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गेहूं की खेती: बढ़ते तापमान में बस इन बातों का रखें ध्यान, नहीं होगा नुकसान!

बिहार में तापमान में उतार-चढ़ाव का गेहूं की खेती पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है. यह फसल की बुवाई, वृद्धि, दाना बनने और उत्पादन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है. जलवायु अनुकूल कृषि तकनीकों, आधुनिक प्रजातियों के चयन, संतुलित पोषण प्रबंधन और समुचित सिंचाई उपायों को अपनाकर इन प्रभावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है.

डॉ एस के सिंह
wheat production management
फरवरी में बढ़ता तापमान घटा रहा है गेहूं की पैदावार (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Wheat Crop: बिहार कृषि प्रधान राज्य है, जहां गेहूं एक प्रमुख रबी फसल के रूप में उगाया जाता है. जलवायु परिवर्तन और मौसम की अनिश्चितताओं के कारण इस वर्ष एवं विगत वर्षों में तापमान में उतार-चढ़ाव देखा गया है, जिसका गेहूं की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. जलवायु अनुकूल कृषि तकनीकों, आधुनिक प्रजातियों के चयन, संतुलित पोषण प्रबंधन और समुचित सिंचाई उपायों को अपनाकर इन प्रभावों को काफी हद तक कम किया जा सकता है. बिहार में तापमान परिवर्तन के कारण गेहूं की खेती पर पड़ने वाले प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है...

बिहार की जलवायु एवं गेहूं की खेती

बिहार की जलवायु उपोष्ण कटिबंधीय (sub-tropical) है, जिसमें रबी सीजन (नवम्बर से अप्रैल) गेहूं की खेती के लिए उपयुक्त होता है. गेहूं की बुवाई मुख्यतः नवंबर-दिसंबर में की जाती है और मार्च-अप्रैल में कटाई होती है. इस दौरान तापमान में परिवर्तन, विशेषकर अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान में अचानक वृद्धि या गिरावट, गेहूं की वृद्धि और उपज पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है.

तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण

तापमान में असामान्य उतार-चढ़ाव मुख्यत निम्नलिखित कारणों से होते हैं...

जलवायु परिवर्तन – वैश्विक तापमान वृद्धि (Global Warming) और मौसम चक्र में परिवर्तन के कारण रबी मौसम में असामान्य तापमान वृद्धि देखी जा रही है.

ला नीना और एल नीनो प्रभाव – प्रशांत महासागर में समुद्री तापमान परिवर्तन बिहार की जलवायु को प्रभावित करता है, जिससे कभी ठंड अधिक हो जाती है तो कभी तापमान सामान्य से अधिक बढ़ जाता है.

स्थानीय मौसमीय घटनाएं – पश्चिमी विक्षोभ, चक्रवात और अनियमित वर्षा भी तापमान में उतार-चढ़ाव का कारण बनते हैं.

गेहूं की फसल पर तापमान उतार-चढ़ाव का प्रभाव

(i) बुवाई के समय (नवंबर-दिसंबर)

यदि तापमान सामान्य से अधिक रहता है, तो मिट्टी में नमी की कमी हो सकती है, जिससे अंकुरण प्रभावित होता है. इस वर्ष दिसम्बर के महीने मे तापमान सामान्य से अधिक रहने के कारण गेंहू मे कल्ले कम बने .

(ii) वृद्धि और कल्ले फूटने का चरण (जनवरी-फरवरी)

इस समय न्यूनतम तापमान बहुत अधिक गिरने यानि 5 डिग्री सेल्सियस पर फसल के विकास की गति धीमी हो जाती है. यदि दिन का तापमान कम और रात का अधिक होता है, तो फसल का संतुलित विकास प्रभावित हो सकता है. इस वर्ष 5 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान बहुत कम दिन के लिए रहने के कारण से वृद्धि और कल्ले फूटने की प्रक्रिया बुरी तरह से प्रभावित हुई है . बहुत तेजी से तापमान में उतार चढ़ाव होने की वजह से गेंहू में टिलर्स कम बने , वृद्धि एवं विकास भी प्रभावित हुआ है. जाड़े के मौसम में कुहासा एवं ओस अधिक पड़ने से भी गेहूं की वृद्धि एवं विकास अच्छा होता है , इसका मुख्य कारण वातावरण में मौजूद नत्रजन ओस के साथ घोलकर जब पत्तियों पर पड़ता है तो फसलें लहलहा उठती है.

(iii) फूल आने और दाना बनने का चरण (फरवरी-मार्च)

इस समय अचानक तापमान वृद्धि (हीट वेव) होने पर गेहूं की परिपक्वता जल्दी हो जाती है, जिससे दाने हल्के और सिकुड़े हुए बनते हैं, जिससे उत्पादन कम हो जाता है. अधिक तापमान के कारण गेहूं में हीट शॉक (Heat Shock) होता है, जिससे दानों में स्टार्च और प्रोटीन की गुणवत्ता प्रभावित होती है. अगर तापमान सामान्य से कम होता है, तो परागण (Pollination) प्रभावित होता है, जिससे उपज में कमी आती है.

(iv) पकने और कटाई का समय (मार्च-अप्रैल)

मार्च-अप्रैल में यदि तापमान सामान्य से अधिक बढ़ जाता है, तो प्री-मैच्योर ग्रेन फिलिंग (Premature Grain Filling) होती है, जिससे दाने का वजन कम हो जाता है. अत्यधिक गर्मी के कारण गेहूं की नमी जल्दी सूख जाती है, जिससे उपज और गुणवत्ता प्रभावित होती है. तेज आंधी-तूफान और असामयिक बारिश से फसल गिर सकती है और गुणवत्ता घट सकती है.

संभावित समाधान और प्रबंधन रणनीतियां

तापमान में उतार-चढ़ाव के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं...

(i) जलवायु अनुकूल प्रजातियों का चयन

तापमान सहिष्णु और जल्दी पकने वाली प्रजातियाँ (जैसे HD-2967, DBW-187, HD-3086) उगाई जाएं. हीट-टॉलरेंट और ड्राउट-रेसिस्टेंट (सूखा सहिष्णु) प्रजातियों का चुनाव किया जाए.

(ii) समायोजित बुवाई समय

समय पर बुवाई (10-25 नवंबर के बीच) करने से तापमान उतार-चढ़ाव के प्रभाव को कम किया जा सकता है. लेट बुवाई के लिए उपयुक्त किस्में जैसे HD-2932, DBW-90 अपनाई जाएं.

(iii) सिंचाई और नमी प्रबंधन

क्रिटिकल ग्रोथ स्टेज (Tillering, Flowering, and Dough Stage) पर उचित सिंचाई करें.

(iv) उर्वरक प्रबंधन

नाइट्रोजन और पोटाशयुक्त उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें ताकि फसल की सहनशक्ति बढ़े. जैव उर्वरकों (Biofertilizers) और ह्यूमिक एसिड (Humic Acid) का प्रयोग करें.

(v) रोग और कीट नियंत्रण

तापमान बढ़ने से झुलसा रोग बढ़ सकता है, इसलिए सुरक्षात्मक फफूंदनाशकों (Fungicides) का छिड़काव करें. गर्मी और नमी बढ़ने से एफलिड्स (Aphids) एवं दीमक का प्रकोप बढ़ता है, जिनका जैविक नियंत्रण किया जाए.

English Summary: rising temperature in february reducing wheat production management Published on: 06 February 2025, 11:50 AM IST

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