![Leaf Spot Disease in Jackfruit](https://kjhindi.gumlet.io/media/90975/leaf-spot-disease-in-jackfruit-causes-prevention-measures.jpg)
कटहल (Artocarpus heterophyllus) भारत में व्यापक रूप से उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण फल फसल है, जिसे अपनी पोषण मूल्य और आर्थिक महत्त्व के कारण उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पसंद किया जाता है. हालांकि, इस फसल को कई रोग प्रभावित करते हैं, जिनमें पत्ती धब्बा रोग (Leaf Spot Disease) प्रमुख है. यह रोग मुख्य रूप से विभिन्न फफूंदजनित रोगजनकों के कारण होता है, जिससे पत्तियों पर धब्बे उभरते हैं और फसल की उत्पादकता प्रभावित होती है. यदि इस रोग का समय पर नियंत्रण न किया जाए तो यह पौधों की वृद्धि को बाधित कर सकता है और फलन क्षमता को कम कर सकता है.
रोग के प्रमुख कारण
कटहल के पत्ती धब्बा रोग का मुख्य कारण फफूंदजनित संक्रमण होता है. इस रोग के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार रोगजनक हैं:
- कोलेटोट्राइकम (Colletotrichum spp.)
- सर्कोस्पोरा (Cercospora spp.)
- कॉर्नेस्पोरा (Cornespora spp.)
- अल्टरनेरिया (Alternaria spp.)
इन रोगजनकों के फैलाव में कई कारक सहायक होते हैं, जैसे...
- अधिक आर्द्रता (80-90%)
- गर्म एवं नम वातावरण (25-35°C)
- लगातार बारिश और जलभराव
- अपर्याप्त वायु संचार
- संक्रमित पौध सामग्री एवं खराब कृषि
कटहल के पत्ती धब्बा रोग के लक्षण
इस रोग के लक्षण शुरुआत में मामूली दिखाई देते हैं, लेकिन समय के साथ इनकी तीव्रता बढ़ सकती है.
1. प्रारंभिक अवस्था
- पत्तियों पर छोटे, काले या भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं.
- धब्बों के चारों ओर हल्के पीले रंग की आभा हो सकती है.
2. मध्यम संक्रमण
- धब्बे बड़े होकर आपस में मिलने लगते हैं.
- प्रभावित पत्तियों का हरितलवक नष्ट हो जाता है, जिससे पौधे का प्रकाश संश्लेषण प्रभावित होता है.
3. गंभीर संक्रमण
- पत्तियाँ मुरझाने लगती हैं और समय से पहले गिरने लगती हैं.
- पौधों की वृद्धि रुक जाती है, जिससे कटहल के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
प्रबंधन के प्रभावी उपाय
पत्ती धब्बा रोग के नियंत्रण के लिए एकीकृत रोग प्रबंधन (IPM) को अपनाना आवश्यक है. यह रणनीति कल्चरल, जैविक और रासायनिक नियंत्रण का समावेश करती है.
1. कल्चरल (सांस्कृतिक) उपाय
कटाई-छंटाई
संक्रमित शाखाओं और पत्तियों को नियमित रूप से हटा दें. पौधों के बीच उचित दूरी रखें ताकि वायु संचार सुचारू हो.
- स्वच्छता एवं फसल अवशेष प्रबंधन
- रोगग्रस्त पत्तियों को खेत से हटा कर नष्ट करें.
- खेत में पानी का ठहराव न होने दें.
संतुलित उर्वरक प्रबंधन
नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश की संतुलित मात्रा दें. जैव उर्वरकों का उपयोग करें ताकि पौधे स्वस्थ रहें.
अंतरवर्ती फसलें
कटहल के साथ अदरक या हल्दी जैसी फसलें लगाने से रोग के प्रसार में कमी आ सकती है.
2. जैविक नियंत्रण
लाभकारी सूक्ष्मजीवों का प्रयोग
ट्राइकोडर्मा विराइड (Trichoderma viride) और प्सूडोमोनास फ्लुओरेसेंस (Pseudomonas fluorescens) रोगजनकों को दबाने में सहायक होते हैं.
जैव-कवकनाशी
नीम, लहसुन और अन्य जैव-निष्कर्षों से बने कवकनाशकों का छिड़काव करें.
3. रासायनिक प्रबंधन
यदि रोग की तीव्रता अधिक हो तो उचित कवकनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है.
तांबा आधारित कवकनाशी
बोर्डो मिक्सचर (1%) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3%) का छिड़काव करें.
संपर्क कवकनाशी
मैनकोजेब 75% WP (2-2.5 ग्राम/लीटर पानी) या क्लोरोथालोनिल (2 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें.
प्रणालीगत कवकनाशी
कार्बेन्डाजिम (0.1%)/ प्रोपिकोनाज़ोल (0.1%) का छिड़काव करें.
संयुक्त कवकनाशी
कार्बेन्डाजिम + मैनकोजेब (0.2%)/हेक्साकोनाजोल (0.1%) का छिड़काव करें.
छिड़काव कार्यक्रम
- पहला छिड़काव: रोग के शुरुआती लक्षण दिखने पर.
- दूसरा छिड़काव: 10-15 दिन बाद.
- तीसरा छिड़काव: आवश्यकतानुसार.
4. प्रतिरोधी किस्मों का चयन
- रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें.
- स्वस्थ पौध सामग्री से रोपण करें.
5. निगरानी एवं शीघ्र हस्तक्षेप
- साप्ताहिक निरीक्षण करें और किसी भी लक्षण के दिखने पर तुरंत नियंत्रण उपाय अपनाएँ.
- मौसम की निगरानी करें और आर्द्र मौसम में सावधानी बरतें.
Share your comments