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बिना पानी और कम उपजाऊ मिट्टी में भी तारामीरा से मिलेगा अच्छा उत्पादन, मुनाफे का सौदा साबित हो रही खेती !

देश में कई किसान फसल की सिंचाई के लिए परेशान रहते हैं कई क्षेत्रों में तो सूखा ही रहता है जिसकी वजह से खेती करना मुश्किल हो जाता है ऐसे में आपको एक ऐसी फसल की जानकारी दे रहे हैं जो कम पानी और कम उपजाऊ जमीन में भी आसानी से उग सकती है. इस फसल का नाम है तारामीरा, जो किसानों के लिए काफी मुनाफेमंद साबित हो रही है.

राशि श्रीवास्तव
तारामीरा की खेती
तारामीरा की खेती

आधुनिक युग में हर क्षेत्र में बदलाव हो रहा है, जिसका असर खानपान पर भी पड़ रहा है, यही कारण है कि भोजन में नई-नई तरह की चीजें शामिल हो रही हैं, इसी तरह तारामीरा भी अब थाली का हिस्सा बनता जा रहा है, सलाद के रूप में लोग इसका सेवन कर रहे हैं. खानपान में उपयोग बढ़ने से तारामीरा की मांग भी बढ़ी है. तारामीरा सरसों और राई कुल की एक तिलहनी फसल है इसके बीजों में करीब 35 फीसदी तक तेल होता है. वहीं तारामारी का उपयोग बढ़ने से इसकी खेती भी मुनाफा का सौदा साबित हो रही है. आइये जानते हैं खेती से जुड़ी जरूरी जानकारी 

उपयुक्त मिट्टी- तारामीरा की खेती हर तरह की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट और दोमट मिट्टी में पैदावार सबसे अच्छी होती है. अम्लीय और क्षारीय मिट्टी में खेती नहीं करनी चाहिए.

उपयुक्त जलवायु- तारामीरा रबी मौसम की फसल है जिसे ठन्डे शुष्क मौसम और चटक धूप वाले दिन की जरूरत होती है. ज्यादा बारिश वाले क्षेत्र खेती के लिए उपयुक्त नहीं हैं. फूल आने और बीज पड़ने के समय बादल और कोहरे भरे मौसम से हानिकारक प्रभाव पड़ता है क्योंकि इस मौसम में कीटों और बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है. 

खेत की तैयारी- वर्षा ऋतु में तारामीरा की बुवाई के लिए खेत खाली नहीं छोड़ना चाहिए,  खेत के ढेले तोड़कर पाटा लगाने से भूमि को नमी को बचाया जा सकता है दीमक और जमीन के अन्य कीड़ों की रोकथाम के लिए बुवाई से पहले जुताई के समय क्लूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में बिखेर कर जुताई करें. 

बीज की मात्रा और उपचार- तारामीरा की खेती के लिए 5 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर के हिसाब से पर्याप्त होता है. बुवाई से पहले बीज को 1.5 ग्राम मैंकोजेब से प्रति किलो बीज दर से उपचारित करें. 

बुवाई का समय और विधि- तारामीरा की बुवाई का सही समय अक्टूबर महीने के पहले सप्ताह से नवंबर महीने तक अच्छा माना जाता है. बारानी क्षेत्रों में बुवाई का समय भूमि की नमी और तापमान पर निर्भर करता है. नमी की उपलब्धि के आधार पर बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक कर देनी चाहिए. बुवाई के लिए कतारों में 5 सेंटीमीटर गहरा गड्ढा खोदें, फिर कतार से कतार की दूरी 40 सेंटीमीटर रखकर बीज बोयें. 

सिंचाई- तारामीरा की खेती के लिए पहली सिंचाई 40-50 दिन में फूल आने से पहले करनी चाहिए. उसके बाद दूसरी सिंचाई दाना बनते समय की जाती है.

ये भी पढ़ेंः तारामीरा की खेती से किसानों को मिल रहा दोहरा लाभ, कमाई के साथ बढ़ रही खेती की उर्वरक क्षमता

फसल की कटाई- तारामीरा फसल के जब पत्ते झड़ जाएं और फलियां पीली पड़ने लगें तब फसल काट लेनी चाहिए, कटाई में देरी होने से दाने खेत में झड़ने की आशंका रहती है. बता दें कि इसमें लभगभ 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार मिलने की संभावना रहती है.

English Summary: Good production will be available from Taramira even without water and in less fertile soil, farming proved to be a profitable deal! Published on: 09 March 2023, 04:18 PM IST

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