अलसी एक रबी मौसम की लंबी अवधि की फसल है, जिसे सामान्यतः धान की कटाई के बाद मिट्टी में उपस्थित नमी का उपयोग करते हुए उतेरा या सीधी बुआई की जा सकती है. इसका वानस्पतिक नाम लिनम यूसीटेटीसीमम है. इसके फूल नीले, सफेद व बैंगनी रंग के होते हैं जबकि इसके बीज भूरे या सुनहरे रंग के चिकने होते हैं.
अलसी की खेती मुख्यतः तेल व रेशे निकालने के लिये किया जाता है. अलसी के बीज में 33-47% तक खाद्य तेल पाया जाता है. अलसी को बहुत पहले से ही भोजन के रुप में रंग रोगन, वार्निश, चमड़ा उद्योग, स्याही व छपाई इत्यादि में काम में लाया जाता है, साथ ही तेल निकालने के बाद जो खली बचती है, वह दूधारु जानवरों को खिलाने के काम आता है. अलसी के तने व डंठल से रेशे प्राप्त किया जाता है, जिसे लिनेन कहा जाता है.
अलसी के पौष्टिक गुण:
कहा जाता है कि अलसी पादप जगत में एक शक्तिशाली पौधा है, इस तथ्य के कुछ प्रमाण है जैसे कि यह हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह की संभावना को बहुत कम करता है. अलसी एक आवश्यक एवं संर्पूण आहार है, जिसमें 20% आवश्यक अमिनो एसिड युक्त अच्छे प्रोटीन होते हैं. ओमेगा-3 फैट्टी एसिड, जो कि एक अच्छी वसा के रुप में हृदय की स्वास्थय के लिए महत्वर्पूण है. लिगनेन प्रोटीन जो कि पादप ऐस्ट्रोजेन व एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है. फाइबर भी प्रचूर मात्रा में पाये जाते हैं. कब्ज में यदि अलसी का सेवन किया जाय तो ईसबगोल की अपेक्षा ज्यादा स्वास्थयप्रद है.
इसके अतिरिक्त इसमें 30-40% तेल, विटामिन बी, सेलेनियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक, पोटेशियम, लोहा, लाइकोपीन आदि प्रचूर मात्रा में पाई जाती है, इसके अतिरिक्त इसमें ओमेगा-3, एल्फा-लिनोलेनिक एसिड पाई जाती है जो पृथ्वी पर सबसे बड़ा वानस्पतिक स्त्रोत है.
अलसी के औषधीय गुण
अलसी में एक विशेष गुण पाया जाता है. शोधकर्ताओं ने बताया है कि प्रतिदिन अलसी के बीज को भोजन में शामिल करने से यह मधुमेह को भी नियंत्रित करता है, क्योंकि इसमें कार्बोहाइडेªट न के बराबर होती है, इसलिए न ये रक्त में अवशोषित होता है और न ही रक्त शर्करा को प्रभावित करता है. अलसी में ए.एल.ए. और लिग्नेन पाया जाता है, जोकि सुजन व दर्द को कम करता है. अलसी के बीजो में एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है जो समय से पहले बूढ़ापन व तंत्रिका संबंधी रोगो जैसे अल्जाइमर, पार्किन्संस को भी रोकने में मदद कर सकते है. साथ ही अलसी के तेल से मालिश करने से त्वचा के दाग, धब्बे, झाइया व झूर्रियाँ दूर होती है.
नये रिसर्च के अनुसार आोमेगा -3 रक्तचाप को कम अथवा नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. अलसी हमारे शरीर में अच्छे कोलेस्ट्राल की मात्रा को बढ़ाता है और ट्राइग्लीसराइट्स व खराब कोलेस्ट्राल (एल. डी. एल.) की मात्रा को कम करती है. अलसी में रक्त को पतला करने का गुण भी पाया जाता है जो दिल की धमनियों में थक्के बनने से रोकती है. अलसी के ओमेगा-3 से भरपूर आहार धमनियों को सख्त होने से रोकने में मदद करते हैं, और सफेद रक्त कोशिकाओं को रक्त वहिकाओं की आंतरिक परत से चिपके रहने से धमनियों में वसा के जमाव को भी रोकता है. ओमेगा-3 हृदय की प्राकृतिक लय को बनाए रखने में भी भूमिका निभाता है, यह अनियमित दिल की धड़कन और हृदयघात के इलाज में उपयोगी है.
1990- के दशक में प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार लगातार 12 सप्ताह तक 30 ग्राम अलसी के बीज प्रतिदिन खाने से शरीर की चर्बी कम होकर आर्दश वजन को पाया जा सकता है. अलसी के बीज में जैवसक्रिय पेप्टाइड्स पाये जाते हैं जो कि प्रतिरक्षी तंत्र विकसित करने के साथ-साथ मलेरिया रोधी तत्व भी पाये जाते हैं. ओमेगा -3 फैट्टी एसिड के कारण यह भी देखा गया है कि यह किडनी संबंधित रोगों में क्षति को कम करता है. प्रयोगशालाओं में शोध से पता चला है कि अलसी कोलन, त्वचा व फेफड़ो के ट्यूमर को गठन को रोकता है अर्थात् कैंसर प्रतिरोधी गुण भी पाया जाता है. अलसी में पाया जाने वाला लिनेन हार्मोन मेटाबोलिज्म में शामिल एंजाइमो को अवरुद्ध करके और ट्यूमर कोशिकाओं के विकास और प्रसार में हस्तक्षेप करके कैंसर से बचाने में मदद करता है.
अलसी का औद्योगिक उपयोग:-
अलसी के तने से रेशा को संसाधित किया जा रहा है, जिससे लुगदी व पेपर उद्योग में उपयोग किया जा रहा है साथ ही पार्टिकल र्बोड, इंसुलेशन र्बोड, प्लास्टिक पालन्टपाट इन्सुलेटर, कार डोर पैनल, जलाऊ ईंधन, आदि के निर्माण में रेशे का उपयोग किया जा रहा है. अलसी से तेल निकाला जाता है, जिसको विभिन्न आइल पेंट, वार्निश व रंजक में आवश्यक तत्व के रुप में सम्मिलित किया जाता है.
अलसी का तेल प्राकृतिक रुप से ठोस सतहों को प्रभावी ठंग से संरक्षित करता है, यह पानी और नमक को क्रांकीट में प्रवेश करने से रोकता है. यह पार्किंग संरचनाओं, पूलों और इमारतों में चिकनी क्रांकीट सतहों को स्थिर करता है.
लिनोलियम एक फर्श है, जिसे लिनोलियम सीमेंट नामक एक गाढ़ा मिश्रण बनाने के लिए अलसी के तेल के ऑक्सीकरण द्वारा निर्मित किया जाता है, इसको संसाधित कर जुट की परत पर अत्यंत मनमोहक चादरें बनाई जाती है. अलसी के डंठल से रेशें तैयार कर इन रेशों से बहुत उच्च गुणवत्तायुक्त कपड़ा लिनेन तैयार किया जाता है. अलसी के रेशों को कोसा व कपास के रेशों के साथ मिश्रित करके उच्च गुणवत्तायुक्त कपड़े जैसे - साड़ी, धोती, जैकेट, कुर्ता इत्यादि बनाए जा सकते है. अलसी पर्यावरण के अनुकूल है, यह कोटिंग्स और फर्श को मित्रवत बनाता है, क्रांकीट को सख्त बनाता है, और फाइबर उत्पादों को मजबूत बनाता है. अलसी के तेल उत्पाद निर्माताओं को अच्छी वायु गुणवत्ता बनाये रखने में मदद करता है.
अलसी एक स्थायी, स्थानीय और पौधों पर आधारित घटक है जो कुत्ते व बिल्लियों के पशु आहार में सम्मिलित उत्पाद बाजार में बिक्री हेतू उपलब्ध है.
इसके अतिरिक्त अलसी के डंठल में तैयार रेशों के द्वारा आकर्षक हैण्डीक्राफ्ट, बैग, पर्स, हस्त निर्मित पेपर, गृह साज-सज्जा हेतु आकर्षक वस्तुएं, फैंसी टोपी आदि बनाकर बाजार में विक्रय किया जाता है. अलसी के फूल का उपयोग कर लेटर पेड, लिफाफा, विजिटिंग कार्ड आदि को प्राकृतिक रुप से सजाया जाता है.
अलसी के खाद्य उत्पाद:-
अलसी एक आवश्यक व उपयोगी खाद्य पदार्थ है, इसमें 20% तक आवश्यक एमीनो एसिड युक्त अच्छे प्रोटीन होते हैं, इसके अतिरिक्त यह शक्ति भी देता है, अलसी के विभिन्न उत्पाद बनाकर अपने दैनिक आहार में शामिल कर सकते हैं. अलसी के बीज को मिलाकर मीठे व नमकीन बिस्कुट, नान-खटाई, मलाई केक, अलसी गुड़ के लड्डू, अलसी व मूंगफली चिक्की, अलसी की चटनी इत्यादि बनाकर स्थानीय बाजार में विक्रय कर अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है.
इसके अतिरिक्त अलसी आधारित अचार, सूखी चटनी, मूख शुहिद हेतू मूखवाश, भूने हुए अलसी दाने को भी दैनिक आहार में उपयोग किया जा सकता हैं. शहरी क्षेत्रों में अलसी के दाने का पावडर व तेल , ब्रेड, जूस, दूध व दुग्ध उत्पाद में मिलाकर विभिन्न खाद्य उत्पाद बनाये जा रहे हैं.
लेखक: डॉ. नंदन मेहता श्रीमती आशुलता कौशल, डॉ. सोनल उपाध्याय एवं तरुण प्रधान आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
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