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जैविक और जीरो बजट खेती: कृषि रसायनों के दुष्प्रभावों से निजात की दिशा में नया कदम!

Organic Farming: जैविक खेती और जीरो बजट खेती भारतीय कृषि को नई दिशा दे सकती है. यह न केवल कृषि रसायनों की निर्भरता कम करती है, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता और मानव स्वास्थ्य को भी संरक्षित करती है. सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करने होंगे ताकि जैविक खेती को मुख्यधारा में लाया जा सके. टिकाऊ कृषि की दिशा में यह एक बड़ा कदम होगा.

डॉ एस के सिंह
Organic and Zero Budget Farming
कृषि रसायनों के दुष्प्रभावों से निजात की दिशा में नया कदम (Picture Credit - Adobe Stock)

Organic and Zero Budget Farming: भारत में बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्न उपलब्ध कराने की चुनौती को ध्यान में रखते हुए, कृषि रसायनों के संतुलित उपयोग का आरंभ किया गया था. यह माना गया कि कृषि रसायनों का उपयोग अत्यंत आवश्यकता होने पर ही किया जाए, वह भी सीमित मात्रा में. लेकिन समय के साथ, इन रसायनों का अंधाधुंध उपयोग होने लगा, जिससे खेती विषैली हो गई. इसके परिणामस्वरूप, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का प्रकोप बढ़ा. मृदा, जल और फसलों में विषाक्तता के कारण समाज के हर वर्ग में कृषि रसायनों के प्रति आक्रोश पनप रहा है. इसी बीच, जैविक खेती और जीरो बजट खेती (प्राकृतिक खेती) की ओर एक नई चेतना उभर रही है. 

कृषि रसायनों का प्रभाव और जैविक खेती का महत्व

कृषि रसायनों के बढ़ते उपयोग से मृदा की उर्वरता में गिरावट आ रही है. किसान अधिक लाभ कमाने की होड़ में अत्यधिक रसायनों का प्रयोग कर रहे हैं, जिससे न केवल फसलों की गुणवत्ता खराब हो रही है बल्कि यह जलवायु परिवर्तन की समस्या को भी बढ़ा रहा है. ऐसे में, जैविक खेती एक ऐसा विकल्प है जो टिकाऊ कृषि प्रणाली की ओर हमें अग्रसर करता है. जैविक खेती में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध संसाधनों का उपयोग किया जाता है, जिससे मृदा की गुणवत्ता, फसलों की उत्पादकता और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है. 

जीरो बजट खेती का परिचय

जीरो बजट खेती, जिसे प्राकृतिक खेती भी कहते हैं, रसायन मुक्त खेती की एक विधि है. इसमें मुख्य रूप से पशुपालन आधारित उत्पाद, जैसे गोबर और गौमूत्र, का उपयोग किया जाता है. इनसे जीवामृत' और घनामृत' जैसे उत्पाद तैयार किए जाते हैं, जो मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं. 

  • जीवामृत: गोबर, गौमूत्र, गुड़, दाल का आटा और मिट्टी का मिश्रण, जिसे फसलों पर छिड़काव के लिए उपयोग किया जाता है.
  • घनामृत: इसे पौधों के पोषण और कीट नियंत्रण के लिए इस्तेमाल किया जाता है. 

प्राकृतिक खेती के लाभ

1. कम लागत: जीरो बजट खेती में किसानों को उर्वरक और कीटनाशक खरीदने की आवश्यकता नहीं होती. यह स्थानीय संसाधनों पर आधारित होती है.

2. मृदा की उर्वरता में सुधार: गोबर और गौमूत्र जैसे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग मृदा की जैविक गुणवत्ता को बनाए रखता है.

3. पानी की बचत: इस विधि में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है, जिससे जल की खपत 10 से 15% तक घट जाती है. 

4. स्वस्थ फसलें: रसायन मुक्त फसलों के कारण किसानों को अधिक मूल्य प्राप्त होता है और उपभोक्ताओं को स्वस्थ खाद्य सामग्री मिलती है.

जैविक खेती का वैश्विक परिप्रेक्ष्य

जैविक खेती विश्व स्तर पर तेजी से लोकप्रिय हो रही है. 2019 तक, लगभग 72.3 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती की जा रही थी, जिसमें ऑस्ट्रेलिया अग्रणी है. यह कृषि प्रणाली रसायनों के न्यूनतम उपयोग और पर्यावरणीय संरक्षण पर आधारित है. अंतर्राष्ट्रीय संगठन, IFOAM (International Federation of Organic Agriculture Movements), जैविक खेती के मानकों को नियंत्रित करता है. 

भारत में जैविक खेती की स्थिति

भारत में सिक्किम को पहला जैविक राज्य घोषित किया गया है. आंध्र प्रदेश ने "शून्य बजट प्राकृतिक खेती" परियोजना की शुरुआत की है, जिसका लक्ष्य 2024 तक रसायनों के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का रखा गया था. हालांकि, जैविक खेती को सफल बनाने के लिए निम्नलिखित प्रयास आवश्यक हैं: 

  1. जैविक खाद को सरकारी संस्थानों से प्रमाणित कर सस्ती दर पर उपलब्ध कराया जाए.
  2. किसानों को प्रारंभिक वर्षों में हुए घाटे की भरपाई के लिए बीमा योजनाओं का प्रावधान किया जाए.
  3. रासायनिक कृषि में दी जाने वाली सब्सिडी को जैविक खेती की ओर स्थानांतरित किया जाए.

जैविक खेती को लोकप्रिय बनाने के सुझाव

किसानों को अधिक पशुपालन के लिए प्रेरित किया जाए, जिससे गोबर और गौमूत्र आसानी से उपलब्ध हो. वर्मी कंपोस्ट बनाने की विधियों पर प्रशिक्षण दिया जाए. दो फसलों के बीच हरी खाद उगाने को प्रोत्साहित किया जाए. जैविक कीटनाशकों के उपयोग पर जोर दिया जाए. किसानों को जागरूक करने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं. 

English Summary: organic farming and zero budget farming are beneficial for farmers Published on: 06 January 2025, 05:34 PM IST

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