सफेद मूसली एक औषधिय पौधा है. इसकी मांग दवा के क्षेत्रों में बहुत ज्यादा होती है. इस पौधे की जड़ों का इस्तेमाल औषधि बनाने के लिए किया जाता है, इसकी औसत ऊंचाई 2 से 2.5 फुट तक की होती है. इसके पत्ते पीले-हरे रंग के होते है. इसके फल मुख्यत: जुलाई से दिसंबर महीने उपरांत ही लगते हैं. इसकी खेती भारत के असम, महाराष्ट्र, आंध्र-प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में की जाती है.
सफेद मूसली की खेती की प्रक्रिया-
मिट्टी की तैयारी
मूसली की खेती दोमट और रेतीय मिट्टियों में की जाती है. इसकी पैदावार जैविक तत्वों से भरपूर लाल मिट्टी में काफी अच्छी होती है. जल भराव वाले इलाकों में इसकी खेती ना करें. पहाड़ी इलाकों में भी मूसली की जड़े जमीन के अंदर अच्छे से बढ़ पाती हैं, जिससे इसकी जड़ों का विकास ठहर जाता है. इसकी मिट्टी का pH 6.5 से 8.5 के बीच सार्थक माना जाता है.
खेत की जुताई
मूसली के लिए सबसे पहले जमीन की अच्छी तरह से 3-4 बार जुताई कर लें. इसके बाद कुछ दिन के लिए खेत को सौरीकरण के लिए छोड़ दें, और फिर खेत में गोबर की खाद को डाल दें. खाद डालने के बाद इसमें पानी दें और उसके बाद फिर से इसकी जुताई कर फसल की बुआई करें.
उर्वरक की मात्रा
सफ़ेद मूसली की खेती में अधिक उवर्रक की आवश्यकता नहीं होती है, क्योकि रासायनिक उवर्रक के अधिक प्रयोग से फसल की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है. ऐसी फसल को उपजाने क लिए मुख्यत: गोबर की खाद तथा वर्मी कम्पोस्ट का इस्तेमाल किया जाता है.
रोगों से सुरक्षा
सफ़ेद मूसली के पौधों में कवक और फफूंद जैसे रोग लगने की काफी सम्भावनाएं रहती हैं. खेतों में खरपतवार एवं कीड़ो की रोकथाम के लिए उन पर बायोपैकूनील तथा बायोधन की सही मात्रा में छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा ट्राईकोडर्मा को गोबर की खाद के साथ मिलाकर छिड़काव करने से पौधों में कीड़े नहीं लगते हैं.
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सफेद मूसली की पैदावार
सफ़ेद मूसली की फसल नवम्बर महीने के अंतिम दिनों तक पौधों की पत्तियां भी पीली पड़ कर सुखी हो जाती हैं और इसका छिलका कठोर हो जाता है. इस समय तक फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है. आपको बता दें कि एक हेक्टेयर में सफेद मूसली की पैदावार लगभग 12 से 15 क्विंटल तक की होती है. इस समय सफ़ेद मूसली की कीमत बाजार में 500 रूपए प्रति किग्रा है, जिसे किसान बाजार में बेचकर 5 से 6 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं.
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