पौधों के लिए नाइट्रोजन सबसे आवश्यक तत्व माना गया है, जो पौधे के जैव रासायनिक और विकास कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. फसल की उपज के साथ साथ उसकी गुणवत्ता में भी इसकी अहम भूमिका है. इस कारण पौधे को इसकी आपूर्ति करना अनिवार्य हो जाता है. वातावरण में बड़ी मात्रा में मौजूद होने के बावजूद भी पौधे नाइट्रोजन का उपयोग नहीं कर सकते हैं.
मगर मिट्टी में पाए जाने वाले कुछ सूक्ष्मजीव जैसे बैक्टीरिया वायुमंडलीय नाइट्रोजन का उपयोग कर सकते है. इसलिए फसल में पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुछ ऐसे जैव उर्वरक है, जो पोषकतत्वों की उपलब्धता को बढ़ाने में कारगर साबित हुए है. अजोला, ऐसा ही एक जैव उर्वरक है, जो की मुख्य रूप से फिलीपींस, चीन, वियतनाम, थाईलैंड तथा भारत जैसे देशों में धान की खेती में प्रयोग किया जाता है.
अजोला पानी में उगने वाली फर्न है, जिसके साथ अनाबेना अजोला, जो कि एक साइनोबैक्टीरिया है, सहजीवी संघ बनाता है और पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करता है. भारत मे अजोला एक आशाजनक जैव उर्वरक के रूप में सिद्ध हुआ है और व्यापक रूप से किसानों द्वारा उपयोग किया जाता है. अजोला को सिंचित धान के साथ एक साथ उगाया जा सकता है, जिसमें न तो अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता होती है और न ही अतिरिक्त जल की, जिसके कारण जैव उर्वरक के रूप में इसकी उपयोगिता ओर भी बढ़ जाती है. हाल ही में अजोला का प्रयोग पशुओं के चारे के रूप में किया गया है, जिससे दुग्ध उत्पादन बढ़ाने मे मदद मिली है.
धान के खेत में अजोला तैयार करने की विधि
अजोला जैव उर्वरक को धान के खेत में 3 तरीकों से लगाया जा सकता है, जो की इस प्रकार है-
अजोला को रोपाई से 2-3 सप्ताह पहले धान के खेत में लगाया जाता है तथा विकास की एक निश्चित अवधि के बाद रोपाई से पहले मिट्टी में मिला दिया जाता है या यूँ ही छोड़ दिया जाता है .
धान की रोपाई के बाद अजोला का संरोप्य या टीका कर दिया जाता है, इस प्रकार दोहरी फसल के रूप में अजोला धान की खड़ी फसल के साथ उगाया जाता है. जब अजोला की मोटी चटाई बन जाती है, तो पानी निकाल दिया जाता है और ततपश्चयात अजोला को मिट्टी में मिला दिया जाता है. इस अवस्था में अजोला को 8 सप्ताह में उगाया जाता है.
इसके अलावा अजोला को अलग क्यारी में भी उगाया जा सकता है और इसे मुख्य खेत में फसल लगाने से ठीक पहले लगाया जा सकता है. इसके लिए सबसे फ 60 X 10 X 2 मीटर आकार की क्यारी किसी छायादार स्थान पर खोदें. इस क्यारी को किसान 120 गज की पॉलिथीन शीट के साथ बिछा दे या फिर पक्का निर्माण कर क्यारी तैयार कर सकते है. इसके ऊपर 80-100 किलो.ग्राम.
साफ उपजाउ मिटटी की परत बिछा दें साथ ही साथ 5-7 किलो गोबर (2-3 दिन पुराना) को 10-15 लीटर पानी में घोल बनाकर मिटटी पर फेला दें. क्यारी में 400-500 लीटर पानी भरे, जिससे कि क्यारी में पानी की गहराई लगभग 10-15 से.मी. तक हो जाए. अब उपजाउ मिटटी व गोबर खाद को जल में अच्छी तरह मिश्रित कर दे. इस मिश्रण पर दो किलो ताजा अजोला को फेला दे तथा इसके पश्चात 10 लीटर पानी को अच्छी तरह से अजोला पर छिडके. क्यारी को अब नायलोन जाली से ढक कर 15-20 दिन तक अजोला को उगने दें. 21वें दिन से औसतन 15-20 क़िलोग्राम अजोला प्रतिदिन प्राप्त की जा सकती है.
अजोला के लाभ
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यह एक ऐसी कम लागत वाली तकनीक के रूप में उजागर हुई है, जो लंबे समय तक के लिए लाभ प्रदान करवाती है.
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यह पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरता में निरंतर सुधार का एक बेहतरीन उपाय है.
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इससे पौधों के विकास और फसल की उपज में तेजी देखी गई है.
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अजैविक खाद जैसे यूरिया जैसे रासायनिक नाइट्रोजन युक्त उर्वरको की निर्भरता को कम करता है तथा इनसे होने पर्यावरण प्रदूषण को कम किया जा सकता है.
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यह खरपतवार तथा कई मृदा जनित रोगों से पौधों का बचाव करता है.
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यह तनाव की स्थिति में भी पौधे के विकास में मदद करता है.
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ऑक्सीजन प्रकाश संश्लेषण के कारण उत्पन्न ऑक्सीजन फसल की जड़ प्रणाली और अन्य भाग तक पहुंचाता है.
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मोटी परत होने के कारण यह सिंचित धान के खेत में वाष्पीकरण स्तर को कुछ हद तक कम करता है.
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नाइट्रोजन के अलावा, एजोला फसल को पॉटेशियम, जिंक और आयरन की आपूर्ति भी करता है.
अजोला के उत्पादन में बरती जाने वाली कुछ सावधानियाँ
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अधिक उपज के लिए प्रदूषण मुक्त वातावरण का रखरखाव रखे.
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अजोला की अधिक पैदावर होने पर इसे दैनिक आधार पर एकत्र कर लें.
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इसकी सफल उत्पादन के लिए तापमान 35 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहना चाहिए. ठंडे क्षेत्रों में प्लास्टिक शीट का इस्तेमाल किया जा सकता है, ताकि सर्द मौसम का असर कम किया जा सके.
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ध्यान रहे की अजोला की उपज के लिए पर्याप्त धूप वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि छाया में कम पैदावर होती है.
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मिट्टी का पी. एच 5 और 7 के बीच होना चाहिए. अम्लीय मिट्टी में अच्छी तरह से बढ़ता है.
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अतः हम आशा करते हैं कि किसान भाई अजोला को अपने खेत में डाल अपनी भूमि की उपजाऊ क्षमता भड़ाने व पानी बचाने में अपना योगदान करेंगे .
लेखक
सुरेंद्र कुमार, सिमरन जास्ट एवं धर्मपाल
कृषि विकास अधिकारी (पौ. सं.) कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हरियाणा
शोध छात्रा, आई सी ए आर - केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान करनाल
शोध छात्र, मृदा विज्ञान विभाग, चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार-125004
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