जौ, दाने, पशु आहार, चारा, शराब, बेकरी, पेपर, फाइबर पेपर, फाइबर बोर्ड जैसे कई उत्पाद बनाने के काम में आता है. जौ पोषक तत्वों का भंडार है. इसमें प्रोटीन, फाइबर, आयरन, मैंगनीज़, विटामिन, कैल्शियम और कई महत्वपूर्ण पोषक तत्व शामिल हैं. इसकी खेती सीमित संसाधनों में की जा सकती है. इसकी खेती में पानी गेहूं की अपेक्षा कम खर्च होता है. वहीं ये सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है. पिछले कुछ वर्षों में बाजार में जौ की मांग बढ़ने से किसानों को इसकी खेती से फायदा भी हो रहा है. देश में आठ लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हर वर्ष लगभग 16 लाख टन जौ का उत्पादन होता है. यदि व्यवसायिक रूप से इसकी खेती की जाए तो इससे अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. तो आइए जानते हैं जौ की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु व अन्य जरूरी जानकारी.
मिट्टी और जलवायु- अच्छी फसल की पैदावार के लिए मिट्टी का उपजाऊ होना बेहद ज़रूरी होता है. जौ की खेती के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है. इसके अलावा बलुई, क्षारीय और लवणीय मिट्टी में भी इसकी खेती होती है. इसकी उगाई के लिए अनुकूल मिट्टी का चुनाव करना चाहिए. जौ शीतोष्ण जलवायु की फसल है, लेकिन समशीतोष्ण जलवायु में भी इसकी खेती की जा सकती है. जौ की खेती समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई तक की जा सकती है. जौ की फसल के लिए न्यूनतम तापमान 35-40 डिग्री, उच्चतम तापमान 72-86 डिग्री और उपयुक्त तापमान 70 डिग्री होता है.
खेत की तैयारी- जौ की खेती के लिए खेत समतल और जल निकास वाला होना चाहिए. इसके लिए खेत की अच्छी तरह से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए. एक एकड़ में इसकी बुवाई करने के लिए 30-40 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. प्रत्येक एकड़ के हिसाब से हर एकड़ में 80 किलो नाइट्रोजन और 40 किलो पोटाश की ज़रूरत होती है. इसके लिए पहले हरी खाद देना आवश्यक होता है. इसके अलावा गोबर की खाद, कम्पोस्ट खली, कार्बनिक खाद, अमोनिया सल्फेट, सोडियम नाइट्रेट आदि को बुआई से पहले खेत को तैयार किया जाता है. बुवाई पलेवा करके ही करनी चाहिए. ध्यान रहे कि पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22.5 सेमी. की होनी चाहिए. अगर देरी से बुवाई कर रहे हैं, तो पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 सेमी. की रखनी चाहिए.
जौ की उन्नत किस्में- डी डब्लू आर बी- 52, डी एल- 83, आर डी- 2668, आर डी- 2503, डी डब्लू आर- 28, आर डी- 2552, बी एच- 902, पी एल- 426 (पंजाब) आर डी- 2592 (राजस्थान), ज्योति 572, आज़ाद 125, हरितमा 560, लखन 226, मंजुला 329, नरेंद्र 192 आदि किस्में सिंचित इलाकों में अगेती खेती करने पर काफी अच्छी पैदावार देती हैं.
सिंचाई- जौ की अच्छी उपज पाने के लिए चार-पांच सिंचाई पर्याप्त होती है. पहली सिंचाई बुवाई के 25-30 दिन बाद करनी चाहिये. इस समय पौधों की जड़ों का विकास होता है. दूसरी सिंचाई 40-45 दिन बाद देने से बालियां अच्छी लगती हैं. इसके बाद तीसरी सिंचाई फूल आने पर और चौथी सिंचाई दाना दूधिया अवस्था में आने पर करनी चाहिये.
बुवाई का समय- जौ की खेती के लिए ठंडा मौसम अच्छा माना गया है. इसकी खेती अक्टूबर-नवंबर के महीने में की जाती है, लेकिन देरी होने पर बुवाई मध्य दिसंबर तक की जा सकती है और मार्च तक इसे काट लिया जाता है.
फसल कटाई- जब फसल के पौधे और बालियां सूखकर पीली या भूरी पड़ जाएं, तो कटाई कर देनी चाहिए. अगर बालियां अधिक पक गईं, तो बालियां गिरने की आशंका बढ़ जाती है.
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मुनाफा व लागत- जौ से बहुत सी चीज़ें बनाई जाती हैं. खाद्य पदार्थों और कुछ पेय पदार्थों के लिए जो का बखूबी इस्तेमाल किया जाता है. जैसे मॉल्ट, सिरका, बीयर, सत्तू, आटा, ब्रेड, बिस्कुट, पेपर बोर्ड, कागज़ आदि चीज़ें, इनका निर्माण जौ से किया जाता है. वहीं यह पशुओं का भी एक खास आहार है. जौ की खेती के ज़रिए बहुत किसान अच्छी कमाई कर रहे हैं. जौ का सेवन पोषक तत्वों का खज़ाना है. केंद्र सरकार की ओर से जौ का 2021 व 2022 के लिए समर्थन मूल्य 1600 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया है जो पिछले साल से 75 रुपए ज्यादा है.
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