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आलू की बुवाई करने का आधुनिक तरीका, उन्नत किस्में, फसल सुरक्षा और प्रबंधन

आलू समशीतोष्ण जलवायु की फसल है. उत्तर प्रदेश में इसकी खेती उपोष्णीय जलवायु की दशाओं में रबी के मौसम में की जाती है. सामान्य रूप से अच्छी खेती के लिए फसल अवधि के दौरान दिन का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस तथा रात्रि का तापमान 4-15 डिग्री सैल्सियस होना चाहिए. फसल में कन्द बनते समय लगभग 18-20 डिग्री सेल्सियस तापकम सर्वोत्तम होता है. कन्द बनने के पहले कुछ अधिक तापक्रम रहने पर फसल की वानस्पतिक वृद्धि अच्छी होती है, लेकिन कन्द बनने के समय अधिक तापक्रम होने पर कन्द बनना रूक जाता है. लगभग 30 डिग्री सैल्सियस से अधिक तापक्रम होने पर आलू की फसल में कन्द बनना बिलकुल बन्द हो जाता है.

विवेक कुमार राय
potato sowing

आलू समशीतोष्ण जलवायु की फसल है. उत्तर प्रदेश में इसकी खेती उपोष्णीय जलवायु की दशाओं में रबी के मौसम में की जाती है. सामान्य रूप से अच्छी खेती के लिए फसल अवधि के दौरान दिन का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस तथा रात्रि का तापमान 4-15 डिग्री सैल्सियस होना चाहिए. फसल में कन्द बनते समय लगभग 18-20 डिग्री सेल्सियस तापकम सर्वोत्तम होता है. कन्द बनने के पहले कुछ अधिक तापक्रम रहने पर फसल की वानस्पतिक वृद्धि अच्छी होती है, लेकिन कन्द बनने के समय अधिक तापक्रम होने पर कन्द बनना रूक जाता है. लगभग 30 डिग्री सैल्सियस से अधिक तापक्रम होने पर आलू की फसल में कन्द बनना बिलकुल बन्द हो जाता है.

भूमि एवं भूमि प्रबन्ध

आलू की फसल विभिन्न प्रकार की भूमि, जिसका पी.एच. मान 6 से 8 के मध्य हो, उगाई जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट तथा दोमट उचित जल निकास की भूमि उपयुक्त होती है. 3-4 जुताई डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से करें. प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाने से ढेले टूट जाते हैं तथा नमी सुरक्षित रहती है. वर्तमान में रोटावेटर से भी खेत की तैयारी शीघ्र व अच्छी हो जाती है. आलू की अच्छी फसल के लिए बोने से पहले पलेवा करना चाहिए.

कार्बनिक खाद

यदि हरी खाद का प्रयोग न किया हो तो 15-30 टन प्रति है0 सड़ी गोबर की खाद प्रयोग करने से जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है, जो कन्दों की पैदावार बढाने में सहायक होती है.

बीज

उद्यान विभाग, उत्तर प्रदेश आलू का आधारीय प्रथम श्रेणी का बीज कृषकों में वितरण करता है. इस बीज को 3-4 वर्ष तक प्रयोग किया जा सकता है.

potato sowing

बोने के लिए 30-55 मिमी. व्यास का अंकुरित (चिटिंग) आलू बीज का प्रयोग करना चाहिए. एक हेक्टेयर के लिए 30-35 कुन्तल बीज की आवश्यकता पड़ती है. प्रजातियों का चयन क्षेत्रीय आवश्यकताओं एवं बुवाई के समय यथा अगेती फसल, मुख्य फसल अथवा पिछेती फसलों के अनुसार किया जाना उचित होता है. प्रदेश की भू से जलवायु स्थितियों के अनुसार संस्तुति प्रजातियों का विवरण निम्नवत् है -

मुख्य प्रजातियाँ

अगेती बुवाई हेतु किस्में

कु० चन्द्रमुखी (80-90 दिनों में), कु० पुखराज (60-75 दिनों में), कु० सूर्या (60-75 दिनों में), कु० ख्यात (60-75 दिनों में), कु० अलंकार (65-70 दिनों में), कु० बहार 3792ई. (90-110 दिनों में ), कु० अशोका पी.376जे. (60-75 दिनों में) और जे.एफ.-5106 (75-80 दिनों में) आदि.

केन्द्रीय आलू अनुसंधान शिमला द्वारा विकसित किस्मे :

कुफरी चन्द्र मुखी

 80-90 दिन में तैयार, 200-250 कुंतल उपज

कुफरी अलंकार

70 दिन में तैयार हो जाती है यह किस्म पछेती अंगमारी रोग के लिए कुछ हद तक प्रतिरोधी है यह प्रति हेक्टेयर 200-250 क्विंटल उपज देती है .

कुफरी बहार 3792 E

90-110 दिन में लम्बे दिन वाली दशा में 100-135 दिन में तैयार

कुफरी नवताल G 2524

 75-85 दिन में तैयार, 200-250  कुंतल/हे उपज

कुफरी ज्योति

80 -120 दिन तैयार 150-250 क्विंटल/हे उपज

कुफरी शीत मान

100-130 दिन में तैयार 250 क्विंटल/हे उपज

कुफरी बादशाह

100-120 दिन में तैयार 250-275 क्विंटल/हे उपज

कुफरी सिंदूरी

120 से 140 दिन में तैयार 300-400 क्विंटल/हे उपज

कुफरी देवा

120-125 दिन में तैयार 300-400 क्विंटल/हे उपज

कुफरी लालिमा

यह शीघ्र तैयार होने वाली किस्म है जो 90-100 दिन में तैयार हो जाती है इसके कंद गोल आँखे कुछ गहरी और छिलका गुलाबी रंग का होता है यह अगेती झुलसा के लिए मध्यम अवरोधी है .

कुफरी लवकर

 100-120 दिन में तैयार 300-400 क्विंटल/हे उपज

कुफरी स्वर्ण

110 में दिन में तैयार  उपज 300 क्विंटल/हे उपज

संकर किस्मे

कुफरी जवाहर JH 222

 90-110 दिन में तैयार  खेतो में अगेता झुलसा और फोम रोग कि यह प्रति रोधी किस्म है यह 250-300 क्विंटल उपज

E 4,486

135 दिन में तैयार 250-300 क्विंटल उपज, हरियांणा, उत्तर प्रदेश, बिहार पश्चिम बंगाल गुजरात और मध्य प्रदेश में उगाने के लिए उपयोगी

JF 5106

उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रो में उगाने के लिए उपयोगी .75 दिनों की फ़सल, उपज 23-28 टन /हे मिल जाती है

कुफरी संतुलज J 5857 I

संकर किस्म सिन्धु गंगा मैदानों और पठारी क्षेत्रो में उगाने के लिए, 75 दिनों की फ़सल उपज 23-28 टन/हे उपज

कुफरी अशोक P 376 J

75 दिनों मेकी फ़सल उपज 23-28 टन / हे मिल जाती है

JEX -166 C

अवधि 90 दिन में तैयार होने वाली किस्म है 30 टन /हे उपज

आलू की नवीनतम किस्मे   

कुफरी चिप्सोना -1, कुफरी चिप्सोना -2, कुफरी गिरिराज, कुफरी आनंद

बुवाई का समय

आलू तापक्रम के प्रति सचेतन प्रकृति वाला होता है. 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड दिन का तापमान आलू की वानस्पतिक वृद्धि और 15-20 डिग्री सेंटीग्रेड आलू कन्दों की बढ़वार के लिए उपयुक्त होता है. सामान्यतः अगेती फसल की बुवाई मध्य सितम्बर से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक, मुख्य फसल की बुवाई मध्य अक्टूबर के बाद हो जानी चाहिए.

बीज की बुवा

यदि भूमि में पर्याप्त नमी न हो तो, पलेवा करना आवश्यक होता है. बीज आकार के आलू कन्दों को कूडों में बोया जाता है तथा निट्टी से ढककर हल्की मेंड़ें बना दी जाती है. आलू की बुवाई पोटेटो प्लान्टर से किये जाने से समय, श्रम व धन की बचत की जा सकती है.

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार को नष्ट करने के लिए निराई-गुड़ाई आवश्यक है.

सिंचाई प्रबंध

पौधों की उचित वृद्धि एवं विकास तथा अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 7-10 सिंचाई की आवश्यकता होती है. यदि आलू की बुवाई से पूर्व पलेवा नहीं किया गया है तो बुवाई के 2-3 दिन के अन्दर हल्की सिंचाई करना अनिवार्य है. भूमि में नमी 15-30 प्रतिशत तक कम हो जाने पर सिंचाई करनी चाहिए. अच्छी फसल के लिए अंकुरण से पूर्व बलुई दोमट व दोमट मृदाओं में बुवाई के 8-10 दिन बाद तथ भारी मृदाओं में 10-12 दिन बाद पहली सिंचाई करें. अगर तापमान के अत्यधिक कम होने और पाला पड़ने की संभावना हो तो फसल में सिंचाई अवश्य करें. आधुनिक सिंचाई पद्धति जैसे स्प्रिंकलर और ड्रिप से पानी के उपयोग की क्षमता में वृद्धि होती है. कूँड़ों में सिंचाई की अपेक्षा स्प्रिंकलर प्रणाली से 40 प्रतिशत तथा ड्रिप प्रणाली से 50 प्रतिशत पानी की बचत होती है और पैदावार में भी 10-20 प्रतिशत वृद्धि होती है.

कीट एवं व्याधि रोकथाम

आलू फसल को बहुत सी बीमारियों तथा कीट हानि पहुँचाते हैं. यहाँ मुख्य-मुख्य बीमारियों एवं कीटों का विवरण दिया जा रहा है, जो आलू की उपज तथा कन्दों की गुणवता को अधिक हानि पहुँचाते हैं

पिछेता सुलझा (लेट ब्लाइट)

यह आलू में फफूंद से लगने वाली एक भयानक बीमारी है. इस बीमारी का प्रकोप आलू की पत्ती, तने तथा कन्दों, सभी भागों पर होता है. जैसे ही मौसम बदली युक्त हो और तापमिम 10-20 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य तथा आपेक्षित आर्द्रता 80 प्रतिशत हो, तो इस बीमारी की संभावना बढ़ जाती है. अतः तुरन्त ही सिंचाई बन्द कर दें. यदि आवश्यक हो तो बहुत हल्की सिंचाई ही करें तथा लक्षण दिखाई देने से पूर्व ही बीमारी की रोकथाम की लिए 0.20 प्रतिशत मैंकोजेब दवा के घोल का छिड़काव 8-10 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए.

potato

अगेता झुलसा

अगेता झुलसा बीमारी से पत्तियों और कन्द दोनों प्रभावित होते हैं. आरम्भ में इस बीमारी के लक्षण निचली तथा पुरानी पत्तियों पर छोटे गोल से अण्डाकार भूरे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं. इस बीमारी से प्रभावित कन्दों पर दबे हुए धब्बे तथा नीचे का गूदा भूरा एवं शुष्क हो जाता है. अतः रोग अवरोधी किस्मों का चयन किया जाये. इस बीमारी की रोकथाम के लिए 0.3 प्रतिशत कॉपर आक्सीक्लोराइड फफूँदनाशक के घोल का प्रयोग किया जाये.

आलू की पत्ती मुड़ने वाला रोग (पोटेटो लीफ रोल)

यह एक वायरल बीमारी है जो (पी.एल.आर.वी.) वायरस के द्वारा फैलती है. इस बीमारी की रोकथाम के लिए रोग रहित बीज बोना चाहिए तथा इस वायरस के वाहक एफिड की रोकथाम दैहिक कीटनाशक यथा फास्फोमिडान का 0.04 प्रतिशत घोल मिथाइलऑक्सीडिमीटान अथवा डाइमिथोएट का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर 1-2 छिड़काव दिसम्बर, जनवरी में करना चाहिए.

दीमक

दीमक का प्रकोप ज्यादातर अगेती फसल में होता है. इससे प्रभावित आलू के पौधों की पत्तियां नीचे की और मुड़ जाती है. अधिक प्रकोप की अवस्था में पत्तियांे स्मंजीमतल हो जाती हैं तथा पत्तियों की निचली सतह पर तांबा के रंग जैसे धब्बे दिखायी पड़ते हैं. दीमक की रोकथाम के लिए डाइकोफाल 18.5 ई.सी. या क्यूनालफॉस 25 ई.सी. की 2 लीटर मात्रा प्रति है0 की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें तथा 7-10 दिन के अन्तराल पर पुनः दोहरायें.

आलू की खुदाई

अगेती फसल से अच्छा मूल्य प्राप्त करने के लिए बुवाई के 60-70 दिनों के उपरान्त कच्ची फसल की अवस्था में आलू की खुदाई की जा सकती है. फसल पकने पर आलू खुदाई का उत्तम समय मध्य फरवरी से मार्च द्वितीय सप्ताह तक है. 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान आने से पूर्व ही खुदाई पूर्ण कर लेना चाहिए.

आलू का भंडारण

आलू की सुषुप्ता अवधि भण्डारण को निर्धारित करती है. भिन्न-भिन्न प्रजातियों के आलू की सुषुप्ता अवधि भिन्न-भिन्न होती है, जो आलू खुदाई के बाद 6-10 सप्ताह तक होती है. यदि आलू को बाजार में शीघ्र भेजना है तो शीतगृह में भण्डारित करने की आवश्यकता नहीं है. इसके लिए कच्चे हवादार मकानों, छायादार स्थानों में आलू को स्टोर किया जा सकता है. केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला में थोड़ी अवधि के भण्डारण के लिए जीरो एनर्जी कूल स्टोर का डिजाइन विकसित किया है, जिसमें 70-75 दिनों तक आलू को भण्डारित रख सकते हैं.

English Summary: Modern method of potato sowing, improved varieties, crop protection and management Published on: 01 November 2019, 05:44 PM IST

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