बटेर एक ऐसा जंगली पक्षी है, जो ज्यादा दूरी तक नहीं उड़ सकता और जमीन पर ही अपने घौंसला बनाता हैं. इनके स्वादिष्ट एवं पौष्टिक गुणवत्ता वाले मांस (Meat) के कारण यह अधिक पसंद किया जाता है. वन्य जीव संरक्षण कानून 1972 के तहत इनका शिकार करना प्रतिबंधित है, लेकिन सरकार से लायसेंस लेकर बटेर का पालन किया जा सकता है.
बटेर पालन से ना केवल अच्छी कमाई की जा सकती है बल्कि बटेर की घटती संख्या को रोकने में मदद भी मिलेगी. इस बिजनेस की खासियत ये है कि ये कम लागत शुरू हो जाता है. इतना ही नहीं, बटेर बेचने लायक भी एकदम हो जाती है क्योंकि इनकी बढ़वार तेजी से होती है, अधिक अंडे उत्पादन और सरल रख-रखाव के कारण इसका पालन व्यावसाय के रूप में तेजी से बढ़ रहा है.
देश में व्यावसायिक मुर्गी एवं बतख पालन के बाद बटेर पालन (जापानी बटेर) का व्यवसाय तीसरे स्थान पर आता है. जापानी बटेर के अंडे का वजन इसके शरीर के वजन का 8 प्रतिशत होता है, जबकि मुर्गी का 3 प्रतिशत ही होता है. बटेर पालन में लगभग ढाई दशक के लम्बे प्रयासों के बाद इसकी पालतू प्रजाति का विकास मांस और अंडे उत्पादन (Meat & egg production) के लिए किया जा रहा है.
बटेर पालन के लाभ (Benefits of Quail farming)
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बटेर आकार में छोटे होते हैं तथा उन्हें आवास के लिए कम जगह की आवश्यकता होती है.
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बटेर जल्दी परिपक्व (Mature) हो जाते हैं मादा बटेर 6 से 7 सप्ताह में ही अण्डे देना शुरू कर देती है तथा बटेर की बाजार में 5 सप्ताह बाद ही बेचने की आयु हो जाती है.
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एक मादा बटेर (Female Quail) एक साल में लगभग 250-300 तक अंडे दे देती है.
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मुर्गी के मांस की तुलना में बटेर का मांस बहुत स्वादिष्ट होता है, वसा (Fat) की मात्रा भी कम होती है. जिससे मोटापा (Obesity) नियंत्रण में मदद मिलती है.
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बटेर पालन में आहार और रख रखाव लागत बहुत कम होती है.
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मुर्गी पालन और पशुपालन के साथ कुछ संख्या में बटेर पालकर किसान इस व्यवसाय को आगे बढ़ा सकते हैं.
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मनुष्य आहार (Human diet) को संतुलित बनाने के लिए मांस और अंडे की जरूरत होती है. इसलिए यह कहना सही होगा कि बटेर पालन से अनेक लाभ लिए जा सकते हैं.
बटेर पक्षियों की नस्लें (Breeds of Quail birds)
पूरी दुनिया में बटेर की लगभग 18 नस्लें उपलब्ध है, उनमें से अधिकांश भारत की जलवायु (Indian climate) में पाली जा सकती हैं. इन नस्लों में कुछ नस्लें बड़े स्तर पर मांस और अंडे उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है. किसान अपने उत्पादन उद्देश्य के अनुसार किसी भी नस्ल का चयन कर सकता है.
बोल व्हाइट: यह मांस उत्पादन (Meat production) के लिए अच्छी मानी जाती है| यह अमरीकी नस्ल की बटेर है.
व्हाइट बेस्टेड: यह भारतीय प्रजाति का ब्रायलर बटेर है. जो मांस उत्पादन के लिए उपयुक्त है.
अधिक अण्डे देने वाली नस्ल: इनमें ब्रिटिश रेंज, इंग्लिश व्हाइट, मंचूरियन गोलन फिरौन एवं टक्सेडो है.
बटेर पालन में आवास व्यवस्था कैसे करें (How to arrange Housing system in Quail farming)
यदि व्यावसायिक बटेर पालन (Quail farming Commercial quail farming) करना चाहते है तो आवास बहुत महत्वपूर्ण है. आवास में बिछावन प्रणाली (Laying system) और पिंजरा विधि से बटेर पालन किया जा सकता है, इसमें पिंजरा विधि का उपयोग से अधिक लाभ और सुविधाजनक होता है. दो सप्ताह की आयु के बाद पक्षियों को पिंजरे में रखा जा सकता है. 3 X 2.5 X 1.5 वर्ग फीट आकार वाले पिंजरे में इन्हे रखना उचित रहता है. व्यावसायिक अंडों के लिए कई पिंजरे रखे जाते हैं, और प्रत्येक पिंजरे में 10-12 अंडे देने वाली बटेर को रखा जाता है. प्रजनन के लिए तीन मादा पक्षियों के लिए एक नर रखा जाना चाहिए. आवास के अन्दर ताजी हवा और प्रकाश की उचित व्यवस्था रखनी जरूरी है.
चूजा आवास में खिड़कियां और रोशनदान होना बहुत जरूरी है ताकि एक समान रोशनी और हवा चूजों को मिलती रहे. बटेर के चूजों को पहले दो सप्ताह तक 29 घंटे प्रकाश की जरूरत रहती है, गर्मी पहुंचाने के लिए बिजली की व्यवस्था करनी चाहिए. एक दिन के चूजों के लिए बिजली ब्रूडर का तापमान पहले सप्ताह में 950 फोरेनहाइट से बढ़ाकर 50 फोरेनहाइट प्रति सप्ताह कम करते रहना चाहिए.
बटेर पालन में आहार व्यवस्था (Dietary plan in Quail farming)
एक किलो बटेर का उत्पादन करने के लिए 2-2.5 किलो आहार की जरूरत होती है ताकि अच्छी शारीरिक विकास व स्वास्थ्य से उत्पादन को बढ़ाया जा सके. अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाला संतुलित आहार खिलाना बहुत जरूरी है. एक व्यस्क बटेर को प्रतिदिन 20-35 ग्राम आहार की आवश्यकता होती है. एक नवजात शिशु बटेर के राशन में लगभग 27% प्रोटीन तथा व्यस्क के लिए 22-24 % प्रोटीन का होना जरूरी है.
बटेर पक्षियों में लिंग पहचान (Gender identification in Quail birds)
बटेरों के लिए लिंग की पहचान एक दिन की आयु के आधार पर की जाती है. मगर तीन सप्ताह की आयु पर पंखों के रंग के आधार पर भी लिंग का पता लगाया जा सकता है. इसके लिए गर्दन के नीचे के पंखों का रंग लाल भूरा एवं धूसर होने पर पक्षी के नर होने का तथा गर्दन के नीचे पंखों का रंग हल्का लाल और काले रंग के घब्बे होना, पक्षी के मादा होने का प्रमाण है. मादा बटेर का शरीर भार (Body weight) नर से लगभग 15-20 % अधिक होता है.
बटेर पक्षियों में प्रजनन (Breeding in Quail birds)
बटेर में प्रजनन विधि आसान एवं सरल है. सामान्य रूप से बटेर 5 से 7 सप्ताह की आयु में प्रजनन के लिए परिपक्व हो जाते हैं. मादा बटेर (लेयर) 6-7 सप्ताह की आयु में ही अंडे देना शुरू कर देती है. 8 सप्ताह की आयु में ही लगभग 50 प्रतिशत तक अंडे उत्पादन की क्षमता ये पक्षी प्राप्त कर लेते हैं. व्यावसायिक बटेर पालन के लिए नर एवं मादा बटेर का अनुपात 1:5 रखना चाहिए यानि पाँच मादाओं में एक नर रखा जाता है. अंडों से चूजे निकलने में लगभग 17 दिन लगते हैं, तथा एक दिन के चूजों का वजन लगभग 8- 10 ग्राम होता है.
बटेर पक्षियों की देखभाल एवं प्रबंधन (Care and management of Quail birds)
दूसरे पक्षियों की तुलना में बटेर रोगों के प्रति बहुत प्रतिरोधी (Resistant) है इसलिए बटेर में टीकाकरण (Vaccination) की आवश्यकता नहीं या कम होती है. बटेर की अधिक उत्पादन एवं रोगों से बचाने के लिए अच्छी देखभाल, अच्छे आवास एवं संतुलित आहार ही काफी है. नियमित आहार में विटामिन एवं खनिज मिश्रण पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए.
बटेर का विपणन (Quail marketing)
बाजार में बटेर के मांस एवं अंडों की मांग बहुत अधिक है. बटेर से प्राप्त उत्पादों को आसानी से नजदीकी स्थानीय बाजार में या नजदीकी शहरों में बेचा जा सकता है. इसलिए देश में व्यावसायिक स्तर पर बटेर पालन आय एवं रोजगार का एक अच्छा विकल्प हो सकता है. इसके पालन में अंडों और मांस को बेचने के लिए नजदीकी बाजार सबसे अच्छा रहता है, क्योंकि यह कम समय और कम ट्रांसपोर्ट का खर्चा बचाएगा. विभिन्न दुकानों, ढेलों और होटलों पर अंडे और मांस बिक जाते है. ट्रांसपोर्ट के लिए यदि आपको निजी वाहन हो तो सबसे उत्तम है.
बटेर पालन के लिए प्रशिक्षण कहाँ से ले (Where to get Quail farming training)
वर्तमान में राजस्थान के महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी (MPUAT), उदयपुर पशु उत्पादन विभाग के पोल्ट्री फार्म में अन्य पक्षियों के साथ-साथ बटेर पालन कार्य पर कई अनुसंधान कार्य किए जा रहे हैं, तथा साथ ही किसानों के लिए इसके पालन एवं रख-रखाव संबंधित प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है.
ट्रेनिंग या बटेर पालन की जानकारी के लिए यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिको 9414160210, 0294-2470139, 2470719, 0294-2417835 से सम्पर्क किया जा सकता है.
उत्तर प्रदेश के बरेली (इज्जतनगर) में स्थित केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (Central Avian Research Institute) जाकर या इन नंबरों पर बात कर ट्रेनिग और संबन्धित जानकारी ली जा सकती है= 0581-2300204, 0581-2301220, 18001805141
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