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सूखा प्रभावित क्षेत्र में करें रोशा घास की खेती, सगंध तेल से होगा बंपर मुनाफा

सगंध तेल के उत्पादन में रोशा घास तेल का अपना महत्व है. इससे प्राप्त होने वाला तेल आर्थिक रूप से किसानों के लिए बहुत ही लाभदायक है. इसकी खेती में कम लागत आती है और सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी इसे आराम से उगाया जा सकता है. इस बहुवर्षीय सुगंधित पौधे का वानस्पतिक नाम सिम्बोपोगान मार्टिनाई है और इसका संबध पोएसी कुल से है.

सिप्पू कुमार

सगंध तेल के उत्पादन में रोशा घास तेल का अपना महत्व है. इससे प्राप्त होने वाला तेल आर्थिक रूप से किसानों के लिए बहुत ही लाभदायक है. इसकी खेती में कम लागत आती है और सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी इसे आराम से उगाया जा सकता है. इस बहुवर्षीय सुगंधित पौधे का वानस्पतिक नाम सिम्बोपोगान मार्टिनाई है और इसका संबध पोएसी कुल से है.

एक बार लगाने के बाद इससे 6 वर्ष तक उपज प्राप्त होती रहती है. इसका पौधा 10 डिग्री से 45 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को बड़ी ही आसानी से सहन कर लेता है. इसकी खेती मुख्य रूप से उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में होती है.

जलवायु एवं मृदा

इस पौधे की खेती के लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु की जरूरत पड़ती है. हालांकि तेल की मात्रा एवं गुणवत्ता गर्म एवं शुष्क जलवायु में भी अच्छी प्राप्त हो सकती है. इसके लिए पीएच मान 7.5 से 9 तक वाली मृदा को उपयुक्त माना गया है.

खेत की तैयारी

इसकी खेती के लिए किसी तरह की विशेष तैयारी की जरूरत नहीं पड़ती है. लेकिन रोपण से पहले खेतों की जुताई कर उन्हें भूरभूरा बनाना जरूरी है.

पौधा रोपण

बीज को रेत के साथ मिला कर 15-20 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपें और उसके बाद पानी छिड़काव करें. इस काम के लिए मई का माह सबसे उपयुक्त रहता है. पौधा 4 सप्ताह के बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाता है. बीजों को सामान्य दशाओं में 60×60 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए. हालांकि असिंचित अवस्था में 30×30 सेंटीमीटर की दूरी पर्याप्त है.

सिंचाई

सिंचाई की आवश्यकता मौसम पर निर्भर करती है. हालांकि पहली सिचाई रोपण के तुरंत बाद ही करनी चाहिए. वर्षा ऋतू में विशेष सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. ध्यान रहे कि कटाई से पहले सिंचाई को बंद करना है और कटाई के बाद सिंचाई अवश्य करनी है.

फसल की कटाई जमीन से 20 सेंटीमीटर के भाग को छोड़कर 50 प्रतिशत पुष्प आने पर दरांती से करनी चाहिए. ध्यान रहे कि रोशा घास की फसल में तेल का प्रतिशत, शाक एवं तेल की उपज जलवायु एवं कृषि क्रियायों पर निर्भर करती है. तेल की पैदावार पहले साल में कम होती है, लेकिन दूसरे साल से इसके अच्छे परिणाम आने लगते हैं.  

(आपको हमारी खबर कैसी लगी ? इस बारे में अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर दें. इसी तरह अगर आप पशुपालन, किसानी, सरकारी योजनाओं आदि के बारे में जानकारी चाहते हैं, तो वो भी बताएं. आपके हर संभव सवाल का जवाब कृषि जागरण देने की कोशिश करेगा)

English Summary: rosha grass this medical crops can give you huge profit know more about the economical benefits of rosha grass Published on: 05 May 2020, 05:12 PM IST

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