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फलदार पौधों में एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन का महत्व

एक अनुमान के अनुसार 2050 तक हमारे देश की जनसंख्या 1.5 अरब पहुंच जाएगी. इस बढ़ती हुई जनसंख्या की केवल खाद्यान्न की जरूरत को पूरा करने के लिए लगभग 350 मिलियन टन अनाज पैदा करने की आवश्यकता होगी.

KJ Staff

एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें सभी प्रकार के खादों व  उर्वरकों (कार्बनिक अकार्बनिक तथा जैविक) का उपयोग इस तरह से किया जाता है कि पौधे को पोषक तत्व उचित मात्रा व सही समय पर उपलब्ध हो.

इसके अंतर्गत मिट्टी की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक दशा को सुधारने के साथ-साथ उर्वरकों की उपयोग क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है. एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन इस तरह से किया जाना चाहिए कि यह किसानों के लिए तकनीकी रूप से संपूर्ण, आर्थिक रूप से आकर्षक, व्यवहारिक रूप से संभव तथा पर्यावरण के लिए सुरक्षित हो.

एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन: आवश्यकता एवं महत्व

  1. उर्वरकों एवं खादों का उचित उपयोग

एक अनुमान के अनुसार 2050 तक हमारे देश की जनसंख्या 1.5 अरब पहुंच जाएगी. इस बढ़ती हुई जनसंख्या की केवल खाद्यान्न की जरूरत को पूरा करने के लिए लगभग 350 मिलियन टन अनाज पैदा करने की आवश्यकता होगी.  इतना अनाज पैदा करने के लिए तथा मृदा की उर्वरा व उत्पादन क्षमता बनाए रखने के लिए कई हजार टन पोषक तत्व मिट्टी में डालने होंगे. इस लक्ष्य को केवल एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन द्वारा ही पूर्ण किया जा सकता है.

मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी आमतौर पर मृदा में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए रसायनिक उर्वरकों का उपयोग मृदा की उर्वरा एवं उत्पादन क्षमता को बनाए रखने के लिए किया जाता है, लेकिन रसायनिक उर्वरकों का बहुत ही कम भाग पौधों द्वारा लिया जाता है तथा शेष भाग व्यर्थ ही अनुपलब्ध अवस्था या जल द्वारा भूमि की गहराई में चला जाता है. जैसे कि नाइट्रोजन का 35 से 40%, फास्फोरस का 15 से 25% तथा पोटैशियम का 30 से 50% भाग ही पौधों को प्राप्त होता है.

रसायनिक उर्वरकों को लंबे समय तक प्रयोग करने से मृदा में विभिन्न प्रकार के हानिकारक प्रभाव होते हैं, जैसे कि मृदा तथा पौधों में तत्वों की असंतुलित मात्रा, पैदावार में कमी, कीड़े- बीमारियों का अधिक प्रकोप, मृदा में जैविक पदार्थों की कमी, दूषित वातावरण व खाद्य पदार्थ पैदा होना आदि अनेक दुष्प्रभाव होते हैं.

उर्वरकों की मांग एवं कीमतों का बढ़ना

फसलों से अधिक पैदावार लेने के लिए रसायनिक उर्वरकों की मांग बढ़ती है. देश में उर्वरकों के भंडार एवं उत्पादन क्षमता कम होने के कारण रसायनिक उर्वरकों का आयात किया जाता है, जिनकी कीमत लगातार बढ़ती जा रही है. इसलिए उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हमें रसायनिक उर्वरकों की उचित एवं संतुलित मात्रा का प्रयोग करना चाहिए तथा अन्य कार्बनिक एवं जैविक खादों के प्रयोग पर बल देना चाहिए. यह कार्य एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन से ही संभव है.

असंतुलित पोषक तत्व

किसान लगातार मुख्य पोषक तत्व रसायनिक अथवा अकार्बनिक पदार्थों द्वारा फसलों को दे रहे हैं, जिससे मिट्टी में कुछ सूक्ष्म तत्वों की कमी दिखाई देने लगी है. भूमि में उचित व संतुलित पोषक तत्वों की मात्रा बनाए रखने के लिए एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन अति आवश्यक है. मृदा पर्यावरण एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन से मृदा में कार्बनिक पदार्थों की वृद्धि होती है, जिससे सूक्ष्म जीवों की संख्या में भी वृद्धि होती है. यह सूक्ष्म जीव मृदा में कार्बनिक पदार्थों के अपघटन में सहायक होते हैं, जिससे मृदा में कई पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर, जिंक, आयरन, जस्ता आदि की उपलब्धता पौधों के लिए बढ़ती है. पोषक तत्व व कार्बनिक पदार्थों की उपलब्धता बढ़ने से मृदा का पर्यावरण स्वस्थ होता है, जिससे मृदा की पानी सोखने की क्षमता में वृद्धि होती है तथा अन्य भौतिक, रासायनिक, व जैविक दशा में भी सुधार होता है.

संतुलित पोषण प्रबंधन

जहां रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मृदा में पोषक तत्वों तथा उत्पादन में कमी होती है, वहीं पर अनेक कार्बनिक व जैविक खाद भी फसल उत्पादकता को नहीं बनाए रख सकते हैं. कार्बनिक व जैविक खाद मानवता तथा पर्यावरण के लिए लाभदायक हैं, लेकिन बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्य आपूर्ति को पूर्ण करने में सक्षम नहीं हैं. क्योंकि जैविक खादों में पोषक तत्व बहुत ही कम मात्रा में मौजूद होते हैं तथा वह भी कुछ रसायनिक क्रियाओं के उपरांत ही पौधों को उपलब्ध होते हैं. इस तरह कार्बनिक व जैविक स्रोतों से पौधों की पोषक तत्व जरूरत को  पूरा करना तथा अधिक एवं उच्च गुणवत्ता का उत्पादन प्राप्त करना बहुत ही कठिन है. इसलिए एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन द्वारा ही रसायनिक, कार्बनिक व जैविक उर्वरकों एवं खादों के उपयोग से ही ऐसा कर पाना संभव है.

आता है एक ही कृत पोषक तत्व प्रबंधन प्रणाली अपनाने से पौधों तथा मृदा की उत्पादन क्षमता बढ़ने के साथ-साथ मृदा की उत्पादन क्षमता लंबे समय तक बनी रहती है. इस प्रणाली में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ने से तथा कम उर्वरकों के प्रयोग से ज्यादा पैदावार ली जा सकती है. इससे मृदा की भौतिक, रासायनिक व जैविक दशा में सुधार होता है. मृदा में जैविक पदार्थ उपलब्ध होने के कारण, जल सोखने की क्षमता बढ़ती है तथा जिससे मृदा में मौजूद कई तरह के एंजाइम क्रियान्वित होने से फसलों की पैदावार तथा गुणवत्ता में वृद्धि होती है.

पोषक तत्वों के स्रोत

  1. कार्बनिक या रसायनिक उर्वरक

कारखानों में चट्टानों व वातावरण में उपलब्ध खनिज तत्वों से रसायनिक क्रियाओं द्वारा उत्पादित उर्वरकों को रासायनिक उर्वरक कहते हैं. इन उर्वरकों में एक या एक से अधिक पोषक तत्व होते हैं, जो कि पौधों को तुरंत उपलब्ध हो जाते हैं. अलग-अलग फसलों के लिए विभिन्न अनुपातों में रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है.

  1. कार्बनिक खाद

कार्बनिक खाद सड़ी-गली पत्तियां, फूल, फल, पशुओं की मल मुत्र, फसलों के अवशेष, खरपतवार आदि से तैयार की जाती है. इन पदार्थों को अच्छी तरह गलाने व सडा़ने के बाद खेतों में प्रयोग किया जाता है. कृत्रिम रूप से गली व सडी़ खाद को कम्पोस्ट तथा केंचुए द्वारा तैयार की गई खाद को वर्मी कंपोस्ट कहते हैं.

जैविक खाद

भूमि में सूक्ष्म जीव जैसे बैक्टीरिया, फफूंद, शैवाल आदि पाए जाते हैं तथा उनमें से कुछ सूक्ष्म जीव पर्यावरण में उपलब्ध नाइट्रोजन, जिन्हें पौधे सीधे उपयोग नहीं कर सकते, उपलब्ध अवस्था में जैसे अमोनियम, नाइट्रेट आदि में बदल देते हैं. जैविक खाद इन्हीं जीवो का पीट, लिग्नाइट या कोयले के चूर्ण में मिश्रण है, जो पौधों को नाइट्रोजन तथा फास्फोरस उपलब्ध करवाते हैं. जैव उर्वरक भूमि, वायु तथा पानी को प्रदूषित किए बिना ही कृषि उत्पाद को बढ़ाते हैं. इन्हें जैवकल्चर या जीवाणु खाद टिका या इनोकुलेंट भी कहा जाता है.  उदाहरण जैसे राइजोबियम, एजोटोबेक्टर, एजोस्पिरिलम कल्चर, नील हरित शैवाल, फास्फोटिक कल्चर, माईकोराइजा,एजोला फार्न, ट्राइकोडरमा आदि.

लेखक

  1. धर्मपाल, पी एच डी शोधकर्ता, मृदा विज्ञानं विभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विशवविद्यालय हिसार-125004-dharampalsagwal3238@gmail.com

  2. डॉक्टर राजेंदर सिंह गढ़वाल, सहायक प्रध्यापक, मृदा विज्ञानं विभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विशवविद्यालय हिसार-125004. rsg.rca2011@gmail.com

English Summary: Importance of Integrated Nutrient Management in Fruit Plants Published on: 05 April 2022, 02:32 PM IST

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