के अनुसार समायोजित करें.
मौसम पूर्वानुमान का उपयोग: तापमान के उतार-चढ़ाव को समझने के लिए मौसम पूर्वानुमान का उपयोग करें और फसल प्रबंधन में सुधार करें.
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