Agricultural & Farm Irrigation Systems: आधुनिक समय में कृषि क्षेत्र (Agriculture sector) की बात की जाए, तो इस क्षेत्र में कई बड़े बदलाव हुए हैं. पुराने समय में किसानों को खेतीबाड़ी में कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी, जिसमें अधिक समय और लागत लगती थी. तब यह किसानों के लिए इसलिए मुश्किल था, क्योंकि उस वक्त कृषि संसाधनों की कमी थी. मगर आज के समय में ऐसा बिल्कुल नहीं है. आज कृषि के क्षेत्र में इतना बदलाव और विकास हुआ है कि किसान आसानी से खेतीबाड़ी कर सकता है. अगर फसलों की सिंचाई की बात की जाए, तो इसमें भी काफी बदलाव हुआ है. अब किसानों के लिए फसलों की सिंचाई व्यवस्था काफी आसान हो गई है, लेकिन आज भी कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था नहीं होती है, इसलिए किसानों को सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर रहना पड़ता है. किसान कई तरीके से फसलों की सिंचाई (Irrigation of crops) कर सकते हैं, तो आइए आपको इस लेख में इसकी पूरी जानकारी देते हैं.
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सिंचाई के प्रकार (Types of irrigation)
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टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली
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फव्वारा सिंचाई
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ढेकुली से सिंचाई
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नहर से सिंचाई
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सतही सिंचाई प्रणारेनगन से सिंचाई
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तालाब से सिंचाई
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रेनगन से सिंचाई
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कुएं एवं नलकूप से सिंचाई
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सोलर पंप से सिंचाई
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रहट से सिंचाई
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बेड़ी से सिंचाई
टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली– यह सिंचाई करने की एक उन्नत विधि है, क्योंकि इसमें पानी की काफी अच्छी बचत होती है. यह सिंचाई मिट्टी, खेत के ढाल, जल के स्त्रोत के मुताबिक की जाती है. इसमें पानी को पौधों के मूलक्षेत्र के आस-पास लगाया जाता है. इससे पौधे को ज़रूरत के हिसाब से पानी मिलता है. इसमें उर्वरक और जल, दोनों की बचत होती है.
फव्वारा सिंचाई– यह एक ऐसी पद्धति है, जिसमें हवा में पानी का छिड़काव होता है और पानी भूमि की सतह पर कृत्रिम वर्षा के रूप में गिरने लगता है. इसमें पानी का दबाव पंप से भी प्राप्त किया जा सकता है. इस सिंचाई से जमीन और हवा का सबसे सही अनुपात बना रहता है, साथ ही बीजों में अंकुर भी जल्दी फूटते हैं.
ढेकुली से सिंचाई- यह कुओं से पानी निकालने का सबसे आसान साधन है. इस विधि में Y के आकार के पतले वृक्ष के तने को कुएं के पास गाड़ दिया जाता है. इसके बाद एक लम्बे बांस या फिर लकड़ी को संतुलित करके एक सिरे पर मिट्टी का लोंदा छापा जाता है. इसके बाद एक दूसरे सिरे पर रस्सी को बांधकर कुएं से पानी निकालने के लिए एक बर्तन को लटकाकर कुएं से पानी निकाला जाता है.
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नहर से सिंचाई- देश में सबसे ज्यादा नहरों का विकास उत्तर के विशाल मैदानी और तटवर्ती डेल्टा के क्षेत्रों में होता है, क्योंकि नहर का निर्माण समतल भूमि और जल की निरन्तर आपूर्ति पर निर्भर होता है. बता दें कि देश में लगभग 40 प्रतिशत कृषि भूमि की सिंचाई नहर से की जाती है.
सतही सिंचाई प्रणाली- इसमें नहरों और नालियों द्वारा खेत में पानी लगाया जाता है. इसके लिए पहले खेत को समतल बनाया जाता है इसके बाद सिंचाई की जाती है.
तालाब से सिंचाई- फसलों की सिंचाई के लिए प्राकृतिक और कृत्रिम, दोनों प्रकार के तालाब का उपयोग होता है.
रेनगन से सिंचाई- इस विधि में लगभग 20 से 60 मी. की दूरी तक प्राकृतिक बरसात की तरह सिंचाई की जाती है. इस विधि में अधिक क्षेत्रफल को कम पानी में आसानी से सींचा जा सकता है. यह दलहन फसलों और सब्जी के लिए बहुत उपयोगी है.
कुएं और नलकूप से सिंचाई- जहां चिकनी बलुई मिट्टी पाई जाती है, वहां कुओं का निर्माण ज्यादातर होता है. कृषि में तीन प्रकार के कुएं का सिंचाई में उपयोग किया जाता है.
1.कच्चे कुएं
2.पक्के कुएं
3.नलकूप
सोलर पंप से सिंचाई– यह सिंचाई का एक नया तरीका है, जिसमें बिजली और ईंधन की ज़रूरत नहीं होती है. यह एक मोटर के रूप में आता है, जो ज़मीन से पानी खींचता है. इसको चलाने के लिए सोलर पैनल होते हैं, जो सूरज की किरणों से ऊर्जा उत्पन्न करते हैं.
रहट से सिंचाई- कई क्षेत्रों में जब सिंचाई के संसाधन नहीं उपलब्ध होते थे, तो किसान सिंचाई करने के लिए कुएं को खोदकर उसमें एक लोहे की बनी रेहट नामक मशीन लगा देते थे. अब कुएं की संख्या में कमी आ गई है, इसलिए किसान रेहट से दूर होता जा रहा है. फिलहाल आज भी कहीं-कहीं यह मशीन देखने को मिल जाती है.
बेड़ी से सिंचाई– जब तालाब और झील के पानी से सिंचाई की जाती थी, तब बेड़ी की ज़रूरत पड़ती थी. इसमें बांस और लकड़ी से एक पर्तन को बनाकर रस्सी से बांधते हैं. इसके बाद तालाब से पानी को खींचकर खेत में बनी नाली में डाल देते हैं.
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