भिन्डी की फसल में लगने वाला पीला शिरा (यलो वेन मोजेक) रोग एव विषाणु जनित रोग है जो फसल में उपस्थित रसचूसक कीटों से और ज्यादा फैलता है. यह रोग इतना विनाशकारी है कि जो पौधा इस रोग से ग्रसित हो गया, वह स्वथ्य नहीं हो पता. अतः इस रोग का रसचूसक कीटों से बचाव ही उपाय है.
भिन्डी की फसल में लगने वाले रोग के लक्षण:
यह रोग शुरुआती अवस्था में ग्रसित पौधे की पत्तियों की शिराएँ ही पीली पड़ जाती हैं किन्तु बाद की अवस्था में यह पीलापन पूरी पत्ती पर छा जाता है. ये पत्तियाँ पीली चितकबरी होकर मुड़ने लग जाती हैं. ग्रसित पौधे की पत्तियों में घुमाव, अवरुद्ध, सिकुड़न एवं पत्तियों की शिराएं पीली हल्की हो जाती हैं. इस रोग से प्रभावित फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते हैं. यह रोग पौधे की किसी भी अवस्था में हमला कर सकता है. अतः ये सभी लक्षण विषाणुजनित पीला शिरा मौसेक रोग के है.
भिन्डी की फसल में लगने वाले रोग से बचाव:
इस वायरस से ग्रसित पौधों को उखाड़ के नष्ट कर देना चाहिए तथा ग्रसित पौधों को एकत्रित कर के जला दें या फिर गड्ढे में डाल दें. सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए फेरामोन ट्रैप का उपयोग कर सकते है ताकि यह कीट इसमें आक्रशित होकर नष्ट हो जाये.
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यह रोग कीटों मुख्यत सफेद मक्खी से फैलता है अतः इन कीटों की रोकथाम के लिए डाइमेथोएट 30% EC @ 400 मिली दवा या एसिटामिप्रिड 20% SP @ 100 ग्राम या डायफैनथीयुरॉन 50% WP @ 250 ग्राम या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC @ 250 मिली या टोल्फेनपायरॅड 15% EC @ 200 मिली प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. इसके अलावा जैविक माध्यम से भी इसका उपचार संभव है जिसमें बवेरिया बेसियाना मित्र फफूंदनाशी @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें.
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