शास्त्र और पुराण में भारत में प्राचीनकाल से ही मुर्हूत देखकर खेती करने का प्रचलन रहा है. किसान ग्रह-नक्षत्रों व चांद को देखकर फसल का चुनाव, फसल की बुवाई, कटाई आदि खेती के कार्य करते थे. मगर धीरे- धीरे इसका चलन खत्म हो गया. एक विद्वान दार्शनिक डॉ रुडोल्फ स्टेनर ने बायोनायनिमिक खेती का विचार दिया जिसे कई देशों ने व्यवसायिक रूप से अपनाया.
बायोडायनिमिक खेती को जैव खेती कहा जाता है, जिसमें नक्षत्रों की गति के आधार पर कृषि क्रियाओं का क्रम से वैज्ञानिक विधि से अपनाया जाता है. इस खेती में आकाशीय या नक्षत्रिय ऊर्जा का प्रभाव पेड़- पौधों के भाग जैसे पत्ती, फल, बीज व जड़ों पर पड़ता है और पैदावार में गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त की जाती है. हर साल इन नक्षत्रों की गति के आधार पर कृषि पंचाग तैयार किया जाता है और इसके अनुसार खेती करने से लाभ होता है.
यह वैज्ञानिक तथ्य है कि पृथ्वी पर मौजूद पानी को चंद्रमा अपनी ओर खींचता है. पेड़- पौधों की कोशिकाओं में जल की मात्रा रहती ही है, इसलिए चन्द्रमा की गति का प्रभाव पौधों पर पड़ना स्वाभाविक है. कृषि पंचांग खासकर चांद की गति पर निर्भर करता है.
चंद्रमा की विभिन्न अवस्थाएं (Different phases of the moon)
प्रथम पक्ष (शुक्ल पक्ष)
चंद्रमा की गति अंधकार से प्रकाश की ओर गति होती है शुरू में सूर्य और पृथ्वी के बीच एवं स्थित चंद्रमा पृथ्वी के फलक की ओर होता है. लगभग 7 दिनों में चांद मध्य बिंदु तक पहुंचकर आधा भाग प्रकाशित होता है तथा अगले 7 दिनों में चंद्र बाहरी बिंदु तक पहुंचकर पुरी तरह प्रकाशित होता है जिसे पूर्णिमा कहते हैं.
द्वितीय पक्ष (शुक्ल पक्ष)
इसमें चंद्रमा अपनी पहली की स्थिति में पहुंचने के लिए गतिमान होता है तथा अगले 7 दिनों में चंद्रमा का आधा भाग सूर्य किस तरफ होता है एवं आधा भाग अंधकार में होता है. अंतिम 7 दिनों में चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच पहुंच जाता है जिससे पृथ्वी पर अंधकार हो जाता है इसे अमावस्या कहते हैं.
इन अवस्थाओं के पीछे व्यापक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है. भारत में विभिन्न कार्यों को करने के लिए पंचांग का उपयोग किया जाता है. भारतीय पंचांग तिथिवार श्रेष्ठ, शुभ, प्रिय, अशुभ आदि संभावित परिणामों पर नजर डालता है. उसी अनुसार भारत में कृषि के विभिन्न कार्यों को संपन्न करने के लिए नक्षत्र एवं वायुमंडलीय प्रभावों के शुभ तथा अशुभ तिथिवार, घड़ी एवं अनुभव से प्राप्त प्रथाओं का उपयोग किया जाता है. इस कैलेंडर या पंचांग का उपयोग प्रकृति को लेकर सुक्ष्म से भी सूक्ष्म प्रभावों का कृषि में लाभ लिया जा सकता है. आधुनिक समय में कृषि वैज्ञानिकों ने भी कृषि पंचांग का महत्व बताया है.
कृषि कार्य में महत्व पंचांग का महत्व (Importance of agriculture calender in agriculture work)
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पूर्णिमा के समय चंद्र का सर्वाधिक खीचाव जल तत्व पर होता है. पृथ्वी और पौधों के अंदर का जल चंद्रमा की इस अवस्था में ऊपर की ओर गतिमान होता है और उच्चतम स्तर पर होता है. चंद्रमा के इस प्रभाव से वातावरण में नमी होती है अतः यदि पूर्णिमा के 48 घंटे पहले बीजों की बुवाई की जाए तो अंकुरण में वृद्धि होती है तथा पौधे निरोगी रहते हैं.
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पूर्णिमा के समय अधिक नमी होने के कारण फफूंद तथा अन्य सूक्ष्म जीवाणुओं का प्रकोप अधिक होता है अतः फसल की कटाई इस समय नहीं करनी चाहिए.
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अमावस के समय नमी कम होती है इसलिए ऐसे समय कटाई की जाए तो फसल उत्पादन में होने वाली हानि कम होती है. बीज व दाने स्वस्थ व स्वादिष्ट होते हैं.
चंद्र उत्तरायण एवं दक्षिणायन पक्ष (Chandra Uttarayan and Dakshinayan Paksha)
चंद्रमा 27.3 दिन में एक बार उत्तरायण एवं दक्षिणायन की गति पूर्ण करता है. यह अवस्था चंद्रमा के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष से भिन्न होती है.
चंद्र उत्तरायण पक्ष का कृषि कार्य में महत्व (Importance of Chandra Uttarayan Paksha in agriculture work)
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उत्तरायण की अवस्था में पृथ्वी की ऊपरी सतह पर क्रियाशीलता में बढ़ोतरी होती है. जल तत्व पौधों में ऊपर की और गति करता है जिससे फसल की पत्तियां, तना, फल एवं फूलों में वृद्धि होती है.
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इस अवस्था में पत्तीदार फसलों की कटाई, फलों की तुड़ाई, कलम लगाना तथा चारे की कटाई करना उत्तम रहता है.
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बीजों की बुवाई (seed sowing) इस अवस्था में करने से अंकुरण अच्छा होता है तथा रोग की संभावना कम रहती है.
चंद्र दक्षिणायन पक्ष का कृषि कार्य में महत्व (Chandra Dakshinayan Paksha's importance in agriculture work)
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चंद्र दक्षिणायन की अवस्था में आकाशिय शक्तियों का प्रभाव मृदा के नीचे होता है, जिससे भूमि क्रियाशीलता में वृद्धि होती है. अतः इस अवस्था में कंद फसलों जैसे अश्वगंधा, सफेद मूसली आदि की गुणवत्ता एवं उत्पादन में वृद्धि होती है.
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सींग की खाद बनाना, निकालना, खेत में डालना, कंपोस्ट बनाना, खेत में मिलाना, जुताई करना, निराई गुड़ाई करना आदि कार्यों के लिए यह समय श्रेष्ठ होता है. हरी खाद बनाना, पलटना व सिंचाई के लिए भी यह उपयुक्त समय है.
पृथ्वी से चंद्रमा की अति निकटता या अति दूरी (Moon's nearness or extreme distance from Earth)
चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी के चारों ओर अंडाकार कक्ष में घूमता है, अतः चन्द्रमा लगभग 7 दिन के अंतराल से पृथ्वी के अती पास या अति दूर होता है. इन दोनों ही अवस्थाओं में बीजों से कमजोर पौधे बनते हैं. इसलिए दोनों ही स्थितियों में कोई भी कृषि कार्य के लिए नहीं करना चाहिए.
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