देश में खेती का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है. अलग-अलग राज्यों के किसान खेती के क्षेत्र में काफी जागरूक हो रहे हैं. किसान पारंपरिक फसलों के साथ ही नई-नई फसलों की भी खेती कर रहे हैं. ऐसे में शलजम की फसल के बारे में जानकारी दे रहे हैं जो खास तौर से सर्दी के मौसम की फसल है. शलजम के सेवन से इम्यून सिस्टम मजबूत होता है कैंसर और ब्लड प्रेशर को भी नियंत्रित करता है हृदय रोग में भी लाभकारी है शलजम खाने से वजन भी कम हो सकता है इसके सेवन से फेफड़े भी मजबूत होते हैं. यह आंतों के लिए भी फायदेमंद होता है. शलजम लिवर और किडनी के लिए भी फायदेमंद है साथ ही शलजम खाने से भी मधुमेह में लाभ होता है. आप इसे सलाद में भी इस्तेमाल कर सकते हैं, इतने सारे गुण होने की वजह से इसकी डिमांड ज्यादा है ऐसे में शलजम की खेती से किसानों को लाखों का मुनाफा होता है आइये जानते हैं उन्नत खेती का सही तरीका
शलजम की फसल से कमाई
शलजम की फसल 40 से 60 दिन में तैयार हो जाती है. पूसा चंद्रिका शलजम और स्नोवाल शलजम की फसल 55 से 60 दिन में तैयार होती है जबकि पूसा स्वीटी शलजम सबसे कम समय में 45 दिन में तैयार होता है. शलजम का उत्पादन 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है. बाजार में शलजम 2500 रुपए प्रति क्विंटल तक बिक जाता है. किसान इस फसल को लगाकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
मिट्टी और जलवायु
शलजम की खेती करने के लिए सबसे पहले किसी अच्छी भूमि का चयन कर लें. इसके लिए रेतीली या दोमट और बलुई मिट्टी वाला खेत जरूरी है. शलजम की जड़ें जमीन के अंदर होती हैं इसके लिए 12 से 30 डिग्री का तापमान होना चाहिए. इसे लो कास्ट में इस्तेमाल किया जा सकता है.
शलजम की खेती का तरीका
खेती के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना जरूरी है ऐसे में खेत की जुताई करें जिससे पिछली फसल के रिमेनिंग वेस्ट खत्म हो जाएंगें फिर कंपोस्ट को खेत में डालें और पानी से अच्छी तरह से सिंचाई करते हुए खेत की जुताई करें. मिट्टी के भुरभुरी होने के बाद इसे सपाट कर दें.
ऐसे करें शलजम की बुवाई
शलजम की बुवाई पंक्तिबद्ध तरीके से करनी चाहिए. इसके लिए बीजों को 20 से 25 सेमी की दूरी पर तैयार किए गए कूढ़ों में बोना चाहिए. बुवाई के वक्त इस बात का ध्यान रखें कि पौधों की दूरी 8 से 10 सेमी होनी चाहिए शलजम को मेड़ों में भी बोया जाता है शलजम के पौधे जब 3 पत्तियों के हो जाएं तब बेकार के पौधों को निकालकर इनकी दूरी को 10 सेमी कर दें.
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शलजम की फसल सिंचाई
शलजम की खेती में सिंचाई 15-20 दिन के अन्तराल में करना चाहिए. ध्यान रहे कि शलजम में सिंचाई हल्की की जाए. कहीं-कहीं पर शलजम को मेंडो पर भी बोया जाता है. मेंडो की ऊॅचाई 15 सेमी. और दूरी 30 सेमी. रखी जाती है. मेड के ऊपर एक 4 सेमी. गहरा कून्ड लकड़ी से बनाया जाता है. इस कून्ड में बीज डालकर इसे मिट्टी से ढक लिया जाता है. सिंचाई दो मेंड़ों के बीज में की जाती है और इस बात का ध्यान रखा जाता है, कि मेंड पानी में न डूबने पाएं.
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