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Chilli Cultivation: मिर्च की बुवाई से लेकर तुड़ाई तक कैसे करें देखभाल?

अगर आप खेती करने की सोच रहे हैं तो ऐसे में मिर्च की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं जो आपके लिए बेहद फायदेमंद है...

हेमन्त वर्मा
nursery
मिर्च की खेती को वैज्ञानिक विधि से किया जाए तो अधिक पैदावार लिया जा सकता है.

मिर्च एक नकदी मसाला फसल है जिसकी खेती देश के सभी राज्यों में की जाती है. मिर्च का प्रयोग हरी मिर्च की तरह और मसाले के रूप में किया जाता है, इसे सब्जियों और चटनियों में डाला जाता है. मिर्च की खेती को वैज्ञानिक विधि से किया जाए तो अधिक पैदावार लेकिर बंपर मुनाफा लिया जा सकता है.

मिर्च की खेती के लिए जलवायु (Climate for Chilli Farming)

मिर्च की खेती के लिए 15-35 डिग्री सेल्सियस तापमान होना सही रहता है. इसकी खेती के लिए गर्म आर्द जलवायु उपयुक्त है क्योंकि पाला फसल को नुकसान पहुंचाता है.

मिट्टी का चुनाव (Selection of soil)

वैसे तो मिर्च सभी तरह की मिट्टी में उगाई जाती है लेकिन मिर्च की फसल जलभराव की स्थिति में खराब होने का खतरा रहता है इसलिए अच्छी जल निकासी वाली जमीन का चुनाव करें. मिर्च की अच्छी पैदावार लेने के लिए हल्की उपजाऊ मिट्टी सही रहती है. मिर्च की खेती के लिए जमीन का पी.एच. स्तर 6-7 होना चाहिए. इसकी खेती के लिए विभिन्न प्रकार कार्बनिक पदार्थ युक्त मिट्टी हो तो ज्यादा अच्छा है जिसमें हल्की नमी बनी रहे.

मिर्च की उन्नत किस्में (Improved varieties of Chilli)

मिर्च की उन्नत और अधिक उपज देने वाली किस्मों की बात करें तो काशी अनमोल, काशी विश्वनाथ, जवाहर मिर्च-283, जवाहर मिर्च-218, अर्का सुफल, काशी अर्ली, काशी सुर्ख, काशी हरिता प्रमुख है. पाइवेट कंपनियों की एचपीएच-1900, यूएस-611, 720, एम.एच.सी.पी- 319, मायको 456 किस्में भी खास हैं.

मिर्च का नर्सरी प्रबंधन (Nursery management of Chilli)

मिर्च की पौध तैयार करने के लिए सबसे पहले बीजों की बुआई 3 X 1.5 मीटर के आकार की क्यारियों में करें. क्यारियां जमीन से 10-15 सेमी ऊंची उठी होनी चाहिए. अगर क्यारियां का जमीन से उठी हुई नहीं होंगी तो जड़ों में जल भराव हो सकता है जिससे फसल के खराब होने का डर रहता है. हाइब्रिड किस्मों के लिए बीज की मात्रा 80-100 ग्राम और बाकी किस्मों के लिए 200 ग्राम प्रति एकड़ होनी चाहिए. 150 किलो ठीक से सड़ी गोबर की खाद में 750 ग्राम डीएपी और 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति वर्ग मीटर की दर से भूमि में मिलाएं ताकि मिट्टी की संरचना के साथ-साथ पौधे का विकास भी अच्छा हो और हानिकारक मृदाजनित कवक रोगों से भी सुरक्षा हो सके.

मिर्च पौध की रोपाई (Transplantation of Chilli seedling)

मिर्च की रोपाई वर्षा, शरद, ग्रीष्म तीनों मौसम में की जा सकती है. बरसात के मौसम की मिर्च का रोपण जून-जूलाई में, शरद ऋतु की फसल की रोपाई सितंबर-अक्टूबर में और ग्रीष्म कालीन मिर्च की रोपाई फर-मार्च में की जाती है. रोपाई से पहले जड़ों को माइकोराइजा 5 मिली प्रति लीटर पानी की दर वाले सोल्यूशंस में मिलाएं ताकि जड़ का विकास अच्छा हो सके. जितना अच्छा जड़ का विकास होगा उतनी ही अच्छ पौधे का विकास होगा और उत्पादन ज्यादा मिलेगा. सामन्यतः एक एकड़ क्षेत्रफल मे 80-100 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद या 50 क्विंटल वर्मीकंपोस्ट खेत की तैयारी के समय मिलाएं. नाइट्रोजन 48-60 किलों, फास्फोरस 25 किलो तथा पोटाश 32 किलो प्रति एकड़ का उपयोग करें.

मिर्च में पौध संरक्षण (Plant protection of Chilli)

पर्ण कुंचन विषाणु रोग: मिर्च की फसल में सबसे अधिक नुकसान पत्तियों के मुड़ने वाले रोग से होता है. यह रोग वायरस/ विषाणुजनित होता है जिसे फैलाने का काम रस चूसने वाले छोटे-छोटे कीट करते हैं. ये रसचूसक कीट अपनी लार के जरिए दूसरे पौधों को भी संक्रमित कर देते हैं. विभिन्न क्षेत्रों में इस रोग को चुरड़ा-मुरड़ा रोग या माथा बंधना रोग से नाम से जाना जाता है. इस रोग के चलते मिर्च की पत्तियां ऊपर की ओर मुड़कर नाव का आकार धारण कर लेती हैं और सिकुड़ने लगती है. जिसकी वजह से पौधा झाड़ीनुमा हो जाता है.पर्ण कुंचन विषाणु रोग के रोकथाम के लिए स्पीनोसेड़ 45 SC नामक कीटनाशी की 75 मिली. मात्रा या फिप्रोनिल 5% SC की 400 मिली. मात्रा या एसिटामिप्रीड 20% SP की 100 ग्राम मात्रा या एसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP की 400 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ खेत में छिड़काव करें.

थ्रिप्स: मिर्च की फसल में थ्रिप्स कीट भयंकर नुकसान पहुंचाता है. इस कीट से मिर्च की पत्तियों में झुर्रियां हो जाती हैं और पत्तियां उपर की ओर मुड कर नाव के समान हो जाती है. अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों का गुच्छा बन जाता है.रोकथाम के लिए स्पीनोसेड़ 45 SC नामक कीटनाशी की 75 मिली मात्रा या फिप्रोनिल 5% SC की 400 मिली मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ खेत में छिड़काव करें.

फल छेद इल्ली: शुरूआती अवस्था में इसकी इल्ली पत्तियों को खाती है तथा बड़ी होने पर फलों में गोल छेद बनाकर उसके अंदर के भाग को खाती है. जिसकी वजह से फल सड़ जाते है और नीचे गिरने लगते हैं.फल छेदक इल्ली से रोकथाम के लिए प्रोफेनोफोस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें.

मिलीबग: यह कीट मधुरस स्त्रावित करता है जिसके ऊपर हानिकारक फफूंद विकसित होती है जो प्रकाश संश्लेषण क्रिया बाधित करती है.

बचाव और रोकथाम के लिए थियामेथोक्सोम 12.6% + लेम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 9.5% ZC 80 ग्राम या 35 मिली क्लोरोपायरीफास के साथ 75 ग्राम वर्टिसिलियम या ब्यूवेरिया बेसियाना कीटनाशी को 15 लीटर पानी की दर से फसल पर छिड़काव करें. 

आर्द्र गलन रोग: यह बीमारी नर्सरी में दो चरणों में आ सकती है. पहले चरण में अंकुरण से पहले मिर्च का बीज फंगस से सड़ जाता है, दूसरे चरण में अंकुरण के बाद तने का आधार सड़ने लगता है. इसके बाद की अवस्था में तना सिकुड़ जाता है और पौधा जमीन पर गिर कर मर जाता है. इसके बचाव के लिए 30 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 70% WP या 30 ग्राम मेटालैक्सील 4% + मैंकोजेब 64% WP नाम की दवा को 15 लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी में छिड़काव करें.

जीवाणु पत्ती धब्बा रोग: यह रोग जीवाणु से होता है अतः इससे रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% W/W @ 24 ग्राम/ एकड़ या कसुगामाइसिन 3% SL @ 300 मिली प्रति एकड़ या कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 250 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

फल सड़न या डाई बैक रोग: इस रोग में मिर्च की फसल की पत्तियों पर छोटे एवं गोल, भूरे तथा काले रंग के अनियमित बिखरे हुए धब्बे दिखाई देते हैं तथा मिर्च के फल पर पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जिसके कारण फल में सड़न की समस्या शुरू हो जाती है। इस रोग से निवारण के लिए क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP@ 500 ग्राम/एकड़ या मेटिराम 55% + पायरोक्लोरेस्ट्रोबिन 5% WG @ 600 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

खाद एवं उर्वरक (Manure & Fertilizer)

एक एकड़ क्षेत्रफल मे 80-100 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद या 50 क्विंटल वर्मीकंपोस्ट खेत की तैयारी के समय मिलाएं. नाइट्रोजन 48-60 किलों, फास्फोरस 25 किलो तथा पोटाश 32 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से इस्तेमाल करें. नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा पौध खेत में लगाने के समय डालें. बाकी बची नाइट्रोजन पहली तुड़ाई के बाद डालें.

पानी में घुलनशील उर्वरक: मिर्च की पौध खेत में लगाने के 10-15 दिनों के बाद उर्वरक 19:19:19 की 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी का स्प्रे करें. 40-45 दिनों के बाद 20 प्रतिशत बोरोन 1 ग्राम ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें. फूल निकलने के समय 0:52:34 की 4-5 ग्राम + बोरोन 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़कें.

सिंचाई व्यवस्था (Irrigation arrangement)

सर्दी के मौसम में मिर्च में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है. दिसंबर से फरवरी के बीच मिर्च की फसल में 20-25 दिन बाद सिंचाई करें. गर्मियों के मौसम में 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी सही रहेगी.

खरपतवार प्रबंधन (Weed management)

मिर्च की फसल में समय-समय पर निराई-गुड़ाई का काम जरूर करते रहें. पहली निराई रोपाई के 20-25 दिनों तो दूसरी निराई 35-40 दिनों के बाद करें. निराई-गुड़ाई का काम हाथ से करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा, जरूरत पड़ने पर कृषि यंत्र का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. खरपतवार नियंत्रण के लिए मल्चिंग का उपयोग किया जा सकता है.

तुड़ाई और भंडारण (Fruit harvesting and storage)

हरी मिर्च की तुड़ाई फल लगने के करीब 15 से 20 दिनों बाद शुरू की जा सकती है. पहली और दूसरी तोड़ाई में करीब 12-15 दिनों का अन्तर रखा जाता है.हरी मिर्च को 7-10 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान तथा 90-95 प्रतिशत आर्द्रता पर 14-21 दिन तक स्टोर किया जा सकता है. लाल मिर्च को 3-10 दिन तक सूर्य की तेज धुप मे सुखाकर 10 प्रतिशत नमी पर स्टोर करने सही रहता है. भण्डारण के लिए हवादार कमरे या जगह का चुनाव करें.

उपज (Yield)

मिर्च की उन्नत किस्मों से 8-10 क्विंटल और संकर किस्मों से 12-16 क्विंटल प्रति एकड़ का उत्पादन लिया जा सकता है.

लागत और मुनाफा (Cost and profit)

उन्नत किस्मों की खेती में लागत लगभग 53,000 रूपये आंकी गई है, संकर या हाइब्रिड किस्मों में लगभग एक लाख रुपए लागत आती है.उन्नत किस्मों की खेती में शुद्ध लाभ लगभग 66,000 रूपे आता है जबकि संकर या हाइब्रिड किस्मों में करीब 1 लाख 40 हजार रूपे शुद्ध लाभ आती है.

संपर्क सूत्र (For contact)

  • देश में बागवानी के कई सरकारी संस्थान और कृषि विश्वविद्यालय है जिनसे संपर्क कर सकते हैं

  • भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलौर या निदेशक 080-28466471, 080-28466353 से संपर्क किया जा सकता हैं.

  • किसान हेल्पलाइन नंबर 1800-180-1551 पर भी सम्पर्क किया जा सकता है.

English Summary: Get complete information about chilli farming Published on: 13 November 2020, 02:09 PM IST

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