आतंरिक परजीवी वे छोटे-छोटे जीव है जो पशु के शरीर में रहकर अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं और पशु को कमजोर और बीमार कर देते हैं. ये परजीवी पशु-शरीर के अन्दर आंतों या अन्य अंगों में रहते है जिन्हें सामान्यतौर से पेट के कीड़े कहते हैं. अस्वच्छ या संक्रमित भोजन से ये परजीवी शरीर में प्रवेश कर पाते हैं. जिससे पशु दुर्बल और बीमार हो जाता है परिणामस्वरूप दुधारू पशु की दूध देने की क्षमता में भारी गिरावट आती है.
आंतरिक परजीवियों के कारण पशुओं में होने वाले बदलाव
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अत्यधिक चराई के कारण खरपतवारों एवं घासों की लम्बाई छोटी हो जाती है परिणामस्वरूप खरपतवारों एवं घासों की जडो में बसने वाले परजीवी जानवरों के पेट में चराई के दौरान शरीर के भीतर पहुँच जाते हैं.
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परजीवी पशुओं के पेट में रहकर उनका भोजन और रक्त चूसते रहते हैं जिनके कारण पशुओं में दुर्बलता आ जाती है.
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भीतर प्रवेश कर ये परजीवी पशु को बैचेन कर देते है तथा पर्याप्त दाना-पानी पशु को खिलाने पर भी उनका समुचित शारीरिक विकास नहीं हो पाता है जिसके कारण परजीवी गृस्त पशु की उत्पादकता कम हो जाती है.
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प्रभावित पशु सुस्त एवं कमजोर हो जाते हैं. उनका वजन कम हो जाता है और हड्डियाँ दिखाई देने लगती हैं.
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पशु का पेट बड़ा हो जाता है. पशु को दस्त हो जाती हैं. जिसमें कभी-कभी रक्त और कीड़े भी दिखाई देते हैं.
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प्रभावित पशु मिट्टी खाने लगता है. पशु के शरीर से चमक कम हो जाती है और बाल खुरदरे दिखते हैं.
आंतरिक परजीवियों से पशु को बचाएं
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पशुओं को परजीवियों से बचाने के लिए सफाई और स्वच्छता बनाए रखनी बहुत जरूरी है. इसके लिए स्वच्छ कवक रहित चारा और साफ पीने योग्य पानी का प्रबन्ध करना चाहिए.
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पूरक और संतुलीत पोषण एवं खनिज पदार्थ पशु को देना चाहिए.
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नियमित और समय पर कृमिनाशक दवा (डीवर्मिग) पशु को देते रहना चाहिए और समय पर चिकित्सा सहायता के द्वारा हम पशुओं में परजीवियो की समस्या का प्रभावी रूप से निराकरण कर सकते हैं.
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पशुओं में आतंरिक परजीवियो से सुरक्षा हेतु हर तीन महीने में एक बार पेट के कीड़े की दवा अवश्य देनी चाहिए साथ ही साथ नियमित रूप से गोबर की जाँच करनी चाहिए.
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जाँच में कीड़े की पुष्टि होते ही पशुचिकित्सक की सलाह से उचित कृमिनाशक दावा दें. पशुओं में टीकाकरण से पहले कृमिनाशक दावा अवश्य देनी चाहिए. गाभिन पशुओं को पशुचिकित्सक की सलाह के बगैर किसी सूरत में कृमिनाशक दावा न दें.
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कृमिनाशक दवा, विशेषकर ओकसीक्लोजानाइड (1 ग्राम प्रति 100 किलो ग्राम पशु वजन के लिए) का प्रयोग करें.
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ध्यान रखे कि दवा सुबह भूखे/खाली पेट में खिलायी/पिलायी जानी चाहिए. इस दवा का उपयोग पशुओं के गर्भावस्था के दौरान भी बिना किसी विपरीत प्रभाव के किया जा सकता है.
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जहाँ तक संभव हों पशु चिकित्सक की सलाह लेकर ही पशुओं को दवा देनी चाहिए.
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