मूंगफली या चिना बादाम देशभर में एक जाना पहचाना तैल जातीय कृषि उपज है. भूना हुआ मूंगफली को लोग बहुत चाव से खाते हैं. हालांकि यह पेट भरने वाला भोज्य पदार्थ नहीं हैं लेकिन स्वादिष्ट और कई पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण प्रायः सभी लोग इसे खाना पसंद करते हैं. देशभर में इसकी मांग को देखते हुए किसानों के लिए यह लाभदायक खेती है.
मूंगफली का बीज चूंकि ऊपर से एक मजबूत छिलका से ढका होता है इसलिए इसके जल्दी सड़ने गलने का भी डर नहीं रहता है. किसान आसानी से एक निश्चित समय में मूंगफली को बिक्री कर अपनी फसल का उचित कीमत पा सकते हैं. इसलिए कि मूंगफली भी तिलहन जातीय एक नकदी फसल है. कुल मिलाकर किसानों के लिए मूंगफली की खेती बहुत लाभदायक है, इसमें कोई संदेह नहीं है. भारत हर साल 16.5 मिलियन टन मूंगफली का उत्पादन करने वाले शीर्ष देशों में शामिल है. मूंगफली से निकाले गए तेल का भी भारत समेत विदेशों में भी काफी मांग है.
भारत में मूंगफली का उत्पादन करने वाला शीर्ष राज्य गुजरात है. उसके बाद राजस्थान, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और ओड़िशा आदि राज्यों में मूंगफली की खेती होती है. गुजरात भारत में मूंगफली का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है जहां सालाना लगभग 2892 हजार टन मूंगफली का उत्पादन होता है. गुजरात के जामनगर, गिर, अमरेली, भावनगर, और पोरबंदर आदि क्षेत्रों में मूंगफली की खेती विस्तृत भू खंड पर होती है. उसके बाद दक्षिण के कुछ राज्यों समेत, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में प्रचुर मात्रा में मूंगफली की खेती होती है. जहां तक सवाल पश्चिम बंगाल का है तो यहां कुछ जिलों में लाल मिट्टी और उत्तम जलवायु मूंगफली की खेती के लिए बहुत अनुकूल है. पश्चिम बंगाल बंगाल प्रतिवर्ष 199.2 हजार टन मूंगफली का उत्पादन करने वाला एक खुशहाल राज्य है.
पश्चिम बंगाल में मूंगफली की खेती के जानकर और कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक यह एक खरीफ की फसल है. रबी की फसल की कटाई के बाद अप्रैल से मूंगफली की खेती शुरू होती है और जुलाई तक फसल खेतों में पककर तैयार हो जाती है. मूंगफली के बीज बोने से लेकर खेतों में फसल तैयार होने तक इसकी सिंचाई और अच्छी तरह देख भाल की जरूरत पड़ती है. कृषि विशेषज्ञों के हवाले से इस बारे में मैं यहां कुछ विशेष जानकारी देना चाहूंगा ताकि मूंगफली की खेती करने वाले किसानों को मार्ग दर्शन हो सके और वे मूंगफलनी की उन्नत खेती करने में सफल हो सकें.
मिट्टी व सिंचाई- बंगाल के पश्चिमांचल क्षेत्र के पुरूलिया व बांकुड़ा आदि जिलों की लाल व शुष्क मिट्टी में मूंगफली की खेती होती है. ऊंची और शुष्क भूमि इसके लिए उत्तम मानी जाती है. पश्चिम बंगाल में धान की फसल काटने के बाद ऊंची जमीन वाले क्षेत्र में मूंगफली की बुआई अप्रैल माह में शुरू हो जाती है. बीज रोपने के बाद खेत में फसल तैयार होने तक तीन बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है. पहली बार बीज बोने के बाद एक बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है. उसके बाद पौधा बढ़ने के साथ जरूरत के अनुसार और कम से कम दो बार सिंचने के बाद मूंगफली की फसल अधिकतम चार माह में तैयार हो जाती है. जुलाई में खेत में तैयार मूंगफली की फसल काट कर किसान बाजार में बिक्री कर सकते हैं.
देखभालः मूंगफली के खेती करने वालों किसानों को इसकी निरंतर देखभल करनी चाहिए. इसलिए कि मूंगफली के पौधे में किड़ा लगने व वायरस फैलने का खतरा रहता है. मूंगफली के पौधे में किड़ा लग जाने से पूरे फसल के वायरस की चपेट में आने का खतरा बढ़ जाता है. इसिलए मूंगफली के पौधे में किड़ा लगने वाले कोई लक्षण दिखे तो तुरंत उससे बचने का उपाय करना पड़ता है. किड़ा लगने वाले किसी तरह के रोग का लक्षण दिखने पर तुरंत कीटनाशक का उपयोग करना चाहिए. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिबक तीन लीटर पानी में एक ग्रम थायोमिथेक्सम मिलाकर छिड़काव करने से मूंगफली के पौधे में लगे किड़े नष्ट हो जाते हैं और वायरस फैलने का खतरा भी टल जाता है. फसल में लगे किड़ा मारने के लिए एक लीटर पानी में दो मिली लीटर डायोमिथियेट मिलाकर छिड़काव करने से फायदा मिल सकता है.
ये खबर भी पढ़े: पशुपालकों की पहली पसंद है मकचरी, जानिए खेती से कैसे होगा लाभ
मूंगफली के पौधे में गोड़ापचा नामक रोग भी कभी कभी देखने को मिलता है. यह मूंगफली के पौधे के एकदम नीचले सिरे जहां मिट्टी के साथ जुड़ा रहता है, वहां अपना घर बनाता है. बाद में उसका वायरस फैलता है और पूरी फसल को नष्ट कर देता है. इस रोग से मूंगफली की फसल को बचाने के लिए भी कारगर उपाय है. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक गोड़ापछा रोग के लक्ष्ण दिखने पर एक लीटर पानी में थायफोनेट मिथाइल 70 प्रतिशत यानी 1 ग्राम और क्लोरोथैलोनिन 75 प्रतिशत यानी 2 ग्राम मिलाकर मूंगफली के पौधे की मिट्टी से जुड़ने वाले अंश में छिड़काव करना चाहिए. इससे गोड़ापचा रोग से मूंगली की फसल सुरक्षित हो जाती है.अलग-अलग प्रातों में मूंगफली के पौधे में होने वाले रोगों को स्थानीय भाषा में अलग-अलग नाम से जाना जाता है. लेकिन इतना तय है कि अच्छी तरह देखभल करने से किसानों के लिए मूंगफली की खेती लाभदायक है. तीन-चार माह की मेहनत के बाद ही जुलाई माह में किसान खेतों से मूंगफली की फस काटकर उसे उचित मूल्य पर बाजार में बिक्री कर सकते हैं.
Share your comments