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गेहूं की पछेती बुवाई के लिए उन्नत किस्में, जानें इनकी बुवाई का सही तरीका

देश में गेहूं की खेती (Wheat Cultivation) बड़े पैमाने पर की जाती है. देश के कई राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रेदश गेहूं के उत्पादन के मामले में अव्वल है. देश की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए गेहूं उत्पादन में वृद्धि की और अधिक आवश्यकता है. ऐसे में जो किसान भाई गेहूं की बुवाई नहीं कर पाएं हैं, वे किसान गेहूं की पछेती बुवाई कर सकते हैं.

स्वाति राव
wheat Variety
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देश में गेहूं की खेती (Wheat Cultivation) बड़े पैमाने पर की जाती है. देश के कई राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रेदश गेहूं के उत्पादन के मामले में अव्वल है. देश की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए गेहूं उत्पादन में वृद्धि की और अधिक आवश्यकता है. ऐसे में जो किसान भाई गेहूं की बुवाई नहीं कर पाएं हैं, वे किसान गेहूं की पछेती बुवाई कर सकते हैं. गेहूं की पछेती बुवाई करने के लिए आपको कुछ बातों को ध्यान में रखना होगा. इससे गेहूं का उत्पादन भी अच्छा होगा और मुनाफा भी प्राप्त होगा. आइये जानते हैं.

गेहूं की इन उन्नत किस्मों का चयन करें (Select Improved Varieties Of Wheat)

राज 3765 किस्म (Raj 3765 Variety)

गेहूं के यह किस्म पिछेती बुवाई के लिए उपयुक्त मानी जाती है. इस किस्म को 110 से 115 दिन पककर तैयार होने में लगते हैं. इस किस्म के दाने शरबती चमकीले सख्त आकार में बड़े होते हैं. यह किस्म पिछेती बुवाई में औसतन 38 से 42 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज दे सकती है.

एच.डी.-2985 (पूसा बसंत) किस्म (Hd-2985 (Pusa Basant) Variety)

गेहूं की यह किस्म पूसा बसंत स्वाद और पोष्टिकता के लिए बहुत अच्छी होती है. गेहूं की इस किस्म को पकने में 105-110 दिन का समय लगता है. गेहूं की इस किस्म में लीफ रस्ट एवं फोलियर ब्लाइट जैसे रोगों के लगने की सम्भावना नहीं होती है.  इस किस्म की उत्पादकता 37.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

डी.बी.डब्लू.-173 किस्म (DBW-173 Variety)

गेहूं की इस पछेती किस्म की उत्पादकता 47.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. गेहूं की यह किस्म 122 दिन में पककर तैयार होती है. यह किस्म पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी है.

डी.बी.डब्लू.-90 किस्म (Dbw-90 Variety)

गेहूं की यह किस्म 121 दिन में पककर तैयार हो जाती है. गेहूं की इस किस्म 42.80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है. यह स्ट्रिप एवं लीफ रस्ट अवरोधी है और उच्च तापमान को सहन करने की क्षमता रखती है.

पी.बी.डब्लू.-590 (Pbw-590)

गेहूं की यह किस्म दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और उत्तराखंड के लिए उपयुक्त पाई गई है. यह किस्म 121 में पककर तैयार हो जाती है. इसकी उत्पादन क्षमता 42.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

किस्म की बुवाई के लिए बीज की मात्रा (Seed Quantity For Sowing Variety)

गेहूं के इन किस्मों की अच्छी उपज के लिए जरुरी हैं इनकी बुवाई प्रक्रिया. गेहूं की पछेती किस्म की बुवाई के लिए 55 से 60 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ प्रयोग करना चाहिए. इसके लिए सबसे पहले पछेती किस्मों की बुवाई के लिए बीज को करीब 12 घंटे पानी में भिगोकर रखना चाहिए. इसके बाद बीज को पानी से निकाल कर उसे दो घंटे तक फर्श पर छाया में सुखाना चाहिए, उसके बाद बीजों को बुवाई के लिए रखा जायेगा.

बुवाई प्रक्रिया (Sowing Process)

बीज को उपचारित करने के बाद अब बारी आती है बीज बुवाई की. बुवाई के लिए आपको बीजों को पंक्तियों के बीच 20 x 18 से.मी. की दूरी होनी चाहिए. किसान जीरो सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल से भी बुवाई कर सकते हैं. इसके अलावा डिबलर द्वारा भी गेहूं की बुवाई कर सकते हैं. सामान्य बोई गई फसल के लिए दो पंक्तियों के बीच 20 से 22.5 सेमी की दूरी रखी जाती है.

बुवाई में खाद व उर्वरक का प्रयोग (Use Of Manure And Fertilizer In Sowing)

इसके बाद गेहूं के अच्छे उत्पादन के लिए खाद और उर्वरक बहुत महत्व रखता है. इसके लिए गेहूं के बीजों की बुवाई से पहले गली सड़ी गोबर की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से खेती में डालना चाहिए. 

इसके अलावा बुवाई के समय 50 किलोग्राम डीएपी या 75 किलोग्राम एनपीके 12:32:16 तथा 45 किलोग्राम यूरिया व 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट 21 प्रतिशत डाल दें. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बुवाई के समय एनपीके या डीएपी उर्वरकों को ड्रिल से दें. इसके अलावा जिंक और यूरिया को आखिरी जुताई के दौरान डालें.

सिंचाई का तरीका (Irrigation Method)

गेहूं की पछेती बुवाई में अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए सिंचाई प्रक्रिया जरूरी है. इसलिए गेहूं की पछेती बुवाई के लिए सिंचाई 25 से 30 दिनों के अंतराल में करनी चाहिए.  इसके अलावा बीजों में फुटाव के समय, गांठें बनते समय, बालियां निकलने से पहले, दूधिया दशा में और दाना पकते समय सिंचाई अवश्य करनी चाहिए.

English Summary: improved varieties and the right way of sowing are necessary for late sowing of wheat. Published on: 24 December 2021, 02:26 PM IST

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