किसानों के लिए ईसबगोल की खेती अल्प समय में ज्यादा आय देने का स्त्रोत् है. इसकी खेती औषधीय पौधे के रूप में की जाती है. जिसका इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों को दूर करने में किया जाता है. साथ ही इससे कई तरह की चीजों को बनाया जाता है. जैसे- आइसक्रीम एवं रंग रोगन के सामान आदि. ईसबगोल के पौधे तीन से चार फिट की ऊंचाई पर होते है, जोकि देखने में झाड़ी की तरह लगते है. इन पर गेहूं की तरह बाली दिखाई देती है. इसके पौधों की पत्तियां धान के पौधों की तरह होती है. हमारे देश में इसकी खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान में की जाती है. इसका इस्तेमाल पशुओं को चारा खिलाने में भी किया जाता है. जाते है. ईसबगोल की भूसी में अपने वजन के कई गुना पानी सोखने की क्षमता होती है.
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
इसकी खेती ऊष्ण जलवायु में आसानी से की जा सकती है. इसके पौधों को विकास करने के लिए भूमि का पी.एच.मान सामान्य होना चाहिए. इसकी फसल के पकते समय वातावरण साफ एवं शुष्क होना चाहिए, क्योंकि फसल को बरसात की हल्की बौछार से भी भारी नुकसान हो सकता है. अगर मिट्टी की बात करें, खेत में उचित जल निकास और उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है. अगर भूमि नमी वाली है, तो इसके पौधों का विकास नहीं होगा. इसकी खेती में बलुई दोमट मिटटी उपयुक्त मानी जाती है. जिसमें जीवाश्म की मात्रा अधिक हो.
खेत की तैयारी
किसान ईसबगोल की खेती कर रहे है, तो खेत को अच्छी तरह तैयार करना आवश्यक है. इसके लिए खेत को खरीफ की फसल की कटाई के बाद दो से तीन जुताई करें और मिट्टी को भुरभरी बना लें. अगर खेत में दीमक की समस्या है, तो फॉरेट करीब 10 जी 20 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से अन्तिम बुवाई के समय भूमि में मिलाएं. इसके बाद खेत में पाटा चलाकर मिट्टी को समतल बना दें. जिससे पानी भराव न हो. बता दें कि इसके बीजों की रोपाई खेत में समतल और मेड दोनों पर की जाती है. इसलिए खेत में मेड पर रोपाई करने के लिए मेड तैयार कर लें.
उन्नत किस्में
ईसबगोल की कई तरह की उन्नत किस्में होती हैं. जिनको फसल के पकने की अवधि और पैदावार के आधार पर तैयार किया जाता है. आप अपने अनुसार किस्म का चयन कर सकते है.
बीज की बुवाई
ईसबगोल की खेती में बीज को अक्टूबर से नवम्बर की बाच बोना चाहिए. इसके बीजों की बुवाई कतारों में की जाती है, जिनकी दूरी करीब 25 से 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए. बीज को करीब 3 ग्राम थाईरम प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित करें और बीजों को मिट्टी में मिला लें. इसके बाद बुवाई करनी चाहिए.
पौधों की सिंचाई
ईसबगोल की खेती करते वक्त पौधों को सिंचाई की अधिक जरूरत नहीं पड़ती है. बस बीजों की रोपाई के बाद हल्की सिंचाई कर दें. अगर बीजों के अंकुरण की मात्रा कम है, तो खेत में करीब 4 से 5 दिन बाद एक बार हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए. इससे बीजों का अंकुरण ठीक से हो जाता है. बीजों के अंकुरण के बाद पहली सिंचाई करीब 30 से 35 दिन बाद करें. तो वहीं दूसरी सिंचाई, पहली सिंचाई के करीब 20 से 30 दिन बाद करें.
फसल की कटाई
जब बालियां लाल और हाथ से मसलने पर दाना अलग होने लगे, पौधों की कटाई करनी चाहिए. इसकी बालियों की हर 2 से 3 दिन में तुडाई कर लेनी चाहिए. सात ही बालियों को तोड़कर एक स्थान पर रखें. पौधों की कटाई के लिए सुबह का उच्त रहता है, क्योंकि इस समय बालियों से बीज काफी कम मात्रा में झड़ते हैं. किसान भाई इसके दानो को मशीनों से भी निकाल सकते हैं, क्योंकि इसकी भूसी भी काफी अच्छी होती है. इसका उपयोग पशुओं के चारे के लिए किया जाता है.
पैदावार
किसान भाई ईसबगोल की खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते है. इसकी विभिन्न किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार करीब 10 से 12 क्विंटल होती है. इसके अलावा दानो से मिलने वाली भूसी करीब 20 से 30 प्रतिशत मिल जाती है. बता दें कि बाजार में इसके दानो का भाव करीब 8 हज़ार के आसपास होता है. तो वहीं भूसी का भाव मांग के हिसाब से होता है. लेते हैं.
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