मूली की फसल से कम समय में अधिक मुनाफा देने वाली फसलों में से एक है, वैसे इसकी खेती ठंड के मौसम में यानी रबी सीजन में मुख्य रूप से की जाती है. मूली का इस्तेमाल अधिकतर कच्चे सलाद के रूप में साथ ही सब्जी बनाने और अचार बनाने के लिए किया जाता है. भारत में मुख्य रूप से गुजरात, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब, असम और हरियाणा में मूली की खेती की जाती है. किसान कम लागत में मूली की खेती कर बेहतर पैदावार के साथ अच्छा मुनाफा कमाया सकते हैं.
मूली की खेती करने के लिए लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है. क्यों मूली की खेती के लिए 10 से 15 सेल्सियस तापमान आवश्यक होता है, हालांकि किसान आज के दौर में कुछ किसान पूरे साल मूली की खेती करते हैं.
लेकिन अगर मूली की खेती अधिक तापमान में की जाती है तो यह फसल के लिए अच्छी नहीं होती है,गर्म तापमान में मूली की खेती करने से इसकी जड़े कड़ी और कड़वी हो जाती हैं.
वहीं अगर बात करें मूली की खेती के लिए मिट्टी और भूमि की तो इसकी खेती के लिए जीवांशयुक्त दोमट या बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है. मूली फसल की बुवाई के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 6.5 के आसपास होना आवश्यक है.
मूली की बुवाई: मूली की खेती मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में की जा सकती है जाती है. मैदानी भागों में किसान मूली की बुवाई सितंबर से जनवरी माह के बीच करते है, जबकि पहाड़ी इलाकों में इसकी बुवाई अगस्त माह तक होती है.
मूली खेती के खेत की तैयारी: मूली की बुवाई से पहले किसानों को खेत को भलीभांति तैयार कर लेना चाहिए, खेतों की पांच से छह बार जुताई कर लेनी चाहिए, क्योंकि मूली फसल की बुवाई के लिए गहरी जुताई की आवश्यकता होती है. इसकी जड़ें भूमि में गहराई तक जाती है गहरी जुताई के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से किसानों खेतों की जुताई करनी चाहिए. इसके बाद दो बार कल्टीवेटरल हल से मूली के खेतों की जुताई करनी चाहिए और जिसके बाद खेत को समतल करना चाहिए.
फसल में रोग लगने का खतरा: मूली की फसल को कई तरह के रोग लगने का खतरा रहता है. मूली की फसल में मुख्यत: व्हाईट रस्ट, सरकोस्पोरा कैरोटी, पीला रोग, अल्टरनेरिया पर्ण, अंगमारी रोग लगते हैं. मूली की फसलों में ये रोग न लगे इसके लिए फफूंद नाशक दवा डाईथेन एम 45 या जेड 78 का 0.2 प्रतिशत घोल से फसलों पर छिडक़ाव करना चाहिए या फिर 0.2 प्रतिशत ब्लाईटेक्स को फसलों पर स्पे करें.
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रोग प्रबंधन: मूली की फसलों में कई प्रकार के कीट रोग लग सकते हैं, जिसके इससे उत्पादन में कमी आने की संभावना रहती है. मूली में मुख्य रूप से मांहू, मूंगी, बालदार कीड़ा, अर्धगोलाकार सूंडी, आरा मक्खी, डायमंड बैक्टाम कीट का प्रकोप अधिक रहता है, जिसकी रोकथाम के लिए किसान मैलाथियान 0.05 प्रतिशत तथा 0.05 प्रतिशत डाईक्लोरवास का प्रयोग करते हैं.
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