ड्रिप सिस्टम सिंचाई की एक ऐसी तकनीक है, जिसका इस्तेमाल दुनिया के कई देशो में काफी तेजी के साथ किया जा रहा है. हाइड्रोपोनिक्स में पौधों और चारे वाली फसलों को नियंत्रित वातावरण में 15 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर लगभग 85 से 90 प्रतिशत आर्द्रता में उगाया जाता है.
हाइड्रोपोनिक ड्रिप सिस्टम क्या है
हाइड्रोपोनिक ड्रिप सिस्टम का इस्तेमाल छोटे से लेकर बड़ी खेती के लिए किया जा सकता है. हालांकि यह बड़े रूट सिस्टम वाले बड़े पौधों के लिए ज्यादा सहायक होता है. ड्रिप लाइनें बड़े क्षेत्रों में आसानी से खींची जा सकती हैं. सामान्यता पेड़-पौधे अपने आवश्यक पोषक तत्व जमीन से लेते हैं, लेकिन हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों के लिये आवश्यक पोषक तत्व पानी के माध्यम से दिया जाता है. इसके लिए पानी में पौधों के विकास के लिये आवश्यक खनिज एवं पोषक तत्व मिलाए जाते हैं. इस घोल में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सल्फर, जिंक और आयरन आदि तत्वों को एक खास अनुपात में मिलाया जाता है, ताकि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व समय-समय पर मिलते रहें.
कैसे काम करता है
इस तकनीकी में पानी की पाइप को हर पौधे की जड़ों से जोड़ा जाता है. इस ट्यूब को जलाशय से टयूबिंग प्रणाली के माध्यम से पौधों तक पानी पहुँचाया जाता है. पानी की आपूर्ति को सुचारु रुप से पौधों तक पहुंचाने के लिए गुरुत्वाकर्षण-आधारित प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें प्रत्येक पौधे को कम से कम एक ड्रिप एमिटर से जोड़ा जाता है जो जल के प्रवाह को समायोजित करता है.
लाभ
ड्रिप सिस्टम विधि में जल दक्षता 95 प्रतिशत तक होती है, जबकि पारम्परिक सिंचाई प्रणाली में यह सिर्फ 50 प्रतिशत तक ही होती है और इससे सिंचित फसल की वृद्धि तीव्र गति से होती है.
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इस विधि के पानी के बचाव के साथ-साथ उवर्रको की अनावश्यक बर्बादी को रोका भी जा सकता है, जिससे पौधों के आस-पास खरपतवार उगने का खतरा कम हो जाता है.
ड्रिप सिंचाई विधि मिट्टी को एक आदर्श नमी प्रदान करता है, जिस कारण फसल का विकास अच्छे से होता है. इस विधि से मिट्टी में कीटनाशक और कवकनाशकों के बढ़ने की सम्भावना भी बिल्कुल ही कम हो जाती है.
भारत सरकार भी विभिन्न कार्यक्रमों और विज्ञापनों के जरिए भारत के किसानों को ड्रिप सिंचाई से खेती करने को बढ़ावा दे रही है. जिससे मृदा अपरदन के बचाव के साथ-साथ मृदा संरक्षण को भी बढ़ावा दिया जा सके.
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