कपास की खपत पूरी दुनिया में ही तेजी से बढ़ी है. ऐसे में इसकी मांग और उसके मुताबिक उत्पादन की वजह से ही इसे श्वेत स्वर्ण (white gold) यानी सफ़ेद सोना के नाम से जाना जाता है. कपास वह नगदी फसल है जिसकी खेती करके किसान अपने आप को आर्थिक रूप से मजबूत बनाते हैं. ऐसे में इसमें कोई दो राय नहीं है कि इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है. भारत में कपास उत्पादन कई राज्यों में किया जाता है और अगर आप भी इसकी खेती करना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों का ध्यान रखने के साथ इसकी सही किस्म का चुनाव कर उत्पादन करना चाहिए.
बाजार में कई तरह की कपास की किस्में उपलब्ध हैं जिनसे ज्यादा और बेहतर पैदावार ली जा सकती है. किसान कपास की देसी किस्मों से लगभग 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन ले सकते हैं तो वहीं अगर वे अमेरिकन संकर किस्मों से COTTON FARMING करते हैं तो देसी किस्म के मुकाबले ज्यादा, यानी लगभग 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार ले सकते हैं. आज हम आपको इसी संबंध में जानकारी देने जा रहे हैं कि किसान किस तरह अप्रैल से लेकर मई के पहले हफ्ते तक कपास की बुवाई कर बेहतर उपज पा सकते हैं.
कपास की किस्में
आपको बता दें कि सबसे ज्यादा लम्बे रेशों वाली कपास को अच्छा माना जाता है. इसकी ज्यादा पैदावार तटीय इलाकों में होती है. उन्नत किस्मों की बात करें तो बाजार में कपास की कई उन्नत किस्में (varieties of cotton) उपलब्ध हैं. सभी किस्मों को उनके रेशों के आधार पर बांटा गया है. इनमें छोटे रेशों वाली कपास, मध्यम रेशों वाली कपास और बड़े रेशों वाली कपास की किस्में शामिल हैं.
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देसी किस्में - लोहित, आर.जी. 8, सी.ए.डी. 4
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अमेरिकन किस्में - एच.एस. 6, विकास, एच. 777, एफ.846, आर.एस. 810, आर.एस. 2013
बुवाई का समय
अगर किसान के पास सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, तो कपास की फसल अप्रैल और मई में भी लगाई जा सकती है. किसान सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता न होने पर मानसून के समय भी इसे लगा सकते हैं.
खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
कपास की खेती हर जगह की जा सकती है. इसके लिए शुरुआती दौर में न्यूनतम 16 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान होना चाहिए. फसल बढ़वार के समय लगभग 21 से 26 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान अच्छा माना जाता है. किसान बलुई, क्षारीय, कंकड़युक्त और जलभराव वाली जगह पर इसकी उपयुक्त खेती कर सकते हैं. बाकी जगह की भूमि पर भी कपास की खेती की जा सकती है.
खेत की तैयारी
इसके तहत कपास की बुवाई से पूर्व दो बार पलेवा की जरूरत होती है. पहला पलेवा लगाकर किसानों को मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई (20-25 सेमी) करनी चाहिए. दूसरा पलेवा कर कल्टीवेटर या देसी हल से 3 से 4 जुताई करके खेत तैयार करना चाहिए. उत्तम अंकुरण के लिए भूमि का भुरभुरा होना जरूरी है. आपको बता दें कि जहां नलकूपों में खारा पानी है, किसान वहां नहरों के पानी द्वारा पलेवा कर खेत की तैयारी कर सकते हैं.
कपास बीज शोधन
कपास को कीट और रोग से बचाने के लिए बीज शोधन बहुत जरूरी है. कपास के बीज सुखाने के बाद कार्बेन्डाजिम फफूंदनाशक द्वारा 2.5 ग्राम प्रति किग्रा. की दर से बीज शोधन करें. फफूंदनाशक दवाई के उपचार से राइजोक्टोनिया जड़ गलन फ्यूजेरियम उकठा और अन्य भूमि जनित फफूंद से होने वाली दिक्कतों से किसान बचा सकते हैं. फसल की प्राथमिक अवस्था में रोगों के आक्रमण से उपचार कर कपास को बचाया जा सकता है.
कपास बीज बुवाई और रोपाई
जुताई के एक दिन बाद खेत में बीज लगा सकते हैं. किसानों के लिए अच्छा है कि वे शाम के समय कपास की बीज बुवाई करें. एक एकड़ में किसान 3 से 4 किलो कपास के बीज बो सकते हैं. किसान अगर कपास की देसी किस्म की बुवाई कर रहे हैं तो दो कतारों के बीच लगभग 40 सेंटीमीटर और दो पौधों के बीच लगभग 30 से 35 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए. वहीं अगर वे कपास की अमेरिकन किस्म के बीजों की बुवाई करते हैं तो दो कतारों के बीच लगभग 50 सेंटीमीटर और पौधों के बीच लगभग 40 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए. एक एकड़ में लगभग चार किलो बीज की मात्रा होनी चाहिए. ध्यान देने वाली बात यह है कि जमीन अगर अधिक क्षारीय है तो किसान मेड़ों के ऊपर भी बीज लगा सकते हैं.
कपास की सिंचाई
कपास की खेती में पहली सिंचाई लगभग 40 से 50 दिन बाद की जाती है. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि इसकी खाती में ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है. मानसून के समय किसान इसमें खास किसी सिंचाई की जरूरत नहीं होती है.
कपास की तुड़ाई
किसान ध्यान रखें कि जब कपास की टिंडे 50 से 60 फीसदी खिल जाएं तो पहली तुड़ाई उसी दौरान कर दें. बाद में बची फसल में दूसरी तुड़ाई करें, जब सभी टिंडे पूरी तरह खिल जाएं.
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